राहुल गाँधी

कांग्रेस की सल्तनत तो चली गयी, लेकिन अकड़ अब भी सुल्तानों वाली है !

राजा के सिपहसालारों का काम होता है, वह राजा को हमेशा सच बताएं। अब राजा सच सुने या नहीं, यह उसपर निर्भर करता है। राजहित में यह ज़रूरी है कि राजा अपने सलाहकारों की बात सुने और उस पर अमल भी करे। जो ऐसा नहीं करता उसका पतन अवश्यम्भावी हो जाता है। देश की सबसे पुरानी पार्टी है इंडियन नेशनल कांग्रेस, फ़िलहाल इसी तरह के संकट से गुजर रही है।

राहुल गांधी की कार पर चले पत्थर को मुद्दा बनाकर खुद फँस गयी है कांग्रेस !

प्रजातंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। गुजरात में राहुल गांधी की कार पर पत्थर फेंकना निंदनीय व आपराधिक कृत्य है। गुजरात सरकार ने इसे गंभीरता से लिया। पत्थर फेंकने वाले को जेल भेजा। अब कानून अपना कार्य करेगा। लेकिन इस प्रकरण ने कुछ प्रश्न भी उठाए हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की कार पर एक पत्थर क्या फेंका गया कि लोकतंत्र खतरे में पड़ गया। एक साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय

गुजरात में पहले से ही बदहाल कांग्रेस अब ‘सूपड़ा साफ’ होने की ओर बढ़ रही है !

राहुल गाँधी ने कहा कि उन्हें बिहार में घटित हुए सियासी घटनाक्रम के बारे में पहले से अंदेशा था, तो सवाल उठा कि उन्होंने इसे रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं किया ? दूसरा सवाल अब ये उठ रहा कि क्या राहुल गाँधी को गुजरात में घटित हो रहे राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में भी पहले से पता था और अगर हाँ, तो उन्होंने इसको रोकने के लिए भी क्यों कुछ नहीं किया? ये तो राहुल गांधी हैं जो धीरे-धीरे भारतीय राजनीति के मज़ाक

आख़िर किन कारणों से आज अपने सबसे बुरे राजनीतिक दौर में पहुँच गयी है कांग्रेस ?

कांग्रेस अस्थिरता के दौर से गुज़र रही है। किसी भी पदाधिकारी की नियुक्ति होती है और कुछ ही दिन बाद उसे बदल दिया जाता है। ऐसा लगता है जैसे पार्टी को पता ही नहीं है कि उसे जाना किधर है और करना क्या है। जागरूक होता मतदाता अब कांग्रेस की वोटबैंक की राजनीति, तुष्टिकरण की कोरी बातों में नहीं आना चाहता। वह सकारात्‍मकता, प्रगति और समकालीनता चाहता है। तुष्टिकरण की

बस कहने भर के लिए राष्ट्रीय पार्टी रह गयी है कांग्रेस !

कांग्रेस अब सिर्फ कहने को देश की एक राष्ट्रीय पार्टी रह गई है। वास्तव में तो वह एक ऐसे कालखंड में प्रवेश कर चुकी है, जहाँ वह अब सिर्फ छह राज्यों – कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, मिजोरम, मेघालय में अपने बूते पर और बिहार में जूनियर पार्टनर के तौर पर सत्ता में मौजूद है। वहीं मोदी और अमित शाह की जोड़ी का कमाल ऐसा है कि

राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद की बहस

तीन चरणों का चुनाव समाप्त होने के बाद अब यूपी के सियासी तापमान का पारा पश्चिम से पूरब की ओर बढ़ चला है। आगामी चरणों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं लिहाजा सभी दलों के नेता पूरब का रुख कर चुके हैं। यूपी चुनाव में वंशवाद और परिवारवाद की बहस भी खूब हो रही है। लगभग हर एक पत्रकार वार्ता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित भाजपा के आला नेताओं से यह सवाल पूछा जाता है।

मनमोहन सिंह पर प्रधानमंत्री मोदी के तंज़ से इतना बौखलाई क्यों है कांग्रेस ?

शब्दों के अर्थ को अनर्थ के फ्रेम में फिटकर किस तरह वितंडा खड़ा किया जाता है, यह कोई कांग्रेस से सीखे। संभवतः कांग्रेस खुद को भाषा की शुचिता और संसदीय मर्यादा का एकमात्र व्याकरणाचार्य और पैमाना समझ ली है, अन्यथा वह संसदीय विमर्श के शब्दों पर खुद को उपहास का पात्र नहीं बनाती। आश्चर्य है कि जब उसके सदस्य, संसद और सड़क पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिटलर, मुसोलिनी और

यूपी चुनाव : राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुंचाने वाली राजनीति कर रहे सपा-कांग्रेस

आज सम्पूर्ण भारतवर्ष ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं संवैधानिक दृष्टि से एक है। हमारा संविधान ‘हम भारत के लोग…..’ से शुरू होकर हमारी एकता को रेखांकित करता है। संवैधानिक स्तर पर भारत का कोई भी नागरिक अपने मूल निवास स्थान के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी चुनाव लड़ने के लिए अधिकृत है। यह हमारी एकता का भी प्रमाण है। इसी आधार पर आज गुजराती मूल के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी

अखिलेश सरकार के विकास के दावों की पोल खोलते आंकड़े

उत्तर प्रदेश चुनाव में सत्तारूढ़ सपा के सर्वेसर्वा अखिलेश यादव ‘काम बोलता है’ का नारा लगाते हुए राज्य में अपने कथित विकास की ढोल पीट रहे हैं, लेकिन जब हम राज्य के विकास से सम्बंधित आंकड़ो पर नज़र डालते हैं, तो दूसरी ही तस्वीर सामने आती है। यूपी विकास केंद्रित मापदंडो पर बेहद पिछड़ा हुआ दिखाई देता है। गौरतलब है कि सन 2012 जब प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनी, तबसे लेकर

यूपी चुनाव : भाजपा की लहर से भयभीत विपक्षियों ने शुरू की एकजुट होने की कवायद

यूपी विधानसभा चुनावों की बिसात बिछ चुकी है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना दांव खेलने के लिए तैयार हो चुकी है। एक तरफ यूपी में मुख्य विपक्षी दल बसपा है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी खो चुकी साख को वापस पाने के लिए जद्दोजहद करने में लगी हुई है। सत्तारूढ़ सपा में मचे दंगल ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। सपा में जो दंगल मचा है, उसे लेकर लोगों में भ्रम ही घुमड़