इस्लाम

मुस्लिम महिलाओं के हितों के लिए जरूरी है शरियाई व्यवस्थाओं का खात्मा

लॉ कमीशन ऑफ इंडिया ने देश की जनता से कॉमन सिविल कोड या यूनिफार्म सिविल कोड (सामान नागरिक संहिता ) पर सभी से 16 सवाल किये हैं। जिनका मकसद है सरकार संविधान में दिए दिशा निर्देशों पर चलते हुए देश में सभी नागरिकों के लिए एक सामान आचार संहिता लागू की जा सके।  गौरतलब है

तीन तलाक़ जैसी अमानवीय व्यवस्था के समर्थन में खड़े लोगों की शिनाख्त जरूरी

पिछले लगभग एक सप्ताह से ‘तीन तलाक़’ पर मची रार के बीच जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, जिस तरह से तमाम रोना-धोना मचा है, उसमें से छान कर तीन तरह की प्रतिक्रियाएं आप नमूने के तौर पर रख सकते हैं। पहली श्रेणी में वे मुसलमान हैं, जिनके मुताबिक ‘कुरान’ का ही आदेश अंतिम आदेश है, उसमें कोई फेरबदल नहीं किया जा सकता, चाहे कितनी भी विकृत प्रथा हो, उसको सुधारा नहीं जा सकता और

मुस्लिम औरतों का हक़ छिनकर इस्लाम की कौन-सी शान बढ़ाएंगे, मिस्टर मौलाना ?

नेशनल लॉ कमीशन की प्रश्नावली पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रवैया दुर्भाग्यपूर्ण है। लॉ कमीशन ने नागरिकों के विचार के लिए सिर्फ़ एक प्रश्नावली रखी है। उसने इस प्रश्नावली में यह भी नहीं कहा है कि समान नागरिक संहिता लागू कर ही दी जाएगी, बल्कि उसने इस पर एक स्वस्थ चर्चा की बुनियाद डालने का

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को समझना होगा कि यह देश संविधान से चलता है, मज़हबी कायदों से नहीं!

संविधान से उपर अपने कानूनों को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में लगे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिमों में प्रचलित तीन तलाक और चार शादियों के नियम को उचित ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट से पर्सनल लॉ में दखल न देते हुए इस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खत्म करने की मांग की है। बोर्ड का कहना है कि ये पर्सनल लॉ पवित्र कुरान और हमारी धार्मिक स्वतंत्रता पर आधारित है, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा

ये देश आपकी शरीअत से नहीं, संविधान से चलता है मौलवी साहब!

हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश से सम्बंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महिलाओं के हक़ में फैसला सुनाते हुए उन्हें दरगाह की मुख्य मज़ार तक जाने की अनुमति दे दी। लेकिन, दरगाह के ट्रस्ट ने अदालत के इस फैसले से नाखुशी जाहिर की है और इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में जाने की बात कही है। अपनी इस बात के पक्ष दरगाह के लोगों के पास एक से बढ़कर एक कुतर्क

इस्लामिक कट्टरपंथ को बौद्ध धर्म के लिए खतरा मानते थे अम्बेडकर!

इस्लाम जहां-जहां गया वहां पर पूरे के पूरे समाज और उसकी चेतना को एकदम इस्लाम मय करने की उसने हर तरह से कोशिश की। इस्लाम के आने के पूर्व मध्य एशिया बौद्घ था, ईरान अग्निपूजक था और दक्षिण पूर्व के मलयेशिया तथा इंडोनेशिया बौद्घ थे या वैष्णव मत के अनुयायी थे, मगर आज वहां इन मतों को मानने वाले ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे।

तय कीजिये आतंक का मज़हब, वर्ना ये आपका मजहब तय कर देगा

मेरे एक मुस्लिम मित्र थे, जिनसे पहली बार 2012 में मुलाकात हुई थी। प्रथमद्रष्टया स्वभाव के अच्छे लगे, अतः उनसे आत्मीयता भी बढ़ गयी, लेकिन उनका भोलापन और मृदुभाषी होना महज एक दिखावा था। इस बात का आभास मुझे उस समय हुआ जब हम लोग बाटला हाउस एनकाउंटर पर चर्चा कर रहे थे।

इस्लामिक कट्टरपंथ : आज इन्हें राष्ट्रगान से दिक्कत है, कल राष्ट्र से भी हो जाय तो आश्चर्य नहीं होगा!

हाल के दिनों में देश में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिन्होंने इस्लाम के कट्टरपंथी चेहरे से अमन और मोहब्बत…..