कांग्रेस

कांग्रेस को समझना चाहिए कि अपने नेता के साथ खड़े होने और उसे ‘क्लीन चिट’ देने में फर्क है

चिदंबरम दोषी हैं या नहीं, ये फैसला तो न्यायालय करेगा लेकिन खुद एक वकील होने के बावजूद उनका खुद को बचाने के लिए कानून से भागने की कोशिश करना, सीबीआई के लिए अपने घर का दरवाजा नहीं खोलना, समझ से परे है। लेकिन अब जब आखिर लगभग 19 महीनों की जद्दोजहद के बाद सीबीआई चिदंबरम के लिए कोर्ट से पाँच दिन की

चिदंबरम की गिरफ्तारी पर कांग्रेस की बौखलाहट का असली कारण उसका डर है

कांग्रेस राज में चिदंबरम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बाद बड़ा रुतबा रखते थे। वित्त और गृह जैसे मंत्रालय उनके पास रहे थे। मगर इसका यह अर्थ नहीं कि भ्रष्टाचार के मामलों में उन्हें कोई रियायत दी जाए। आईएनएक्स मीडिया घोटाला मामले में अब उन्हें हिरासत में लिया गया है तो पूरी कांग्रेस के अन्दर बौखलाहट नजर आ रही है।

अनुच्छेद-370 हटने के बाद कश्मीर में हालात सामान्य रहना सरकार की बड़ी सफलता है!

जम्‍मू और कश्‍मीर में अब हालात सामान्‍य हो गए हैं। गत 5 अगस्‍त को केंद्र सरकार ने कश्‍मीर से अनुच्छेद-370 समाप्त करते हुए विशेष राज्‍य का दर्जा हटा दिया था। इसके पहले ही घाट में सुरक्षा प्रबंध चौकस थे और इसके बाद भी यहां लगातार व्‍यवस्‍थाएं पुख्‍ता बनी हुईं हैं।

अनुच्छेद-370 हटाने के विरोध में कांग्रेस के निरर्थक तर्क

सरकार के किसी कदम का विरोध करना अपनी जगह है, लेकिन इसे राष्ट्रीय हित के दायरे में ही होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन और अस्थाई अनुच्छेद को समाप्त करने के संकल्प पर अनेक पार्टियों का रुख चौकाने वाला था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने ट्वीट संदेश के जरिए सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए।

कश्मीर के राजनीतिक हल की बात करने वाले इस ‘राजनीतिक हल’ को क्यों नहीं पचा पा रहे?

कश्मीर में “कुछ बड़ा होने वाला है” के सस्पेंस से आखिर पर्दा उठ ही गया। राष्ट्रपति के एक हस्ताक्षर ने उस ऐतिहासिक भूल को सुधार दिया जिसके बहाने पाक सालों से वहां आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने में सफल होता रहा, लेकिन यह समझ से परे है कि कश्मीर के राजनैतिक दलों के महबूबा मुफ्ती, फ़ारूख़ अब्दुल्ला सरीखे नेता और कांग्रेस जो कल तक यह कहते थे कि कश्मीर समस्या का हल सैन्य कार्यवाही नहीं है बल्कि राजनैतिक है, वो मोदी सरकार के इस राजनीतक हल को क्यों नहीं पचा पा रहे हैं?

अनुच्छेद-370 हटाने का विरोध बताता है कि कांग्रेस ने पिछली गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है!

कांग्रेस की ऐतिहासिक भूल सुधारते हुए मोदी सरकार ने जम्‍मू-कश्‍मीर से धारा 370 को हटाने का ऐलान किया जिसके साथ जम्‍मू-कश्‍मीर को मिला विशेष राज्‍य का दर्जा भी खत्‍म हो गया। इसे मोदी सरकार की कुशल रणनीति ही कहेंगे कि मोदी विरोधी पार्टियां भी सरकार के फैसले का साथ दे रही हैं। इनमें आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल, एआईडीएमके और वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख हैं।

तीन तलाक बिल पर भी तुष्टिकरण की राजनीति के खोल से निकलने में नाकाम रही कांग्रेस

इसे नरेंद्र मोदी की राजनीतिक रणनीति की कामयाबी ही कहेंगे कि व्हिप जारी होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी के पांच सांसद मतदान के दौरान सदन से अनुपस्‍थित रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019’ को राज्यसभा ने 84 के मुकाबले 99 मतों से पारित कर दिया।

कांग्रेस-जेडीएस सरकार जैसे बनी थी, उसका गिरना अवश्यंभावी था!

कांग्रेस और जेडीएस सरकार के गठन से पहले न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी नहीं बनाया गया था। कर्नाटक में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ी इन दोनों पार्टियों ने बिना किसी एजेंडे के सरकार बनाई थी। कर्नाटक में कांग्रेस व जेडीएस ने भाजपा को रोकने के नाम पर गठबन्धन किया था। इनके पास अन्य कोई कार्यक्रम नहीं था। ऐसी सरकार के गिरने में चौंकाने वाली कोई बात नहीं, इसका ये हश्र अवश्यंभावी था।

सोनभद्र प्रकरण पर राजनीति कांग्रेस को फायदा नहीं, नुकसान ही पहुंचाएगी

इस खूनी खेल के लिए अगर कोई ज़िम्मेदार है तो सबसे पहले कांग्रेस उसके बाद समाजवादी और बसपा की पूर्ववर्ती सरकारें, जिन्होंने अपने राजनीतिक फायदे को देखा लेकिन गरीब आदिवासियों के लिये कुछ नहीं किया। अपना राजनीतिक वजूद ढूंढ रहे कांग्रेस परिवार को सोनभद्र जैसी घटना के बाद राजनीति करने से बचना चाहिए था,

‘एजेंडा पहले ही नहीं था, अब संख्याबल भी नहीं रहा, फिर भी कुमारस्वामी से कुर्सी नहीं छूट रही’

कर्नाटक का सियासी घमासान राज्‍य के संचालन को कितना नुकसान पहुंचा रहा होगा, इस दिशा में कोई सोचने को तैयार नहीं है। हाथी निकल गया लेकिन पूंछ अटक गई है। पूरी कैबिनेट जा चुकी लेकिन कुमार स्‍वामी अभी भी बालहठ की तरह अपना पद पकड़े हुए हैं, मानो उनके सत्‍ता में बने रहने से रातोरात कोई चमत्‍कार हो जाएगा।