चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूती बरकरार

अर्थव्यवस्था के विकास की राह में अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। पहले भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी से जूझ रही थी और अब रूस एवं यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध से मुद्रास्फीति में तेजी आ रही है। बावजूद इसके, विकास के अन्य मानकों जैसे, सरकारी व्यय में वृद्धि, राजस्व संग्रह व जीएसटी संग्रह में तेजी आदि से साफ पता चलता है कि अर्थव्यवस्था मजबूती की दिशा में तेजी से अग्रसर है।

कल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। कोरोना की तीसरी लहर के कारण जनवरी 2022 में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं और अब युद्ध के कारण मुद्रास्फीति और जिंसों की कीमत में उछाल आ रहा है। एनएसओ के आंकड़ों के अनुसार तीसरी तिमाही में सेवा क्षेत्र में 8.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, लेकिन विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि दर स्थिर बनी हुई है। 

आईएचएस मार्किट के अनुसार भारत का मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) फरवरी महीने में सुधरकर 54.9 के स्तर पर पर आ गया है। पीएमआई यदि 50 अंक से ज्यादा होता है तो माना जाता है कि कारोबार में वृद्धि हो रही है, वहीं इससे कम होने पर माना जाता है देश में विकास की गति बाधित है। इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि नये कारोबारों और मांग और बिक्री में बेहतरी आई है। उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विगत 3 महीनों के दौरान मांग में तेजी देखी गई है। इस अवधि में उपभोक्ता वस्तु विनिर्माताओं की राह भी आसान हुई है।  

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध से चालू खाते के घाटे में बढ़ोतरी का अनुमान है। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में चालू खाते का घाटा 9.6 बिलियन यूएस डॉलर था, जो जीडीपी का 1.3 प्रतिशत है, जबकि जून तिमाही में यह 6.6 बिलियन यूएस डॉलर सरप्लस था, जो जीडीपी का 0.9 प्रतिशत था। वहीं, पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में चालू खाते का घाटा 15.3 यूएस डॉलर सरप्लस था, जो जीडीपी का 2.4 प्रतिशत था। हालांकि, भू-राजनीतिक जोखिम, ईंधन और जिंसों की कीमतों में बढ़ोतरी से निकट भविष्य में चालू खाते के घाटे में और भी वृद्धि होने का अनुमान है। 

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह फरवरी महीने में 1.33 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल फरवरी की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक है और फरवरी, 2020 की तुलना में 26 प्रतिशत अधिक है। यह पांचवां महीना है, जब जीएसटी संग्रह 1.3 लाख करोड़ रुपये से ऊपर रहा है। जीएसटी संग्रह में आई तेजी को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि वित्त वर्ष 2023 में औसत जीएसटी संग्रह हर महीने में 1.25 लाख करोड़ रुपये से ऊपर रह सकता है। 

जनवरी 2022 में तीसरी लहर के कारण कुछ प्रदेशों में लॉकडाउन लगा हुआ था, जिसके कारण  जीएसटी संग्रह 1.4 लाख करोड़ रुपये ही रहा। हालांकि, चालू वित्त वर्ष में जीएसटी संग्रह के बजटीय लक्ष्य को पार करने का अनुमान है, क्योंकि फरवरी महीने में ईवे बिल सृजन में तेज बढ़ोतरी हुई है।  

चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जनवरी महीने के दौरान केंद्र का राजकोषीय घाटा 9.38 लाख करोड़ रुपये रहा, जो संशोधित अनुमान का 58.9 प्रतिशत है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में राजकोषीय घाटा 66.8 प्रतिशत रहा था। राजकोषीय घाटे में कमी आने का कारण केंद्रीय कर संग्रह में तेजी आना है। 

केंद्रीय वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए पेश किये गये बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य संशोधित कर नॉमिनल जीडीपी का 6.9 प्रतिशत कर दिया है, जो पूर्व में 6.8 प्रतिशत था। वहीं, वित्त वर्ष 2023 के लिए राजकोषीय घाटे का बजटीय अनुमान 16.6 लाख करोड़ रुपये है, जो जीडीपी का 6.4 प्रतिशत है। मामले में सरकार को भारतीय जीवन निगम (एलआईसी) के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम  (आईपीओ) से बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं। अगर बाजार में इस आईपीओ को अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है तो राजकोषीय घाटे में और भी कमी आ सकती है।  

वित्त वर्ष 2022 के अप्रैल से जनवरी महीने के दौरान शुद्ध कर राजस्व संग्रह 15.47 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वित्त वर्ष 2022 के संशोधित अनुमान का 87.7 प्रतिशत है, जो पिछले साल इसी अवधि में 82 प्रतिशत रहा था। वहीं, अप्रैल से जनवरी के दौरान गैर कर राजस्व 2.91 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वित्त वर्ष 2022 के संशोधित अनुमान का 92.9 प्रतिशत है, जो पिछले साल इस दौरान 67 प्रतिशत रहा था। आंकड़ों से साफ है कर संग्रह के मोर्चे पर लगातार बेहतरी आ रही है।  

चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जनवरी महीने के दौरान कुल व्यय 28.09 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वित्त वर्ष 2022 के संशोधित अनुमान का 74.5 प्रतिशत है, जो पिछले साल की समान अवधि में 73 प्रतिशत था। वित्त वर्ष 2022 में राजस्व व्यय 23.68 लाख करोड़ रुपये या संशोधित अनुमान का 74.7 प्रतिशत रहा, जो पिछले साल की समान अवधि में 71.6 प्रतिशत था। निस्संदेह सरकारी व्यय में वृद्धि हो रही है, लेकिन मौजूदा परिदृश्य में सरकार को व्यय में और भी तेजी लानी चाहिए, ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था जल्द से जल्द कोरोना की काली छाया से बाहर निकल सके। 

ग्लोबल लोकेशन टेक्नोलॉजी फर्म टॉमटॉम इंटरनेशनल के आंकड़ों के अनुसार नई दिल्ली और मुंबई में यातायात में वृद्धि हुई है। बिजली उत्पादन और खपत में भी हाल में वृद्धि दर्ज की गई है। साथ में, भारतीय रेलवे द्वारा ढुलाई किए जाने वाले माल की मात्रा में भी वृद्धि हुई है। ये आंकड़े देश में आर्थिक हालत के दुरुस्त होने की ओर इशारा कर रहे हैं। 

लब्बोलुबाव के रूप में कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था के विकास की राह में अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। पहले भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी से जूझ रही थी और अब रूस एवं यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध से मुद्रास्फीति में तेजी आ रही है। बावजूद इसके, विकास के अन्य मानकों जैसे, सरकारी व्यय में वृद्धि, राजस्व संग्रह व जीएसटी संग्रह में तेजी आदि से साफ पता चलता है कि अर्थव्यवस्था मजबूती की दिशा में तेजी से अग्रसर है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)