भारतीय सेना पर अपनी घटिया सियासत से बाज आयें, ममता बनर्जी!

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन दिनों केंद्र की मोदी सरकार से जानें क्यों बुरी तरह से खार खायी दिख रही हैं। मोदी सरकार की नोटबंदी के बाद से ही ममता बनर्जी केंद्र सरकार के प्रति अत्यंत आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं। वे केंद्र पर निशाना साधने के लिए तरह-तरह के दाँव-पेंच आजमाने में लगी हैं। पहले उन्होंने दिल्ली के स्वघोषित ईमानदार और महाविवादित मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के साथ आजादनगर में नोटबंदी के खिलाफ रैली की, तो फिर पटना से भी उन्होंने केंद्र पर निशाना साधा। यहाँ तक कि पटना से रैली करके लौटते समय हवा में ही उनके विमान में कुछ तकनीकी खराब आ गई और फिर लैंडिंग के लिए सुभाष चन्द्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से संभवतः तकनिकी कारणों के मद्देनज़र अनुमति मिलने में ज़रा देर हुई तो इसके लिए भी उन्होंने केंद्र को जिम्मेदार ठहरा दिया। उनकी पार्टी का कहनाम रहा कि विमान में खराबी होने के बावजूद उसे लैंडिंग के लिए अनुमति मिलने में देरी कराना ममता को मारने के लिए केंद्र की साज़िश थी। कहना गलत नहीं होगा कि नोटबंदी के बाद ममता बनर्जी का केंद्र के प्रति विरोध अब सिर्फ राजनीतिक विरोध तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि नफ़रत की सारी हदों को पार कर चुका है। इसी कारण वे तथ्यों-तर्कों को ताक पर रखते हुए किसी भी बात को केंद्र से जोड़कर आरोप लगाने में लग जा रही हैं। इसी क्रम में अब उन्होंने पश्चिम बंगाल में भारतीय सेना के अभ्यास को भी केंद्र की साज़िश करार दे दिया है।

सवाल ये है कि आखिर ममता बनर्जी सेना को लेकर इतने डर और संशय में क्यों हैं ? ये किसी दूसरे देश की सेना तो है नहीं, उसी देश की सेना है, ममता बनर्जी जिस देश की वासी हैं। भारतीय सेना ने हमेशा लोकतान्त्रिक व्यवस्था का सम्मान किया है, अब उस सेना के लिए ममता बनर्जी का ये कहना कि वो केंद्र के इशारे पर बंगाल में तख्तापलट करने आई है, न केवल निंदनीय बल्कि बेहद शर्मनाक भी है।

दरअसल पिछले दो-एक दिनों से पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भारतीय सेना के कुछ जवानों की मौजूदगी सामने आई है, इसे लेकर ममता बनर्जी केंद्र पर हमलावर रुख अपना ली हैं। उनका कहना है कि केंद्र सरकार सेना के जरिये हमें डराने और तख्तापलट करने की कोशिश कर रही है। इस बात को लेकर वे सचिवालय में ही डटी रहीं। उनका आरोप है कि प्रदेश सरकार को किसी प्रकार की सूचना दिए बगैर ही सेना  बीते गुरुवार को राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो पर पलसित और दनकुनी के दो टोल प्लाजा पर सेना तैनात की गई है जो ‘अभूतपूर्व और गंभीर मुद्दा है।’ उन्होंने इसके विरोध करते हुए राज्य सचिवालय में ही डेरा डाल लिया। हालांकि जब सेना द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि वो यहाँ सिर्फ अपने अभ्यास के लिए आई है, तो ममता बनर्जी के इस तथ्यहीन आरोप की पोल भी खुल गई। सेना ने इस पूरे मसले पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस तरह का अभ्यास पूरे देश में आर्मी सालाना तौर पर करती रहती है। इस तीन दिवसीय अभ्यास का शुक्रवार को आखिरी दिन है।

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सेना के उक्त स्पष्टीकरण के बावजूद ममता बनर्जी के तेवरों में कोई विशेष कमी आती नहीं दिख रही है। उन्होंने अपने आधारहीन आरोपों के लिए न तो माफ़ी मांगी है और न ही खेद ही प्रकट किया है। सवाल ये है कि आखिर ममता बनर्जी सेना को लेकर इतने डर और संशय में क्यों हैं ? ये किसी दूसरे देश की सेना तो है नहीं, उसी देश की सेना है, ममता बनर्जी जिस देश की वासी हैं। भारतीय सेना ने हमेशा लोकतान्त्रिक व्यवस्था का सम्मान किया है, अब उस सेना के लिए ममता बनर्जी का ये कहना कि वो केंद्र के इशारे पर बंगाल में तख्तापलट करने आई है, न केवल निंदनीय बल्कि बेहद शर्मनाक भी है।

गौरतलब है कि वो भारतीय सेना ही है, जो सीमा पर निरन्तर और अथक रूप से अपनी जान की परवाह किए बगैर अडिग रहती है ताकि इस देश के आम आदमी से लेकर ममता बनर्जी जैसे बड़े-बड़े सियासतदान तक चैनों-सुकून से अपने घरों में सो सकें। चीन-पाकिस्तान जैसे संदिग्ध पड़ोसियों से घिरे होने के बावजूद भी देश अगर निडर होकर प्रगति की तरफ बढ़ रहा है, तो सिर्फ इस विश्वास पर कि सीमा पर हमारी सेना के जवान खड़े हैं, जिनके भारत की तरफ कोई भी गलत नज़र से नहीं देख सकता। मगर, ममता बनर्जी शायद भारतीय सेना की इस महानता और अपरिमित योगदान को भूल गई हैं, तभी केंद्र के प्रति अपने राजनीतिक अंधविरोध में सेना को भी घसीटने का दुस्साहस कर रही हैं।

चिटफंड घोटाले से लेकर अवैध बांग्लादेशियों को संरक्षण देने जैसे आरोपों के कारण ममता बनर्जी की छवि पहले से ही काफी ख़राब हो चुकी है, तिसपर उनकी ये अगंभीर और विवादास्पद गतिविधियाँ उनकी बची-खुची छवि को भी ले बीतेंगी। उचित होगा कि समय रहते वे सचेत हो जाएँ, अन्यथा जनता के दरबार में जानें पर इसका बड़ा खाम्मियाजा उन्हें चुकाना पड़ेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)