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दीनदयाल उपाध्याय : जिनके लिए राजनीति साध्य नहीं, साधन थी !

भारतीय राजनीति में दीनदयाल जी का प्रवेश कतिपय लोगों को नीचे से ऊपर उठने की कहानी मालुम पड़ती है। किन्तु वास्तविक कथा दूसरी है। दीनदयाल जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में रहकर जिस आंतरिक व महती सूक्ष्म भूमिका को प्राप्त कर लिया था, उसी पर वे अपने शेष कर्म शंकुल जीवन में खड़े रहे। उस भूमिका से वे लोकोत्तर हो सकते थे, लोकमय तो वो थे ही। देश के चिन्तक वर्ग को कभी-कभी लगता है कि

मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का दमन करने वाला है तीन तलाक, लगना चाहिए प्रतिबन्ध

तीन तलाक का मामला चर्चा में बना हुआ है। 1937 में मुस्लिम पर्सनल क़ानून यानि शरिया में मिले इस अधिकार ने देश भर में लाखों नुस्लिम महिलाओं की ज़िन्दगी के साथ खिलवाड़ किया है। स्त्री-पुरुष असमानता सहित मुस्लिम औरतों के बुनियादी हक़ से उन्हें वंचित वाली इस शरियाई व्यवस्था पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग करते हुए 50,000 से ज्यादा दस्तख़त वाला एक मांगपत्र प्रधानमंत्री को भेजा जा चुका है और अब

यूपी चुनाव : अपने विकासवादी एजेंडे के साथ प्रदेश में सबसे मज़बूत नज़र आ रही भाजपा

उत्तर प्रदेश सात चरणों में से तीन चरण के चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। प्रदेश की आवाम लोकतंत्र के इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मना रही है। यही कारण है कि जैसे -जैसे मतदान के चरण आगे बढ़ रहे है, वोटिंग फीसद भी 2012 के मुकाबले बढ़ रहा है। मतदान प्रतिशत बढ़ना अक्सर भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होता है, इसलिए ये सपा-कांग्रेस गठबंधन की चिंता को बढ़ा रहा है, तो भाजपा की उम्मीदों को और

लाल आतंक : केरल में वामपंथी हिंसा का शिकार हुए भाजपा नेता रवींद्रनाथ

अभी सी.पी.एम. के कार्यकर्ताओं के हाथों केरल भाजपा के युवा कार्यकर्ता निर्मल (20) की हत्या के एक सप्ताह भी नहीं बीते कि यहाँ एक और भाजपा नेता की मौत मार्क्सवादी हिंसा में हो गयी है। भाजपा के कडकल पंचायत समिति के अध्यक्ष एवं सेवानिव्रित पुलिस इंस्पेक्टर रवींद्रनाथ (58) दिनांक 2 फ़रवरी को मार्क्सवादियों के घातक हमले में घायल हो गए थे। उनके सर पर गंभीर चोटें आई थीं। इस चोट के कारण

राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद की बहस

तीन चरणों का चुनाव समाप्त होने के बाद अब यूपी के सियासी तापमान का पारा पश्चिम से पूरब की ओर बढ़ चला है। आगामी चरणों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं लिहाजा सभी दलों के नेता पूरब का रुख कर चुके हैं। यूपी चुनाव में वंशवाद और परिवारवाद की बहस भी खूब हो रही है। लगभग हर एक पत्रकार वार्ता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित भाजपा के आला नेताओं से यह सवाल पूछा जाता है।

‘आप’ सरकार के दो साल : नहीं पूरे हुए वादे, ठप्प पड़ा दिल्ली का विकास

दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सत्ता में आए दो वर्ष हो चुके हैं। इन दो वर्षों के कार्यकाल के दौरान दिल्ली की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। दो साल के कार्यकाल के आधार पर यदि केजरीवाल सरकार का मूल्यांकन करें तो बेहद निराश करने वाली स्थिति नज़र आती है। यह बात तो जगजाहिर है कि केजरीवाल के अभी तक के कार्यकाल का अधिकाधिक समय केंद्र सरकार और दिल्ली के पूर्व

वादों की कसौटी पर विफल आम आदमी पार्टी सरकार

विगत १४ फ़रवरी को दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के दो साल पूरे हो गए । दो साल किसी भी सरकार के काम-काज का आंकलन करने के लिए काफी होता है । ‘आप’ सरकार दो साल तक केंद्र सरकार से टकराव के रास्ते पर चलती रही और उनके कुछ मंत्री विवादों में पड़े । संभव है कि आम आदमी पार्टी ने टकराव को ही अपनी राजनीति का आधार बनाया हो, लेकिन लोकतंत्र में जनहित के कामों को लेकर

केरल में नहीं थम रही संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रति वामपंथी हिंसा, फिर हुई हत्या

केरल में पिनाराई विजयन के नेतृत्व में चल रही वाम गठबंधन की सरकार अपने कार्यकर्ताओं के द्वारा की जा रही हिंसा पर लगाम लगाने में लगातार नाकामयाब हो रही है। अपितु हिंसा और दमन का चक्र अब इस ओर इशारा करने लगा है कि सी.पी.एम. के शीर्ष नेताओं के शह पर ही ये घटनाएं हो रही हैं। दिनांक 13 फ़रवरी को अहले सुबह चार – साढ़े चार बजे के करीब भाजपा युवा मोर्चा के 20 वर्षीय कार्यकर्ता की हत्या

मनमोहन सिंह पर प्रधानमंत्री मोदी के तंज़ से इतना बौखलाई क्यों है कांग्रेस ?

शब्दों के अर्थ को अनर्थ के फ्रेम में फिटकर किस तरह वितंडा खड़ा किया जाता है, यह कोई कांग्रेस से सीखे। संभवतः कांग्रेस खुद को भाषा की शुचिता और संसदीय मर्यादा का एकमात्र व्याकरणाचार्य और पैमाना समझ ली है, अन्यथा वह संसदीय विमर्श के शब्दों पर खुद को उपहास का पात्र नहीं बनाती। आश्चर्य है कि जब उसके सदस्य, संसद और सड़क पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिटलर, मुसोलिनी और

दो सालों के शासन में पूरी तरह से नाकाम रही है केजरीवाल सरकार, बिगड़ी दिल्ली की हालत

विकास के नारे के साथ एक दिल्ली के मुख्यमंत्री बनाने वाले केजरीवाल की आप सरकार को दो साल का समय पूरा हो चुका है। दिल्ली के मतदाताओं को स्वच्छ राजनीति, लुभावने वादों और विकास का सब्जबाग दिखाकर केजरीवाल सत्ता तक तो पहुंच गए, लेकिन उनके कार्यकाल में विकास के नाम पर एक पत्ता भी नहीं हिला है। दो साल का समय बीता तो सिर्फ दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग और केंद्र