आखिर किस मुँह से मोदी की भाषा पर सवाल उठा रहे हैं, मनमोहन सिंह !

और सबकी बात तो छोड़िये, ये पत्र लिखने वाले मनमोहन सिंह को बतौर प्रधानमंत्री अपनी जनवरी, 2014 की वो प्रेसवार्ता याद करनी चाहिए, जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी को देश के लिए ‘विनाशकारी’ ही बता दिया था। उस समय कहाँ गयी चली थी प्रधानमंत्री पद की गरिमा और मर्यादा ? देखा जाए तो अपनी नीति-पंगुता और मौन के कारण देश की अर्थव्यवस्था का विनाश वास्तव में मनमोहन सिंह ने किया था, पर मोदी ने तो उनके लिए कभी ‘विनाशकारी’ जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया। लेकिन, मनमोहन सिंह ऐसा करने के बावजूद आज आखिर किस मुँह से मोदी की भाषा पर सवाल उठा रहे हैं ?

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कभी अपने मौन  के लिए प्रसिद्ध हुआ करते थे। अब अक्सर वर्तमान प्रधानमंत्री पर हमला बोलने के लिए मुखर दिखाई देते हैं। इस बार वह अपने मौन या बोलने के लिए चर्चा में नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रपति को लिखा गया उनका पत्र चर्चा में है। इसमें नरेंद्र मोदी द्वारा कांग्रेस पर हमला बोलने के प्रति नाराजगी जाहिर की गई है। मनमोहन सिंह ने मोदी की भाषा पर ऐतराज़ जताया है। वहीं कांग्रेस के दिग्गजों द्वारा समय-समय पर दिए गए बयानों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है।

मनमोहन सिंह यह भूल गए कि नरेंद्र मोदी की तरफ एक उंगली उठाने पर चार उंगली अपनी ही तरफ उठनी है।  वैसे इस बात पर यकीन करना मुश्किल है कि मनमोहन सिंह ने अपनी मर्जी से राष्ट्रपति को पत्र लिखा होगा। देश को उनके बारे में कोई गलतफहमी नहीं है। बिडंबना यह है कि कांग्रेस ने अब भी उन्हें आगे करने से तौबा नहीं की है। यूपीए सरकार में उन्हें आगे रखा गया था। फिर बहुत कुछ हुआ, जिसके दाग आज भी कांग्रेस के दामन पर हैं। फिर नोटबन्दी पर उन्हें आगे किया गया। अब मनमोहन फिर मोर्चे पर हैं। इस बार उन्होंने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है। पत्र में लिखा है कि भारत के प्रमुख होने के कारण राष्ट्रपति की बड़ी जिम्मेदारी होती है, अतः वह प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट को सलाह और मार्गदर्शन दें। 

दरअसल मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा था कि  कांग्रेस के नेता कान खोलकर सुन लीजिए, अगर सीमाओं को पार करोगे तो ये मोदी है, लेने के देने पड़ जाएंगे। जाहिर है कि यह कांग्रेस द्वारा लगाए जा रहे आरोपों का राजनीतिक जवाब था। मोदी को जाने कितनी बार भला-बुरा कहने वाली कांग्रेस में इतना सुनने का धैर्य होना चाहिए। लेकिन, मनमोहन सिंह ने राष्ट्रपति को लिखा है कि  प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस को धमकाने का काम कर रहे हैं। इस चिट्ठी में मनमोहन सिंह के अलावा कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें ए के एंटनी, गुलाम नबी आजाद, पी. चिदंबरम, मल्लिकार्जुन खड़गे, दिग्विजय सिंह, आनन्द शर्मा, कर्ण सिंह, अंबिका सोनी, अशोक गहलोत,  मोतीलाल बोरा, अहमद पटेल, मुकुल वासनिक शामिल हैं।

देखा जाए तो इनमें कई नाम तो ऐसे हैं, जिन्हें इस प्रकार के मजमून पर हस्ताक्षर करने का नैतिक अधिकार ही नहीं है। कारण कि इनमें तमाम लोग भाषण वीर के रूप में ही विख्यात हैं। खासतौर पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर इन्होंने अनगिनत बार अमर्यादित टिप्पणी की है। लेकिन, तब एक बार भी मनमोहन सिंह को मर्यादा का ध्यान नहीं आया। सिंह साहब को वह दिन तो याद ही होगा, जब उनकी हाईकमान सोनिया गांधी ने नरेंद्र सिंह को ‘मौत का सौदागर’ कहा था। लेकिन, मनमोहन सिंह को तब बिलकुल बुरा नहीं लगा था।

मनमोहन सिंह को अपने उन नेता के बयानों पर भी विचार कर लेना चाहिए जिनके हस्ताक्षर इस पत्र में नहीं हैं। राहुल गांधी पिछले चार वर्षों से जिस प्रकार के बयान दे रहे है, उनसे मनमोहन अनभिज्ञ नहीं होंगे। नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने में उन्हें किसी प्रकार का कोई संकोच नहीं होता।  अनेक बार वह मर्यादा का उल्लंघन करते हैं। लेकिन, क्या मजाल जो कभी मनमोहन सिंह ने उन्हें कोई सलाह दी हो।

और सबकी बात तो छोड़िये, ये पत्र लिखने वाले मनमोहन सिंह को बतौर प्रधानमंत्री अपनी वो प्रेसवार्ता (संभवतः अंतिम) याद करनी चाहिए, जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी को देश के लिए ‘विनाशकारी’ ही बता दिया था। उस समय कहाँ गयी थी प्रधानमंत्री पद की गरिमा और मर्यादा ? इसके बावजूद आज मनमोहन सिंह आखिर किस मुंह से मोदी की भाषा पर सवाल उठा रहे हैं ?    

मनमोहन सिंह के पत्र में एक बात गौर करने वाली है। इसकी भाषा लगभग वैसी ही है, जिसका प्रयोग राहुल गांधी करते हैं। कुछ वाक्यों में दिलचस्प समानता है। राहुल कहते रहे हैं कि नरेंद्र मोदी धमकी देते है, डराना चाहते है। विपक्ष की आवाज दबाना चाहते है। लेकिन वह दबाव के सामने झुकेंगे नहीं। मनमोहन के पत्र की भाषा और भाव भी लगभग यही हैं। 

हालांकि कांग्रेस का कोई नेता यह बताने की स्थिति में नहीं है कि नरेंद्र मोदी ने उनकी आवाज को कब दबाया है ? कब उन्हें बोलने से रोका गया है ? बल्कि देश के इतिहास में सर्वाधिक राजनीतिक हमले नरेंद्र मोदी पर ही हुए हैं। यह क्रम उनके गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर आज तक जारी है। 

दो दशकों से चल रहे विरोधियों के हमले से परेशान तो नरेंद्र मोदी को होना चाहिए। विपक्ष के अदना प्रवक्ता से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक सब नरेंद्र मोदी पर हमलावर रहते हैं। लेकिन, नरेंद्र मोदी आज तक इससे विचलित नहीं हुए। कई बार तो ऐसा लगता है, जैसे उन्हें इन दुर्भावनापूर्ण हमलों से आगे बढ़ने की ऊर्जा और प्रेरणा मिलती है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)