कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीतियों के कारण जमींदार बना वक्‍फ बोर्ड

वक्फ का अर्थ किसी धार्मिक कार्य के लिए किया गया कोई भी दान होता है। यह दान पैसा या संपत्ति किसी भी रूप में हो सकता है। वक्फ संपत्तियों और उनके रखरखाव के लिए 1954 में वक्फ कानून बना था। इसके तहत केंद्रीय स्तर पर सेंट्रल वक्फ काउंसिल होती है और राज्यों में वक्फ बोर्ड। 1995 में कांग्रेस सरकार ने वक्फ कानून में संशोधन करते हुए वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं। परिणामतः स्थिति ये है कि वक्फ कानून के अनुसार यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा कर दे तो वो वक्फ की संपत्ति मान ली जाएगी।

तमिलनाडु वक्फ बोर्ड के 7 हिंदू बहुल गांवों और तिरुचिरापल्ली स्थित 1500 साल पुराने मंदिर पर स्वामित्व के दावे से वक्फ कानून पर सवाल उठने लगे हैं। उल्लेखनीय होगा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने 2014 में लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के आधे घंटे पहले लुटियन जोन में 123 सरकारी संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंप दिया। ये संपत्तियों कनॉट प्लेस, अशोक रोड और मथुरा रोड जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर हैं।

दरअसल दिल्ली वक्फ बोर्ड ने 27 फरवरी 2014 को भारत सरकार को एक नोट लिखकर दिल्ली की 123 संपत्तियों पर अपना दावा प्रस्तुत किया था। इस नोट के मिलने के एक सप्ताह के भीतर और 2014 के लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के महज आधा घंटा पहले केंद्र सरकार ने सीक्रेट नोट जारी कर दिया था।

इसके अनुसार 123 संपत्तियों पर से सरकार ने अपना दावा वापस लेने का फैसला किया। इतना ही नहीं संप्रग सरकार ने उचित मुआवजे का अधिकार और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में पारदर्शिता अधिनियम 2013 के तहत मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए इन संपत्तियों को भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया से हटाने भी निर्णय ले लिया था। यहां उल्लेखनीय है कि उक्त 123 संपत्तियां ब्रिटिश सरकार से भारत सरकार को विरासत में मिली थीं।

मोदी सरकार ने 2015 में संप्रग सरकार के इस फैसले की जांच कराने का निर्णय किया। तत्कालीन शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने तब कहा था, ‘मुझे सलमान खुर्शीद के खिलाफ शिकायतें मिली हैं। उन्होंने वोट बैंक की राजनीति के लिए इन संपत्तियों के ट्रांसफर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।’

2016 में मोदी सरकार ने एक जांच समिति गठित किया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 123 संपत्तियों के भाग्य पर अंतिम निर्णय दिल्ली वक्फ आयुक्त द्वारा ही लिया जाना चाहिए। रिपोर्ट की अस्पष्टता को देखते हुए 2018 में सरकार ने दो सदस्यीय समिति का गठन किया। समिति ने दिल्ली वक्फ बोर्ड को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया लेकिन बोर्ड अपना पक्ष रखने में विफल रहा। इसके बाद समिति ने इन 123 संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड से मुक्त करने की सिफारिश कर दी।

समिति ने इन 123 संपत्तियों के भौतिक निरीक्षण की भी सिफारिश की। इसके बाद 17 फरवरी 2023 को आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने इन 123 संपत्तियों के बाहर नोटिस चिपका दिया कि यह संपत्तियां अब दिल्ली वक्फ बोर्ड की नहीं हैं। इसके बाद आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्लाह खान ने आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को पत्र लिखकर दो सदस्यीय समिति के गठन को चुनौती दी। वे इस मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में भी ले गए हैं।

वक्फ का अर्थ किसी धार्मिक कार्य के लिए किया गया कोई भी दान होता है। यह दान पैसा या संपत्ति किसी भी रूप में हो सकता है। वक्फ संपत्तियों और उनके रखरखाव के लिए 1954 में वक्फ कानून बना था। इसके तहत केंद्रीय स्तर पर सेंट्रल वक्फ काउंसिल होती है और राज्यों में वक्फ बोर्ड। 1995 में कांग्रेस सरकार ने वक्फ कानून में संशोधन करते हुए वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं। परिणामतः स्थिति ये है कि वक्फ कानून के अनुसार यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा कर दे तो वो वक्फ की संपत्ति मान ली जाएगी।

वक्फ बोर्ड ऐसी संपत्तियों पर भी अपना दावा प्रस्तुत करता है जो दुनिया में इस्लाम के उदय के पहले की हैं जैसे तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली का 1500 साल पुराना मंदिर। इसी असीमित अधिकार का परिणाम है कि आज वक्फ बोर्ड के पास 8.54 लाख एकड़ जमीन है जो भारतीय सेना और रेलवे के बाद से सबसे ज्यादा जमीन है। इस प्रकार कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति के चलते मिले असीमित अधिकारों के कारण वक्फ बोर्ड देश का तीसरा सबसे बड़ा जमींदार बन चुका है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)