तेजी से आगे बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था

सरकार द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों में सबसे महत्वपूर्ण है वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का 2017 में आगाज। इस नई कर प्रणाली से सरकार के राजस्व में निरंतर इजाफा हो रहा है। अक्टूबर महीने में जीएसटी संग्रह 1.72 लाख करोड़ रुपए रहा, जो अक्टूबर 2022 की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक है और राशि में यह 1.51 लाख करोड़ रुपए है। सितंबर महीने में जीएसटी संग्रह 1.63 लाख करोड़ रुपए रहा था। सबसे महत्वपूर्ण है कि लगातार 8वीं बार जीएसटी संग्रह 1.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक रहा है, जबकि विगत 20 महीनों से जीएसटी संग्रह 1.4 लाख करोड़ रुपए से ऊपर रहा है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 19 नवंबर को पहली बार भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 4 लाख करोड़ (4 ट्रिलियन) डॉलर के आंकड़े को पार कर गया। हालांकि, अभी तक वित्त मंत्रालय या राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने इसकी पुष्टि नहीं की है। भारत की जीडीपी 2007 में 1 ट्रिलियन डॉलर थी, जो 2014 में बढ़कर 2 ट्रिलियन डॉलर, 2019 में 3 ट्रिलियन डॉलर और 2023 में 4 ट्रिलियन डॉलर हो गई।

देश में अक्टूबर महीने में सोने का आयात पिछले साल के मुक़ाबले 60 प्रतिशत बढ़कर 123 टन के स्तर पर पहुँच गया, जो 31 महीनों का उच्चतम स्तर है। राशि में अक्टूबर 2022 के 3.7 अरब डॉलर से बढ़कर अक्टूबर 2023 में यह 7.23 अरब डॉलर हो गया था। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएम-ईएसी) के अस्थायी सदस्य नीलेश शाह ने 20 नवंबर को इस संबंध में कहा कि विगत 21 सालों में भारत ने सिर्फ सोने के आयात पर 500 अरब डॉलर खर्च किया है।

अगर भारत इतनी बड़ी मात्रा में सोने का आयात नहीं करता और भारत के लोग सोने की जगह देश के उद्यमियों की कंपनियों में निवेश करते तो हमारी अर्थव्यवस्था बहुत पहले 5 लाख करोड़ डॉलर की बन जाती। चूंकि, भारत के लोग सोने में निवेश करके भूल जाते हैं, जिससे एक बड़ी राशि बेकार पड़ी रहती है और यह जीडीपी में परिलक्षित नहीं होता है। 

15 नवंबर को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने “हिंद प्रशांत क्षेत्रीय संवाद” को संबोधित करते हूए कहा कि भारत 2027 तक जापान और जर्मनी को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार भी 2027 में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगा। इतना ही नहीं, आईएमएफ के अनुसार 2047 तक भारत के विकसित देश बनने की भी प्रबल संभावना है।  

एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस का भी कहना है कि भारत 2030 तक जापान को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। एजेंसी का यह भी कहना है कि 2030 में भारत की जीडीपी 7300 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर सकती है।   

एसएंडपी ग्लोबल इंडिया सर्विसेज का मानना है कि कोरोना महामारी, वैश्विक बाजार में ईंधन की ऊंची कीमत और भू-राजनैतिक संकट के बावजूद 2021 और 2022 में भारत ने अर्थव्यवस्था की मजबूती को कायम रखा और अब 2023 में भी भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी की स्थिति बनी हुई है।

इस आधार पर कयास लगाया जा रहा है कि वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.2 से 6.3 प्रतिशत के बीच रह सकता है, क्योंकि चालू वित्त वर्ष की जून तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रही थी। 

सरकार द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों में सबसे महत्वपूर्ण है वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का 2017 में आगाज। इस नई कर प्रणाली से सरकार के राजस्व में निरंतर इजाफा हो रहा है। अक्टूबर महीने में जीएसटी संग्रह 1.72 लाख करोड़ रुपए रहा, जो अक्टूबर 2022 की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक है और राशि में यह 1.51 लाख करोड़ रुपए है। सितंबर महीने में जीएसटी संग्रह 1.63 लाख करोड़ रुपए रहा था। 

सबसे महत्वपूर्ण है कि लगातार 8वीं बार जीएसटी संग्रह 1.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक रहा है, जबकि विगत 20 महीनों से जीएसटी संग्रह 1.4 लाख करोड़ रुपए से ऊपर रहा है। हालांकि, अप्रैल 2023 में सबसे अधिक जीएसटी संग्रह 1.87 लाख करोड़ रुपए हुआ था और वित्त वर्ष 2023-24 में विगत 7 महीनों में 11.65 लाख करोड़ रुपए का जीएसटी संग्रह हुआ है, जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में कुल 18.10 लाख करोड़ रुपए का जीएसटी संग्रह हुआ था।

सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसपीडी) के मामले में विगत 1 साल में सबसे अधिक बढ़ोतरी दिल्ली में हुई हैं। यह कोरोना महामारी के पहले के वित्त वर्ष 2019-20 के 2,60,559 रुपए के स्तर को पार कर गया है। यहां प्रति व्यक्ति जीएसपीडी में भी 19 हजार रुपए की बढ़ोतरी हुई है। मामले में दूसरे स्थान पर सिक्किम है, जहां बीते साल 13,500 हजार रुपए प्रति व्यक्ति जीएसपीडी की बढ़ोत्तरी हुई थी।  

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले साल विनिर्माण के मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर रहा था, जहां विनिर्माण क्षेत्र में 15.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी, जबकि दूसरे स्थान पर उत्तराखंड था, जहां 9.2 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई थी। हरियाणा में इस क्षेत्र में यह बढ़ोतरी 5.8 प्रतिशत दर्ज की गई है। वहीं, छत्तीसगढ़ में यह बढ़ोतरी 3.41 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 5.21 प्रतिशत और राजस्थान में 4.98 प्रतिशत रही है। हालांकि, इस संबंध में गुजरात, महाराष्ट्र और चंडीगढ़ के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 

जीडीपी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को मापने का सबसे सशक्त पैमाना है। यह एक निश्चित समय में सभी उत्पादों और सेवाओं के मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें देश की सीमा के अंदर रहकर जो विदेशी कंपनियां उत्पादन करती हैं, उन्हें भी शामिल किया जाता है। जब जीडीपी दर बेहतर रहता है तो आमतौर पर देश में बेरोजगारी का स्तर कम होता है। 

जीडीपी दो तरह की होती है। रियल जीडीपी और नॉमिनल जीडीपी। रियल जीडीपी में वस्तुओं और सेवाओं की कीमत की गणना आधार वर्ष के स्थिर मूल्य पर की जाती है। फिलहाल, जीडीपी की गणना आधार वर्ष 2011-12 के आधार पर की जाती है अर्थात वित्त वर्ष 2011-12 में वस्तु एवं सेवा की जो कीमत थी उस दर पर यह गणना की जाती है। वहीं, नॉमिनल जीडीपी की गणना मौजूदा कीमत के आधार पर की जाती है।

जीडीपी में कमी या बेशी आने का प्रमुख कारण निजी व सरकारी क्षेत्र द्वारा किया जाने वाला खर्च, निजी क्षेत्र के कारोबार में वृद्धि या कमी आदि हैं। इसके अलावा निवल मांग, जो निर्यात में से आयात को घटाकर निकाला जाता है, भी जीडीपी के दर को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारण है। चूंकि, भारत का निर्यात हमेशा आयात से कम रहता है, इसलिए, यह नकारात्मक रूप से जीडीपी को प्रभावित करता है।  

कोरोना महामारी के दौरान सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक की समीचीन नीतियों की वजह से महामारी के नकारात्मक प्रभावों से भारतीय अर्थव्यवस्था को बाहर निकलने में मदद मिली और सरकार द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों की वजह से अर्थव्यवस्था में मजबूती आई और बैंकिंग क्षेत्र भी स्वस्थ और सशक्त बना। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और पीएम स्वनिधि योजना को लागू करने से रोजगार या स्वरोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई, जिससे विविध उत्पादों की मांग में इजाफा हुआ।

सबसे महत्वपूर्ण है कि अब विकास वैसे राज्यों में भी हो रहा है, जो पहले पिछली पंक्तियों में खड़े थे। जीएसपीडी हो या विनिर्माण क्षेत्र, अमूमन सभी क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। कुछ दूसरे पिछड़े राज्य भी अब विकास के पैमानों पर उल्लेखनीय प्रदर्शन कर रहे हैं।

कहने का तात्पर्य है कि विकास की गाड़ी अब सिर्फ गिने-चुने राज्यों के दम पर नहीं चल रही है। दूसरे राज्यों की भागीदारी भी मुसलसल बढ़ रही है और इसी वजह से भारत की जीडीपी मजबूत कदमों से आगे बढ़ रही है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक में सहायक महाप्रबंधक (ज्ञानार्जन एवं विकास) हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)