वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में बढ़ती भारत की भागीदारी

अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर भारत की साख बढ़ाने का प्रमुख कारण यह है कि पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में विकास के अनेक नए आयाम स्थापित किए गए हैं। आज वैश्विक स्तर पर इसरो छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी के रूप में स्थापित हो चुका है।

भारत, पूरे विश्व में, पहला देश है जिसने चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सलतापूर्वक उतार लिया है। अन्यथा, विश्व का कोई भी देश, अमेरिका, रूस एवं चीन सहित, अभी तक चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर अपना यान उतारने में सफल नहीं हो सका है। निश्चित ही भारत की यह सफलता न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व के समस्त देशों के लिए गर्व का विषय होनी चाहिए। 

यदि चन्द्रयान-3 अपने उद्देश्यों में सफल हो जाता है जैसे चन्द्रमा पर पानी उपलब्ध है अथवा नहीं, चन्द्रमा पर किस प्रकार के खनिज पदार्थ (सोना, प्लेटिनम, टाइटेनियम, यूरेनियम, आदि) रासायनिक पदार्थ, प्राकृतिक तत्व, मिट्टी एवं अन्य तत्व पाए जाते हैं, आदि का पता लगने पर इस जानकारी का लाभ भारत के साथ ही पूरे विश्व को भी होने जा रहा है। परंतु, पश्चिमी देशों में कुछ तत्व भारत की इस महान उपलब्धि को सकारात्मक दृष्टि से न देखते हुए इस संदर्भ में अपनी नकारात्मक सोच को आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं। 

दरअसल, वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था आज बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था का रूप ले चुकी है एवं इस अर्थव्यवस्था पर अभी तक केवल कुछ विकसित देशों, अमेरिका, रूस, चीन, कनाडा, ब्रिटेन आदि का वर्चस्व रहा है। परंतु, अब चूंकि भारत इस क्षेत्र में अपनी गहरी पैठ बनाता हुआ दिखाई दे रहा है अतः विकसित देश भारत की इस महान उपलब्धि को पचा नहीं पा रहे हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में हाल ही के समय में भारत का एक तरह से वर्चस्व स्थापित होता दिखाई दे रहा है। 

आज पूरी दुनिया ही अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत का लोहा मानने लगी है। भारत ने इस क्षेत्र में अमेरिका, रूस एवं चीन जैसे देशों के एकाधिकार को तोड़ा है। भारत आज समूचे विश्व में सैटेलाइट के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण, मौसम के सम्बंध में भविष्यवाणी और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से ही संचालित होती हैं,  अतः संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग आज समस्त देशों के बीच बढ़ रही है। 

चूंकि भारतीय तकनीक तुलनात्मक रूप से बहुत सस्ती है अतः कई देश अब इस सम्बंध में भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इन परिस्थितियों के बीच चंद्रयान-3 की कम लागत में सफल लैंडिंग के बाद वैश्विक स्तर पर व्यवसायिक तौर पर भारत के लिए संभावनाएं पहले से अधिक बढ़ गयी हैं। आज भारतीय इसरो की, कम लागत और सफलता की गारंटी, सबसे बड़ी ताकत बन गयी है। 

अंतरिक्ष बाजार में भारत की धमक का यह स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहा है। भारतीय इसरो अपने 100  से अधिक अंतरिक्ष अभियान (चन्द्रमा मिशन, मंगल मिशन, स्वदेशी अंतरिक्ष शटल, एवं चन्द्रयान-3 सहित) सफलतापूर्वक सम्पन्न कर चुका है। इसलिए कई विकसित देश भारत की इस असाधारण सफलता को पचा नहीं पा रहे हैं। पूर्व में भी कुछ विकसित देश भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम को सफल होने से रोकने हेतु कुछ बाधाएं खड़ी करने के प्रयास कर चुके हैं। कई बार तो कुछ भारतीय वैज्ञानिकों को ही निशाना बनाने के प्रयास भी किए गए हैं। 

भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान कार्य 60 के दशक में प्रारम्भ हुआ था एवं वर्ष 1969 में देश में इस कार्य को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से इसरो (भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संस्थान) की स्थापना की गई थी। इसरो ने पिछले 54 वर्षों के अपने कार्यकाल में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कुछ देश तथा निजी कम्पनियां अंतरिक्ष अनुसंधान का वाणिज्यिक उपयोग करने हेतु प्रयासरत हैं। 

वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार 45,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था जो आगे आने वाले समय में 1 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अमेरिका की भागीदारी 56.4 प्रतिशत, यूनाइटेड किंगडम की 6.5 प्रतिशत, कनाडा की 5.3 प्रतिशत, चीन की 4.7 प्रतिशत एवं जर्मनी की 4.1 प्रतिशत है। अब भारत भी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी, जो वर्तमान में 2 प्रतिशत से कुछ अधिक (960 करोड़ अमेरिकी डॉलर) है, को तेजी से आगे बढ़ाना चाहता है। 

एक अनुसंधान रिपोर्ट (आर्थर डी लिटिल) में यह दावा किया गया है कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2040 तक 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। भारत ने इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु 6 मार्च 2019 को न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) को 100 करोड़ रुपए की अधिकृत शेयर पूंजी के साथ बैंगलोर में इसरो की वाणिज्यिक शाखा के रूप में स्थापित किया है। 

इसरो की स्थापना के बाद से ही भारत के लिये इसरो ने कई कार्यक्रमों एवं अनुसंधानों को सफल बनाया है। देश में दूरसंचार, प्रसारण और ब्रॉड्बैंड अवसंरचना के क्षेत्र में विकास के लिए इसरो ने उपग्रह संचार के माध्यम से कार्यक्रमों को चलाया है। इन उपग्रहों के माध्यम से भारत में दूरसंचार,  टेलीमेडिसिन,  टेलीविजन,  ब्रॉडबैंड,  रेडियो,  आपदा प्रबंधन,  खोज और बचाव अभियान जैसी सेवाएं प्रदान कर पाना एवं मौसम पूर्वानुमान, संसाधनों की मैपिंग आदि करना संभव हुआ है। 

वर्ष 2020 में ही केंद्र सरकार ने उपग्रहों की स्थापना और संचालन के क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआइ की अनुमति निजी क्षेत्र को दी थी, जिसके परिणामस्वरूप विगत तीन वर्षों में देश में लगभग 150 नए स्टार्टअप्स प्रारम्भ हुए हैं। अप्रैल 2023 में,  भारत सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 की घोषणा की है। यह नीति भारत के अंतरिक्ष विभाग की भूमिका को बढ़ाएगी और अनुसंधान, शिक्षा, स्टार्ट-अप और उद्योग को बढ़ावा देगी।  भारत की अंतरिक्ष नीति अंतरिक्ष गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में निजी भागीदारी की परिकल्पना करती है और उसे प्रोत्साहित करती है। यह नीति भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलती है, जिससे निजी क्षेत्र को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में सक्रिय भूमिका निभाने का मौका मिलता है। इसका उद्देश्य भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में शामिल विभिन्न संस्थानों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करना भी है।

कुछ दशक पहले वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में कुछ ही देशों का वर्चस्व था। भारतीय विज्ञानियों की मेहनत एवं दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि इस मोर्चे पर भारत अब विकसित देशों के साथ खड़ा है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर भारत की साख बढ़ाने का प्रमुख कारण यह है कि पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में विकास के अनेक नए आयाम स्थापित किए गए हैं। आज वैश्विक स्तर पर इसरो छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी के रूप में स्थापित हो चुका है। 

वर्ष 2014 में भारत विश्व में पहली बार में ही सफलतापूर्वक मंगल गृह पर पहुंचने वाला देश बन चुका है। हाल ही में इसरो ने रीयूजेबल लांच व्हिकल (आरएलवी) के प्रक्षेपण में बड़ी सफलता हासिल की है। यह उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित कर वापस लौट आएगा, जिससे न केवल इसकी लागत में कमी आएगी, बल्कि मानव को अंतरिक्ष में घुमाने में भी इसका प्रयोग किया जा सकेगा। वर्ष 2024 तक अंतरिक्ष में मानव एवं रोबोट को भेजने की योजना है। 

एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 17,000 छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जाना है। इसके लिये इसरो ने SSLV (Small Satellite Launch Vehicle)  का निर्माण किया हैअब PSLV तथा SSLV मिलकर भविष्य में उपलब्ध होने वाले बाजार के लिये कम लागत पर लोजिस्टिक उपलब्ध करा सकते हैं।

भारत में पहले से ही डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम तथा स्मार्ट सिटी जैसे मिशन चलाए जा रहे हैं। यह कार्यक्रम भारत में न्यू स्पेस स्टार्टअप को सहयोग प्रदान कर कर रहे हैं। ऐसे स्टार्टअप विभिन्न तकनीकों और सेवाओं का निर्माण करते हुए इसरो के वैश्विक उपभोक्ता वर्ग (देश तथा निजी संस्थान) को आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। 

इस प्रकार इसरो और स्टार्टअप तथा विभिन्न निजी कम्पनियां आपस में मिलकर वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। अमेरिका और पश्चिमी देशों के बेहद महंगे स्पेस मिशनों के मुकाबले भारत की अंतरिक्ष यात्रा चूंकि काफी मितव्ययी है, ऐसे में दुनिया के आर्थिक रूप से पिछड़े देश इसरो के माध्यम से अपने उपग्रह लांच कर पाएंगे। 

स्वदेशी उपग्रह के निर्माण और उपग्रह प्रक्षेपण की कम तुलनात्मक लागत के कारण वैश्विक स्तर पर भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। 2017 में इसरो ने कीर्तिमान स्थापित करते हुए 104 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया था, जिसमें 101 स्वदेशी उपग्रह थे। इस उपलब्धि के कारण भारत उपग्रहों के प्रक्षेपण करने वाले पसंदीदा देश के रूप में उभरा है।

(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)