सोनिया गांधी

कांग्रेस में राहुल राज : कांग्रेस को अब लोकतान्त्रिक मूल्यों की बात करना छोड़ देना चाहिए !

कांग्रेस का इतिहास सौ साल से ज्यादा पुराना है, इन सौ सालों में यह पार्टी इतनी कमजोर कभी नहीं थी, जितनी अभी है। राज्यों की विधान सभाओं और संसद में ही नहीं, जमीनी स्तर पर भी कांग्रेस पार्टी का सफाया हो चुका है। गावों में, कस्बों में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा हुआ है। पार्टी संगठन छिन्न-भिन्न हो चुका है। देश की राजनीती में कांग्रेस ने अपना केंद्रीय स्थान खो दिया है।

कांग्रेस का इतिहास सौ साल से ज्यादा पुराना है, इन सौ सालों में यह पार्टी इतनी कमजोर कभी नहीं थी, जितनी अभी है। राज्यों की विधान सभाओं और संसद में ही नहीं, जमीनी स्तर पर भी कांग्रेस पार्टी का सफाया हो चुका है। गावों में, कस्बों में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा हुआ है। पार्टी संगठन छिन्न-भिन्न हो चुका है। देश की राजनीती में कांग्रेस ने अपना केंद्रीय स्थान खो दिया है।

अध्यक्ष से कम कब थे राहुल गांधी कि अब अध्यक्ष बनकर कुछ ‘कमाल’ कर देंगे !

कांग्रेस कार्यसमिति ने अध्यक्ष पद के चुनाव की अनुमति दे दी है। सब कुछ योजना के अनुसार हुआ तो चुनाव की औपचारिकता पूरी कर राहुल संभवतः गुजरात चुनाव से पूर्व ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएंगे। वैसे, इस प्रकार की चर्चाएं पहली बार नहीं चली हैं। यह चर्चा वर्षों से चल रही है। कई बार तारीखें आगे बढ़ती रहीं। लेकिन, चाहे जितनी देर हो, अध्यक्ष की कुर्सी राहुल को हो मिलनी थी। अब पहले की तरह राहुल अज्ञातवास

राजनीति में परिवारवाद को सही साबित करने के लिए बचकानी दलीलें दे रहे, राहुल गांधी !

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया, बर्कले में छात्रों से चर्चा के दौरान कई ऐसी बातें कहीं जो कांग्रेस के भूत और भविष्य की रूपरेखा का संकेत दे रही हैं। इस व्याख्यान में राहुल गाँधी ने नोटबंदी, वंशवाद की राजनीति सहित खुद की भूमिका को लेकर पूछे गये सवालों के स्पष्ट जवाब दिए। मसलन 2014 के आम चुनाव से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए राहुल गाँधी ने कहा कि कांग्रेस 2012

‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की वर्षगाँठ पर भी अपनी नकारात्मक राजनीति से बाज नहीं आया विपक्ष !

भारत छोड़ो आंदोलन की पचहत्तरवीं वर्षगांठ देश के लिए अहम है। इस दिन राष्ट्र-हित के विषयों का चयन होना चाहिए था और उनके प्रति संकल्प का भाव व्यक्त होना चाहिए था जिससे खास तौर पर युवा पीढ़ी उन राष्ट्रीय मूल्यों को समझ सके जिनकी स्थापना हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानियों ने की थी। लोकसभा और राज्यसभा ने इस संबंध में अलग-अलग संकल्प पारित किए। मगर उसके पहले विपक्षी नेताओं ने

भारतीय राजनीति में क्यों अप्रासंगिक होती जा रही है कांग्रेस ?

इतिहास के पन्नों को पलटें और इसके सहारे भारतीय राजनीति को समझने को प्रयास करें तो हैरानी इस बात पर होती है कि जो कांग्रेस पंचायत से पार्लियामेंट तक अपनी दमदार उपस्थिति रखती थी, आज वही कांग्रेस भारतीय राजनीति में अप्रासंगिक हो गई है। ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है, क्योंकि आज बिहार से लगाये कई राज्यों की सियासत गर्म है और इन सबमें में कांग्रेस कहीं गुम-सी नज़र आ रही है। बिहार में महागठबंधन

नेशनल हेराल्ड केस : आयकर विभाग की जांच से इतना घबरा क्यों रही है कांग्रेस ?

नेशनल हेराल्ड मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा यंग इंडियन कंपनी की जांच आयकर विभाग से कराए जाने का आदेश दिए जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ गयी है। उच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक अब कंपनी को अपने दस्तावेज आयकर विभाग को सौंपने ही होंगे। बता दें कि इस मामले में पटियाला हाउस कोर्ट ने जांच के आदेश दिए थे, जिसके बाद सोनिया और

बस कहने भर के लिए राष्ट्रीय पार्टी रह गयी है कांग्रेस !

कांग्रेस अब सिर्फ कहने को देश की एक राष्ट्रीय पार्टी रह गई है। वास्तव में तो वह एक ऐसे कालखंड में प्रवेश कर चुकी है, जहाँ वह अब सिर्फ छह राज्यों – कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, मिजोरम, मेघालय में अपने बूते पर और बिहार में जूनियर पार्टनर के तौर पर सत्ता में मौजूद है। वहीं मोदी और अमित शाह की जोड़ी का कमाल ऐसा है कि

पस्त संगठन और मस्त नेताओं के बीच बदहाल कांग्रेस

2014 के बाद से जब भी कोई चुनाव होता है और उसमें कांग्रेस को हार मिलती है तो राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े होने लगते हैं । राजनीतिक विश्लेषकों के अलावा कांग्रेस के नेता भी उनके नेतृत्व को लेकर प्रत्यक्ष तौर पर तो नहीं, लेकिन संगठन की चूलें आदि कसने के नाम पर सवाल उठाने लगते हैं । इसमें कोई दो राय नहीं है कि राहुल गांधी में एक सौ तीस साल पुरानी पार्टी की अगुवाई को लेकर कोई स्पार्क

मनमोहन सिंह पर प्रधानमंत्री मोदी के तंज़ से इतना बौखलाई क्यों है कांग्रेस ?

शब्दों के अर्थ को अनर्थ के फ्रेम में फिटकर किस तरह वितंडा खड़ा किया जाता है, यह कोई कांग्रेस से सीखे। संभवतः कांग्रेस खुद को भाषा की शुचिता और संसदीय मर्यादा का एकमात्र व्याकरणाचार्य और पैमाना समझ ली है, अन्यथा वह संसदीय विमर्श के शब्दों पर खुद को उपहास का पात्र नहीं बनाती। आश्चर्य है कि जब उसके सदस्य, संसद और सड़क पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिटलर, मुसोलिनी और

मोदी की भाषा पर सवाल उठाने से पहले अपनी गिरेबान में झांके कांग्रेस !

संसद का बज़ट सत्र चल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस सत्र में दोनों सदनों के समक्ष अपना वक्तव्य रखा। अबसे पूर्व सदन में प्रधानमंत्री के जो भी संबोधन हुए थे, उनमें प्रायः विपक्षी दलों के प्रति उदार दृष्टि और सहयोग का आग्रह ही दिखायी दिया था। किन्तु, उनके विनम्र और उदार संबोधनों का कांग्रेस-नीत विपक्ष पर कोई विशेष प्रभाव पड़ता कभी नहीं दिखा। हर सत्र में विपक्ष का अनावश्यक असहयोग कमोबेश