नए आधार वर्ष के कारण जीडीपी के बदले आंकड़ों पर सवाल क्यों?

नई सीरीज में आंकड़ों में उल्लेखनीय सुधार आया है। नई सीरीज संयुक्त राष्ट्र के मानकों के मुताबिक है और गणना के लिये जो तरीका अपनाया गया है, उसका कई नामचीन सांख्यिकीविदों ने समर्थन किया है। साफ है, नये आधार वर्ष पर सवाल खड़ा करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि मोदी सरकार ने आधार वर्ष में बदलाव लाकर किसी नई परंपरा की शुरुआत नहीं की है, बल्कि पुरानी परंपरा को ही आगे बढ़ाया है।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के 9 सालों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 6.7 प्रतिशत की दर से बढ़ी, जबकि मोदी सरकार के कार्यकाल में यह 7.3 प्रतिशत की दर से बढ़ी। सीएसओ ने संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान 4 वर्षों की विकास दर में 1 प्रतिशत से अधिक की कटौती की है।

दरअसल, केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) ने 2004-05 के बदले सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का आधार वर्ष बदलकर 2011-2012 किया है और बीते सालों के आंकड़ों की फिर से गणना की है, जिसपर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं। हालाँकि, ऐसा पहली बार नहीं किया गया है। पूर्व में भी आधार वर्ष में बदलाव किये जाते रहे हैं। जब जीडीपी गणना के लिये शामिल क्षेत्रों की प्रासंगिकता समाप्त हो जाती है, तो इसके आधार वर्ष में बदलाव किया जाता है।  

सांकेतिक चित्र (साभार : इण्डिया डॉट कॉम)

नये आधार वर्ष के आधार पर जीडीपी के नये आंकड़ों को सीएसओ और नीति आयोग ने मिलकर जारी किया है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के मुताबिक जीडीपी के नये जारी आंकडों में सेंसेक्स, खुदरा व थोक महंगाई, स्टॉक ब्रोकर, म्यूचुअल फंड कंपनी, सेबी, पीएफआरडीए एवं आईआरडीए आदि को शामिल किया गया है।

मुख्य सांख्यिकीविद प्रवीण श्रीवास्तव के मुताबिक खनन, उत्खनन और दूरसंचार सहित कुछ क्षेत्रों के आंकड़ों की पुनर्गणना के कारण आंकड़ों में अंतर आया है। नई सीरीज में शामिल प्राथमिक और माध्यमिक क्षेत्रों ने पुराने आधार वर्ष की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। खनन क्षेत्र एवं विनिर्माण क्षेत्र के प्रदर्शन में भी बेहतरी आई है।     

सवाल यह उठाये जा रहे हैं कि सप्रंग सरकार के कार्यकाल में ही क्यों जीडीपी वृद्धि दर में कमी आई? नोटबंदी के दौरान अर्थव्यवस्था में मजबूती कैसे आई? आदि। दरअसल, जीडीपी की नई गणना हेतु बहुत सारे नये प्रासंगिक क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जिनमें उक्त अवधि में तेज गति से वृद्धि हुई, इसीके कारण जीडीपी दर में बेहतरी आई है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि नई गणना पद्धति में शामिल किये गये नये क्षेत्रों में सुधार हेतु सरकार पहले से ही काम कर रही थी। इसलिये, नये आधार वर्ष के आधार पर गणना करने पर मोदी सरकार के कार्यकाल में जीडीपी के आंकड़े बेहतर  दिख रहे हैं।

यह कहना कि वित्त वर्ष 2016-17 में नोटबंदी के कारण अर्थव्यवस्था कमज़ोर पड़ गई थी, को पूरी तरह से सच नहीं माना जा सकता है। यह सच है कि नोटबंदी के कारण आर्थिक गतिविधियां कुछ समय तक स्थिर रहीं, लेकिन अप्रैल से अक्तूबर महीने तक विकास की गति तेज रही थी।

इसलिये, वित्त वर्ष 2017 में विकास दर 6.6 प्रतिशत रहा, लेकिन नई गणना में वैसे मौजूं क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जिनमें सुधार की गति ज्यादा तेज रही। इस वजह से जीडीपी वृद्धि दर उक्त वित्त वर्ष में बढ़कर 7.1 प्रतिशत हो गया। यह कहना भी गलत होगा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में रोजगार सृजन नहीं हुए। पे-रोल रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2017 से जून, 2018 तक 52 लाख नये रोजगार सृजित हुए।

मुख्य सांख्यिकीविद प्रवीण श्रीवास्तव के अनुसार सांख्यिकीय और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने नेशनल अकाउंट्स सीरीज को अद्यतन करने के लिए जटिल प्रक्रिया अपनाई है। नई सीरीज में आंकड़ों में उल्लेखनीय सुधार आया है। नई सीरीज संयुक्त राष्ट्र के मानकों के मुताबिक है और गणना के लिये जो तरीका अपनाया गया है, उसका कई नामचीन सांख्यिकीविदों ने समर्थन किया है। साफ है, नये आधार वर्ष पर सवाल खड़ा करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि मोदी सरकार ने आधार वर्ष में बदलाव लाकर किसी नई परंपरा की शुरुआत नहीं की है, बल्कि पुरानी परंपरा को ही आगे बढ़ाया है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)