समाज-संस्कृति

अयोध्या की दीपावली : ‘अवधपुरी सोहई एहि भाँती, प्रभुहि मिलन आई जिमि राती’

त्रेता युग में लौटा तो नहीं जा सकता, लेकिन उसकी कल्पना और प्रतीक से ही मन प्रफुल्लित हो जाता है। अयोध्या में ऐसे ही चित्र सजीव हुए। इस आयोजन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि इसमे आमजन आस्था के भाव से सहभागी बना। यह प्रसंग भी रामचरित मानस के वर्णन जैसा प्रतीत होता है।

अयोध्या में पुनः साकार हुई त्रेता युग की दीपावली !

बुधवार 18 अक्‍टूबर का दिन अयोध्‍या नगरी के लिए अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक था। पूरे नगरवासियों ने कुछ ऐसा देखा जिसकी अभी तक कल्‍पना भी नहीं रही होगी। दीपोत्‍सव का पर्व यादगार बन गया। मानो साक्षात त्रेता युग इस युग में उतर आया हो। उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की पहल पर अयोध्‍या में दीपावली पर्व भव्‍य पैमाने पर मनायी गयी। इस आयोजन की सूत्रधार भले ही सरकार थी, लेकिन यह जन

दुनिया के इन-इन देशों में धूमधाम से मनाई जाती है दीपावली !

अब  दुनिया के चप्पे-चप्पे में दीप पर्व अपनी छटा बिखेरता है। जिन देशों में हिंदुओं की बड़ी आबादी है, वहां तो सर्वत्र प्रकाश होता है। श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैंड्स, कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका में दीपावली भव्य तरीके से मनती है। आप कह

लोगों में स्वच्छता की ‘आदत’ विकसित करना है मोदी सरकार का मुख्य लक्ष्य

केंद्र सरकार स्वच्छता को सिर्फ़ साफ़-सफ़ाई रखने के भौतिक उपादानों तक सीमित न कर के लोगों में इसे एक आदत के रूप में विकसित करना चाहती है। सरकार का सबसे बड़ा उद्देश्य लोगों को साफ़-सफ़ाई  के बारे में जागरूक कर उसे लोगों के जीवन में उतारने का है, जिसके लिए प्रधानमंत्री लगातार प्रयासरत हैं। सरकार

रामनवमी विशेष : कम्पनियों के सीईओज को लेनी चाहिए राम के जीवन से सीख

श्रीराम का जीवन यूँ तो न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के भी अनेक देशों में आदर्श के रूप में स्थापित और स्वीकृत है. लेकिन, यहाँ आज की जरूरतों के संदर्भ में एक अलग दृष्टिकोण से हम उसकी विवेचना करें तो श्रीराम का जीवन किसी कंपनी के सीईओ के लिए भी प्रेरणा बन सकता है। राम अगर किसी बड़ी कंपनी के सीईओ होते तो खासे सफल रहते।

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए लोकमत के परिष्कार को आवश्यक मानते थे दीनदयाल उपाध्याय

पं. दीनदयाल उपाध्याय ने स्वस्थ लोकतंत्र के लिए लोकमत के परिष्कार का सुझाव दिया था। उस समय देश की राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व था। उसके विकल्प की कल्पना भी मुश्किल थी। दीनदयाल जी से प्रश्न भी किया जाता था कि जब जनसंघ के अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो जाती है, तो चुनाव में उतरने की जरूरत ही क्या है। दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन सकारात्मक था। उनका कहना था कि चुनाव के

हिन्दी दिवस : अपनी शक्ति और सामर्थ्य को हर मोर्चे पर सिद्ध कर रही हिन्दी

हिन्दी अपने आविर्भाव काल से लेकर अब तक निरन्तर जनभाषा रही है। उसका संरक्षण और संवर्द्धन सत्ता ने नहीं, संतों ने किया है। भारतवर्ष में उसका उद्भव और विकास प्रायः उस युग में हुआ जब फारसी और अंग्रेजी सत्ता द्वारा पोषित हो रही थीं। मुगल दरबारों ने फारसी को और अंग्रेजी शासन ने अंग्रेजी को सरकारी काम-काज की भाषा बनाया। परिणामतः दरबारी और सरकारी नौकरियाँ करने वालों ने फारसी और अंग्रेजी का

‘इंटरनेट से केवल सूचनाएं मिल सकती हैं, ज्ञान पुस्तकों से मिलता है’

गूगल व इंटरनेट के दौर में डिजिटल तकनीक का बोलबाला भले ही हो, किंतु पुस्तकों की उपयोगिता आज भी कम नहीं हुई है। पुस्तकों के प्रति पाठकों का रूझान बरकरार है। गंभीर पाठकों की मौजूदगी लगातार बनी हुई है। समय के साथ पुस्तकों में रूचि और उनके खरीददारों की संख्या में अंतर आया है, किंतु पाठकों के उत्साह में नहीं। इसकी बानगी 28 अगस्त से 5 सितम्बर तक शिक्षा नगरी देहरादून में आयोजित नौ

तीन तलाक की अमानवीय व्यवस्था से मुक्त हुई मुस्लिम महिलाएं

एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए देश की सर्वोच्च अदालत की पांच न्यायाधीशों की बेंच ने मंगलवार को मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए तीन तलाक को असंवैधानिक, गैर-कानूनी और अवैध करार दिया है। पांच न्यायधीशों की बेंच में 2:3 के बहुमत से यह फैसला लिया गया। मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर ने तीन तलाक को धार्मिक मुद्दा बताते हुए इसे न्यायलय के दायरे से बाहर बताया तो वही

संघर्ष-पथ के पथिकों के लिए आकाशदीप की तरह है कृष्ण का चरित्र

लोक में कृष्ण की छवि ‘कर्मयोगी’ के रूप में कम और ‘रास-रचैय्या’ के रूप में अधिक है। चीर-हरण जैसी लीलाओं की परिकल्पना द्वारा उनके पवित्र-चरित्र को लांछित किया जाता है। राधा को ब्रज में तड़पने के लिए अकेला छोड़कर स्वयं विलासरत रहने का आरोप तो उन पर है ही, उनकी वीरता पर भी आक्षेप है कि वे मगधराज जरासन्ध से डरकर मथुरा से पलायन कर गए। महाभारत के युद्ध का दायित्व भी उन्हीं पर डाला गया है।