तीन तलाक पर रोक के बाद जश्न मना रही मुस्लिम महिलाएं, मौलानाओं के चेहरे हुए गमगीन !

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। अब सरकार को अपना काम करना है। सरकार बेशक मुसलमान औरतों के हक में खड़ी है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को ख़त्म किया है तो इसमें सरकार की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वो इस मसले पर राजनीति नहीं करना चाहती। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि तीन तलाक के मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। अब तय मानिए कि मुसलमान औरतों के हक में नया कानून बनने के बाद भारत के मुसलमान दुनिया भर में अपने समकक्षों को आधुनिकता का मार्ग दिखायेंगे।

सर्वोच्च न्यायालय के तीन तलाक पर आए ऐतिहासिक फैसले के बाद खबरिया टीवी चैनलों पर बैठे मौलवियों के गमगीन चेहरे और फैसले के स्वागत में देश के अलग-अलग भागों में जश्न मनाती मुसलमान औरतों के चेहरे के फर्क को समझिए। फैसले से दोनों की जिंदगी बदलने वाली है। जहां मौलवी खारिज होंगे अपने समाज में, वहीं मुसलमान औरतें बेहतर भविष्य की तरफ बढ़ेंगी। दरअसल तीन तलाक के खिलाफ आवाजें हमेशा उठती रहीं हैं, लेकिन कथित तौर पर मजहब से जुड़ा मसला होने की वजह से किसी राजनीतिक दल या सरकार ने इस पर कभी खुला स्टैंड नहीं लिया। और अंधकार युग में जीने वाले मौलवी तो चाहते ही थे कि जो व्यवस्था चल रही है, वो जारी रहे।

दुनिया में कई ऐसे मुस्लिम देश हैं, जहां वर्षों पहले ही तीन तलाक को बैन कर दिया गया था। इन देशों की संख्या काफी अधिक है। इसमें तुर्की, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों के नाम भी शामिल हैं। इसके बावजूद भारत में ट्रिपल तलाक की कुरीति बेशर्मी से जारी थी। इसके चलते ना जाने कितनी बेबस और निरीह औरतों की जिंदगियां बर्बाद हुई। ट्रिपल तलाक पर चलने वाली बहस के दौरान देश की कथित प्रगतिशील बिरादरी कहीं नहीं दिखाई दे रही थी। ये सेक्युलर ब्रिगेड चुप रही।

सांकेतिक चित्र

दादरी में इखलाक के कत्ल पर अपने पुरस्कार वापस करने वाले लेखकों से लेकर मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन को बचाने के लिए मोमबती मार्च निकालने वाले तक सब गायब हो गए थे। इनकी लंबी चुप्पी डरावनी सी लगती है। ये क्यों नहीं उन मुस्लिम नेताओं और संगठनों के खिलाफ खड़े हुए जो मुसलमान औरतों को उनका वाजिब हक दिलवाने के रास्ते में अवरोध खड़े हो गए थे? क्या इनसे यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए?

अलबत्ता दो प्रगतिशील कही जाने वाली मुस्लिम महिला नेत्रियों फिल्म स्टार शबाना आजमी और माकपा की वरिष्ठ नेत्री और पूर्व सांसद सुभाषनी अली ने  तीन तलाक और बहु-विवाह प्रथा को समाप्त किये जाने की मांग तब की, जब मामला गरमाया। जिस काग्रेस के राजीव गाँधी द्वारा प्रधानमंत्री रहते हुए शाहबानो मामले में वोट बैंक की राजनीति के लिए न्यायालय के फैसले को पलटकर मुस्लिम औरतों के साथ भारी अन्याय किया गया था और कांग्रेस भी अबतक इस मामले में बचकर चल रही थी, लेकिन न्यायालय का फैसला आते ही वो मुस्लिम महिलाओं के हक में खड़े होने का ढोंग करने लगी है। कांग्रेस को अपनी गिरेबान में झाँकना चाहिए।

मुसलमान औरतों के आंसू

सच में इस देश में मुसलमान औरतों का जीवन बेहद कष्टकारी रहा है। हिन्दी के संवेदनशील उपन्यासकार शानी ने ‘काला जल’ उपन्यास में मुसलमान परिवार में बहू पर होने वाली शब्द बाणों की वर्षा का विस्तार से जिक्र किया है कि किस तरह से बहू को तानें सुनने पड़ते हैं। इसे पढ़कर आप समझ जाएंगे कि किन विषम हालातों में मुसलमान औरत को शादी के बाद अपने ससुराल में रहना होता है।

ज मुसलमानों के पिछड़े होने का सबसे बड़ा कारण उस समाज की औरतों का पिछड़ापन ही है। तलाक के वास्तविक अर्थ, सही नियमों एवं शर्तों को भली-भाँति समझे बिना ही मर्दों ने औरतों पर तलाक से संबंधित नियम थोप दिए हैं, सिर्फ अपनी सुविधा के वास्ते। निस्संदेह मुस्लिम औरत आर्थिक रूप से स्वावलंबी नहीं है। वह आर्थिक रूप से पुरुष पर आश्रित है। अंधेरे और घुटन में सांसें ले रही हैं। शिक्षा  क्षेत्र में प्रवेश करने वाली औरतों में मुसलमान लड़कियों की संख्या बेहद मामूली है।

तीन तलाक के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के समक्ष चली बहस में ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील गौरतलाब है। उसके वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा नहीं है। कुरआन में तलाक के लिए पूरी प्रक्रिया बताई गई है। पैगंबर की मौत के बाद हनीफी में जो लिखा गया, वह बाद में आया है। उसी में तीन तलाक का जिक्र आया है। कुरआन में तीन तलाक का कहीं भी जिक्र नहीं है। कुरआन इस्लामिक शास्त्र है। लेकिन उन्होंने ये भी जोड़ दिया कि संविधान पर्सनल लॉ को संरक्षित करता है।

उन्होंने इसे आस्था का विषय बताते हुए इसकी तुलना भगवान राम के अयोध्या में जन्म से की थी। उन्होंने कहा कि हिंदुओं में आस्था है कि राम अयोध्या में पैदा हुए हैं। ये आस्था का विषय है। तीन तलाक पाप है और अवांछित है, लेकिन पर्सनल लॉ में कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए। यानी अपनी दलील में ऑल इंडिया मुस्लिम  पर्सनल लॉ बोर्ड ने ये मानते हुए भी कि ट्रिपल तलाक गलत है, इसके जारी रखने की वकालत की।

खैर, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। अब सरकार को अपना काम करना है। सरकार बेशक मुसलमान औरतों के हक में खड़ी है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को ख़त्म किया है तो इसमें सरकार की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वो इस मसले पर राजनीति नहीं करना चाहती। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि तीन तलाक के मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। अब तय मानिए कि मुसलमान औरतों के हक में नया कानून बनने के बाद भारत के मुसलमान दुनिया भर में अपने समकक्षों को आधुनिकता का मार्ग दिखायेंगे।

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)