काले धन के बाद अब बेनामी संपत्ति पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की तैयारी में सरकार

अच्छे दिन लाने के साथ सत्ता मे आई मोदी सरकार जनता के लिए अच्छे दिन ला रही है और भष्ट्राचारियों के लिए बुरे दिनों का आगाज कर चुकी है। सरकार के नोटबंदी के फैसले से कालेधन के जमाखोर जिस तरह छटपटा  कर अपने नोटों को इधर-उधर ठिकाने लगा और नष्ट कर बचने की कोशिश कर रहे हैं, ठीक कुछ उसी तरह अब बेनामी सम्पत्ति के मालिक भी अपने–अपने नाम को भष्ट्रचारियों की सूची मे आने से रोकने के लिए कवायदों में लग गए होंगे। मोदी सरकार ने बेनामी सम्पत्ति लेन–देन कानून 1988 को एक नवम्बर से लागू कर रियल स्टेट के क्षेत्र मे हलचल मचा दिया है। देखा जा सकता है कि मोदी सरकार अपने वादों की पूर्ति के लिए जो तैयारी कर रही थी, उसको कानूनी रुप देकर कालेधन और भष्ट्राचार पर जबरदस्त शिकंजा कस रही है।

मोदी सरकार ने बेनामी सौदा निषेध कानून 1988 को संशोधित कर अब नया क़ानून बेनामी संपत्ति लेनदेन अधिनियम-2016 पारित कर दिया है। सरकार द्वारा बनाया गया ये कानून पूरे देश मे 1 नवम्बर से लागू हो गया है। पुराने कानून मे जो कुछ कमजोरिया थीं, सरकार ने उन सब कामजोरियों को नये कानून मे दूर कर इसे मजबूत बनाने का प्रयास किया है।  पुराने कानून मे जहाँ अधिकतम तीन साल की कैद, जुर्माना या इन दोनों का प्रवधान था, नये कानून मे सजा की अवधि को संशेधित कर कानून को और कड़ा बनाने का प्रयास किया गया है। नये कानून मे सजा की अवधि को बढ़ाकर कम से कम छ महीने और अधिकतम सात साल कर दिया गया हैं।

मोदी सरकार ने बेनामी सौदा निषेध कानून 1988 को संशोधित कर अब नया क़ानून बेनामी संपत्ति लेनदेन अधिनियम-2016 पारित कर दिया है। सरकार द्वारा बनाया गया ये कानून पूरे देश मे 1 नवम्बर से लागू हो गया है। पुराने कानून मे जो कुछ कमजोरिया थीं, सरकार ने उन सब कामजोरियों को नये कानून मे दूर कर इसे मजबूत बनाने का प्रयास किया है।  पुराने कानून मे जहाँ अधिकतम तीन साल की कैद, जुर्माना या इन दोनों का प्रवधान था, नये कानून मे सजा की अवधि को संशेधित कर कानून को और कड़ा बनाने का प्रयास किया गया है। नये कानून मे सजा की अवधि को बढ़ाकर कम से कम छ महीने और अधिकतम सात साल कर दिया गया हैं। नए कानून मे गलत जानकारी देने वालों के लिए भी सजा का प्रवधान है। नये कानून मे दोषियों को जल्दी सजा दिलाने के लिए सरकार एक या एक से अधिक सत्र अदालत या विशेष अदालतों का निर्धारण कर सकती है। इस कानून मे एक एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त करने का भी प्रवधान किया गया है, जो इस कानून को तहत जब्त की जाने वाली सम्पत्तियों का प्रबंधन करेगा।

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बेनामी लेनदेन कानून 1988 मे संशोधन के लिए इस विधेयक को पिछले साल 13 मई को लोकसभा मे पेश किया गया था। उसके बाद इस विधेयक को संसद की स्थाई समिति के पास भेजा गया। समिति ने इसपर अप्रैल मे अपनी रिपोर्ट दी थी। लोकसभा मे यह विधेयक जुलाई मे पास हो चुका था और राज्यसभा मे विधेयक को दो अगस्त को पारित कर दिया गया है। विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक अब कानून का रुप ले चुका है।

सरकार के इस फैसले के बाद रियल स्टेट के क्षेत्र मे एकाएक जमीनों और मकानों की कीमत मे गिरावट दर्ज की गई है। बेनामी सम्पत्ति के मालिक अब इस प्रयास मे लगे हुए है कि किस तरह वे अपनी इस सम्पत्ति को नाम देकर अपने आप को जेल जाने से बचा सके। सरकार द्वारा बेनामी संपत्तियों की जांच के लिए दो सौ टीमें गठित की गई हैं, जो हाईवे से सति जमीनों समेत वीआईपी इलाकों की जमीनों और मकानों की जांच करने लगी हैं। दरअसल देस्ग के काले धन का एक बड़ा हिस्सा रियल स्टेट में लगा हुआ है, सरकार का यह कदम उस काले धन को उजागर करने के लिए भी है। अब जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि आगे काले धन की रोकथाम के लिए और भी कदम उठाए जाएंगे, तो कह सकते हैं कि अभी ये सिर्फ शुरुआत है, आगे काला धन धारकों की आफतें और भी बढ़ सकती हैं।

वैसे, सरकार द्वारा भष्ट्राचारियों के खिलाफ उठाए गये कदमों मे यह बेनामी संपत्तियों की जांच करवाना और क़ानून लाना एक बड़ा कदम माना जा रहा हैं। सरकार के इस फैसले के बाद सम्पत्ति को नामज़द कराने मे धांधली करने वालों की बैचनी बढ़ गयी है।  मोदी सरकार के अच्छे दिन के नारे को हथियार बनाकर विपक्ष द्वारा सरकार पर आरोप लगाए जा रहा था कि सरकार काम नही कर रही है। लेकिन अब सरकार अपने कामकाज से उन सब आरोपों का जवाब दे रही है। और यह भी साबित कर रही हैं कि वे किए गए वादे पूरे करने के लिए प्रतिबद्ध है। नोटबंदी और बेनामी संपत्ति पर नए क़ानून, एकाएक आये इन बड़े फैसलों से भष्ट्राचारी गहन चिन्तन मे है कि अब वे क्या करें, क्योंकि उनके सामने इस समय आगे कुआँ पीछे खाई वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है धीरे–धीरे ही सही पर अब देश की जनता मे उम्मीद जाग रही है कि अब देश में भष्ट्राचारियों के बुरे दिनों के साथ जनता के अच्छे दिन आ रहे हैं।

(लेखिका पत्रकारिता की छात्रा हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)