लोकेन्द्र सिंह

मध्य प्रदेश : सामाजिक समरसता का केंद्र बनेगा संत रविदास मंदिर

समरसता यात्राओं में लोगों की सहभागिता इस विश्वास को पूरी तरह से पक्का करती है कि संत रविदास मंदिर सामाजिक समरसता का केंद्र बनेगा।

सामाजिक समरसता के लिए समर्पित गुरुजी गोलवलकर का जीवन

संघ की शाखा पर सामाजिक समरसता को जीनेवाले लाखों स्वयंसेवक गुरुजी के आह्वान पर ‘हिन्दव: सोदरा: सर्वे’ के मंत्र को लेकर समाज के सब लोगों के बीच में गए। 

‘गीता प्रेस’ के सम्मान का विरोध करने के पीछे की मानसिकता को समझिए

विरोधियों द्वारा यह कहना कि महात्मा गांधी और गीता प्रेस के प्रबंधकों के बीच घोर असहमतियां थी- निराधार और मूर्खतापूर्ण कथन है।

भारतीय मूल्यों की संवाहक बन रही हैं जी-20 की बैठकें

जब भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है, उसी समय उसे विश्व के प्रभावशाली देशों के संगठन ‘जी-20’ की अध्यक्षता का अवसर प्राप्त हुआ है।

मध्य प्रदेश : शिवराज सरकार की सक्रियता से किसानों के विकास और कृषि कार्यों को मिल रही गति

शिवराज सरकार के प्रयासों से प्रदेश में सिंचाई का रकबा विगत वर्षों में बढ़ा है। प्रदेश में वर्ष 2003 में जहाँ सिर्फ सात लाख हेक्टेयर के आसपास सिंचित भूमि थी।

मध्य प्रदेश : महिला सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध शिवराज सरकार

समाज में मातृशक्ति के महत्व और भूमिका को रेखांकित कर, उसके स्वाभिमान एवं सम्मान को बढ़ाने में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अनेक आवश्यक कदम उठाए हैं।  

‘भारत के स्वराज्य’ का उद्घोष था श्रीशिवराज्याभिषेक

कहते हैं कि यदि छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म न होता और उन्होंने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना न की होती, तब भारत अंधकार की दिशा में बहुत आगे चला जाता।

पत्रकारिता में शुचिता, नैतिकता और आदर्श के पक्षधर थे दीनदयाल उपाध्याय

दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय विचार की पत्रकारिता के पुरोधा अवश्य थे, लेकिन कभी भी संपादक या संवाददाता के रूप में उनका नाम प्रकाशित नहीं हुआ।

लॉकडाउन में श्रमिकों को घर पहुंचाकर रेलवे ने साबित किया कि वाकई में वो देश की जीवनरेखा है

भारत सरकार के प्रयासों और रेलवे के सक्रियतापूर्ण और समर्पण के साथ किए गए कार्यों ने लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों की कठिनाइयों को आसान करने में बड़ी भूमिका निभाई है।

नारद जयंती विशेष : प्रारंभ से पत्रकारिता के अधिष्ठात्रा हैं देवर्षि नारद

पत्रकारिता क्षेत्र के भारतीय मानस ने तो देवर्षि नारद को सहज स्वीकार कर ही लिया है। जिन्हें देवर्षि नारद के नाम से चिढ़ होती है, उनकी मानसिक अवस्था के बारे में सहज कल्पना की जा सकती है। उनका आचरण देखकर तो यही प्रतीत होता है कि भारतीय ज्ञान-परंपरा में उनकी आस्था नहीं है। अब तो प्रत्येक वर्ष देवर्षि नारद जयंती के अवसर पर देशभर में अनेक जगह महत्वपूर्ण आयोजन होते हैं। नारदीय पत्रकारिता का स्मरण किया जाता है।