काउंटर फैक्ट

तथाकथित सेक्युलर मीडिया को पत्रकार रोहित सरदाना का करारा जवाब

किले दरक रहे हैं। तनाव बढ़ रहा है। पहले तनाव टीवी की रिपोर्टों तक सीमित रहता था। फिर एंकरिंग में संपादकीय घोल देने तक आ पहुंचा। जब उतने में भी बात नहीं बनी तो ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, अखबार, हैंगआउट – जिसकी जहां तक पहुंच है, वो वहां तक जा कर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करने लगा।जब मठाधीशी टूटती है, तो वही होता है जो आज भारतीय टेलीविज़न में हो रहा है। कभी सेंसरशिप के खिलाफ़ नारा लगाने वाले कथित पत्रकार – एक दूसरे के खिलाफ़ तलवारें निकाल के तभी खड़े हुए हैं जब अपने अपने गढ़ बिखरते दिखने लगे हैं। क्यों कि उन्हें लगता था कि ये देश केवल वही और उतना ही सोचेगा और सोच सकता है – जितना वो चाहते और तय कर देते हैं। लेकिन ये क्या ? लोग तो किसी और की कही बातों पर भी ध्यान देने लगे।

बसपा के गुनाहगारों की कब होगी गिरफ्तारी?

किसी पार्टी को यह गलत फहमी नहीं होनी चाहिए उसके यहां विवादित बयानबाजों का अभाव है। ऐसे जोखिम सभी दलों के सामने आ सकते है। आज भारतीय जनता पार्टी अपने एक नेता के धृणित बयान से आलोचना का सामना कर रही है। अब बसपा भी अपने कुछ लोगों की नारेबाजी से असहज हो रही है।

मोदी और बीजेपी पर आरोप की राजनीति के अलावे अब किसी काम के नहीं रहे केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जनता ने सत्ता विकास के कार्यों और दिल्ली के भले के लिए सौंपी थी। लेकिन शायद दिल्ली की केजरीवाल सरकार काम करने के मूड में नहीं है। बल्कि केजरीवाल सरकार का पूरा ध्यान अपने काम पर कम और मोदी सरकार पर ज्यादा रहता है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को सत्ता संभाले लगभग डेढ़ वर्ष हो चुके हैं। लेकिन जनता के हितों के कार्यों को छोड़कर केजरीवाल

भारत से भला और कितनी बार मुँह की खाएगा पाकिस्तान?

देश के बंटवारा के बाद से ही पाकिस्तान कदम दर कदम भारत से मुंह की खाता रहा लेकिन वो इससे कोई सीख नहीं ले सका,  अथवा लेने की कोशिश नहीं किया। उसके इरादे भारत और खासकर कश्मीर को लेकर कभी भी नेक नहीं रहे। वो उसी कबिलाई मानसिकता में आज भी जी रहा है, जिसकों सदियों पहले सभ्य समाज द्वारा नाकार दिया गया था। अपनी अंदरूनी मामलों से निबटने के बजाय पाकिस्तान हमेशा कश्मीर का राग अलापता रहता है, और यहां अस्थिरता पैदा करने और अलगाव को हवा देने में लगा रहता है। जबकि उस के खुद के आंतरिक मामले इतने जटिल है जो निकट भविष्य में पाकिस्तान को कई टूकड़ों में विभाजित कर सकता है।

गांधी की हत्या और संघ : वामपंथी कुतर्कों पर टिका एक मनगढ़ंत इतिहास

राजनेताओं को यह समझना होगा कि अपने राजनीतिक नफे-नुकसान के लिए किसी व्यक्ति या संस्था पर झूठे आरोप लगाना उचित परंपरा नहीं है। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी शायद यह भूल गए थे कि अब वह दौर नहीं रहा, जब नेता प्रोपोगंडा करके किसी को बदनाम कर देते थे।

वैचारिक दिवालियेपन का शिकार हो गयी है आम आदमी पार्टी

दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सत्ता में आए लगभग डेढ़ वर्ष का समय हुआ है, इस दौरान यह सरकार अपने जनहित के अपने सकारात्मक कामों के लिए कम, फिजूल के हंगामों के लिए बहुत अधिक चर्चा में रही है। कभी दिल्ली पुलिस की मांग के जरिये तो कभी राज्यपाल नजीब जंग से बिना बात जंग छेड़कर यह पार्टी बवाल करती रही है। आजकल यह अपने विधायकों की गिरफ्तारी को लेकर धरती-आकाश एक किए हुए है।

संविधान का उल्लंघन केजरीवाल की रणनीति का हिस्सा है

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से ही केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी के नेता खुद को संविधान से उपर समझने लगे। वे हर उस संवौधानिक प्रक्रिया को तुच्छ समझने लगे जिसका समर्थन भारतीय संविधान करता है। केजरीवाल ने संविधान के इतर जाकर ही संसदीय सचिवों की नियुक्ति की थी जिसको बाद में माननीय न्यायलय द्वारा असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। इस वाकया से सबक लेने और संवैधानिक प्रक्रियाओं का एक फिर से उल्लंघन किया और दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने के लिए जनमत संग्रह कराने का राग अलापने लगे।

भाजपा विरोधियों के दोहरे चरित्र से उठने लगा पर्दा, बेनकाब होने लगे चेहरे

साल 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार सत्ता में आयी तभी से विपक्षी दल, सुनियोजित गैंग की तरह काम करने वाले मीडिया घरानों और कुछ एनजीअे तंत्र द्वारा पूरे देश में ऐसा माहौल बनाया गया जैसे की भाजपा सरकार बनने से देश में तानाशाही लागू हो गयी हो।

मायावती ‘देवी’ हैं तो क्या उनके भक्त खुलेआम महिलाओं को गाली देंगे ?

यह भारतीय राजनीति का गिरता स्तर ही है कि गाली के प्रतिकार में गाली दी जा रही है। दरअसल, पिछले सप्ताह भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती पर अभद्र टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी ने सूबे की सियासत में भूचाल ला दिया। जाहिर है कि दयाशंकर सिंह ने मायावती के लिए बेहद आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किया था जो किसी भी महिला के लिए अपमानजनक था।

शाह फैजल के किन्तु-परन्तु में भारत और कश्मीर कहां है?

2009 के आईएएस टॉपर शाह फैजल के दर्द भरे लेख को पढ़ लेने वाले देश के अधिकांश लोगों के मन में ये अहसास गहरा सकता है कि दरअसल भारत सरकार ने कश्मीर के साथ संवाद का गलत तरीका अपनाया है। शाह फैजल ने अपने लेख में लगातार बताया है कि गलत तरीके से हो रहे संवाद से कश्मीर लगातार भारत से दूर होता जा रहा है। शाह का लेख दरअसल एक कश्मीरी की भावनाओं को सामने लाता है। लेकिन, ये भावनाओं से ज्यादा उस डर को ज्यादा सामने लाता है, जिसमें कश्मीर के आतंकवाद, अलगाववाद के खिलाफ बोलने से हर कश्मीरी की जिंदगी जाने का खतरा है