विरोधियों के लिए नामुमकिन है मोदी को समझना

विपक्ष कोई हवा-हवाई मुद्दा उठाकर उनका पीछा करता है, नरेंद्र मोदी फिर उनकी पहुंच से आगे बढ़ जाते हैं। इसका कारण आमजन में मोदी की विश्वसनीयता है, लोगों का यह विश्वास है कि नरेंद्र मोदी नेकनीयत के साथ देशहित में लगे हैं।

नरेन्द्र मोदी विगत बीस वर्षों से विपक्ष के निशाने पर हैं। भारतीय राजनीति में इतने अधिक हमले किसी अन्य नेता पर नहीं किये गए। गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही उनकी यह नियति शुरू हुई,जो प्रधानमंत्री बनने के बाद भी जारी है। लेकिन अद्भुत यह है कि उनका जितना विरोध होता है, जितना उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया जाता है, उतना ही वह आगे बढ़ते जाते हैं। विपक्ष देखता रह जाता है, नरेंद्र मोदी आगे निकल जाते हैं।

विपक्ष कोई हवा-हवाई मुद्दा उठाकर उनका पीछा करता है, नरेंद्र मोदी फिर उनकी पहुंच से आगे बढ़ जाते हैं। इसका कारण आमजन में मोदी की विश्वसनीयता है, लोगों का यह विश्वास है कि नरेंद्र मोदी नेकनीयत के साथ देशहित में लगे हैं। हाल ही में प्रियंका गांधी ने उनके लिए डरपोक व कायर शब्दों का प्रयोग किया था। राहुल गांधी की तो दिनचर्या में ही मोदी के लिए ऐसे शब्द रहते हैं।

साभार : Moneycontrol

राफेल डील को लेकर उनके ऊपर जनसभाओं में अमर्यादित नारे लगवाए जाते थे। ऐसे विरोध के बाद भी कहा जाता था कि अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है, असहिष्णुता बहुत बढ़ गई है। इसके लिए तो पूरा अभियान चलाया गया था। सम्मान वापसी का दौर चला था। लेकिन इन सभी मुद्दों पर विपक्ष को ही मुंह की खानी पड़ी। लेकिन इससे भी कोई सबक नहीं लिया गया। विपक्ष द्वारा उठाये गए मुद्दे स्वतः ही समाप्त होते रहे। इतना ही नहीं. इस रणनीति से विपक्ष की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ी।

ताजा प्रसंग कोरोना वैक्सीन का है। भारत के वैज्ञानिकों ने दो-दो वैक्सीन का निर्माण करके दुनिया को चौका दिया था। दुनिया में भारत की प्रशंसा हो रही थी। ब्राजील के राष्ट्रपति ने तो हनुमान जी द्वारा संजीवनी लाने के प्रसंग से इसकी तुलना की थी। सैकड़ों देश भारत से कोरोना लेने की लाइन में लग गए। लेकिन भारत का विपक्ष इस राष्ट्रीय गौरव से अलग रहा। उसके लिए यह भी मोदी विरोध का अवसर था।

कोरोना वैक्सिनेशन के संबन्ध में सरकार की नीति दूरदर्शिता पर आधारित थी। इसके चलते किसी प्रकार की भीड़ या अफरातफरी नहीं होती। सवा सौ करोड़ की आबादी में इसका भी ध्यान रखना आवश्यक था। इसके अंतर्गत पहले मेडिकल स्टाफ को प्राथमिकता दी गई।

इसी क्रम में अन्य कोरोना वारियर्स को शामिल किया गया। इस व्यवस्था को भी विपक्ष ने मोदी विरोध का बढ़िया अवसर माना। किसी ने पूछा कि मोदी जी कोरोना वैक्सीन कब लगवाएंगे। किसी ने कहा कि यह भाजपा की वैक्सीन है।

कोरोना वैक्सीनेशन का पहला चरण शुरू होते ही कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने को-वैक्सिन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे। इनका कहना था कि वैक्सीन के प्रति भरोसा पैदा करने के लिए सबसे पहले नरेंद्र मोदी को टीका लगवाना चाहिए। अगर वैक्सीन इतनी ही विश्वसनीय है तो बीजेपी के नेताओं ने सबसे पहले यह क्यों नहीं लगवाई।

एक दिग्गज ने ट्वीट करते हुए कहा कि कोवैक्सीन का अभी तक तीसरे चरण का ट्रायल नहीं हुआ है, बिना सोच समझे अनुमति दी गई है जो कि ख़तरनाक हो सकती है। ऐसे बेबुनियाद हमले लगातार चल रहे थे, विपक्ष सोच रहा था कि नरेन्द्र मोदी के पास उनके सवालों का जवाब नहीं हैं। मोदी भी चुप थे। उनके मन में कुछ और चल रहा था। विपक्षी दिग्गजों को वहां तक अनुमान लगाने का समय भी नहीं है।

साभार : Times of India

फिर एक सुबह सोशल मीडिया से पता चला कि नरेन्द्र मोदी ने सुबह साढ़े छह बजे कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लगवाई है। उन्होंने जो गाइडलाइन बनाई थी उसका पालन किया। सोमवार को दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में भारत बायोटेक की बनाई ‘कोवैक्सिन’ की पहली खुराक ली थी। राष्ट्रीय हित व गौरव को ध्यान में रखते हुए ट्वीट किया।

कहा कि हमारे डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने कोविड के खिलाफ लड़ाई को कम समय में मजबूत बनाने के लिए उल्लेखनीय काम किया है। मैं उन सबसे अपील करता हूं कि जो लोग कोरोना टीका लगाने के लिए योग्य हैं वे वैक्सीन लें। मिलकर भारत को कोविड मुक्त बनाएं।

देश में कोरोना महामारी पर नियंत्रण पाने को कोरोना टीकाकरण का दूसरा चरण एक मार्च से शुरू हुआ है। इस चरण में साठ साल से ज्यादा आयु वाले बुजुर्गों के साथ ही गंभीर बीमारियों से ग्रस्त पैतालीस साल या उससे ऊपर की आयु के लोगों को टीका लगेगा। नरेंद्र मोदी को इसी दिन का इंतजार था।

वैसे वह सबसे पहले यह वैक्सीन लगवा लेते, तब भी विपक्ष के हमले से नहीं बचते। तब कहा जाता कि नरेन्द्र मोदी को देश की नहीं केवल अपनी चिंता है। शायद मोदी ऐसी बातों के अभ्यस्त हो चुके हैं। इसलिए वह इनकी चिंता ना करते हुए अपने दायित्व के निर्वाह में लगे रहते हैं। वे किसीके विरोध या दबाव में कुछ नहीं करते, बल्कि वही करते हैं जो देशहित में और व्यवस्था के अनुकूल होता है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)