राम

शस्त्र और शास्त्र की समन्वित शक्ति के प्रतीक हैं परशुराम

मनुष्य के लिए आत्मरक्षण और समाज-सुख-संरक्षण के निमित्त शस्त्र का आराधन भी आवश्यक है। शर्त यह है कि उसकी शस्त्र-सिद्धि पर शास्त्र-ज्ञान का दृढ़ अनुशासन हो। भगवान परशुराम इसी शस्त्र-शास्त्र की समन्वित शक्ति के प्रतीक हैं। सहस्रार्जुन के बाहुबल पर उनकी विजय उनकी शस्त्र-सिद्धि को प्रमाणित करती है, तो राज्य भोग के प्रति उनकी निस्पृहता

गणतंत्र दिवस: भारतीय संविधान में मौजूद राम-कृष्ण के चित्रों के बारे में कितना जानते हैं आप?

भारत की स्वतंत्रता और संविधान निर्माण को अलग करके नहीं देखा जा सकता। दोनों भारत के गौरवशाली अवसर हैं। इससे हम सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। यह तो आप जानते हैं कि आज की तारीख को ही 1950 में भारतीय संविधान लागू हुआ था, लेकिन क्या आपको मालूम है कि मूल संविधान में अनेक चित्र थे। इनका निर्माण नन्दलाल बोस ने किया था। यह हमारे गौरवशाली अतीत की झलक देने वाले थे। गणतंत्र दिवस पर इनकी भी चर्चा होनी चाहिए।

भारत को भारत की दृष्टि से देखने-समझने और समझाने वाले अनूठे राजनेता थे अटल जी

अटल जी सही मायनों में आधुनिक भारत के शिल्पी थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में भारतवर्ष के विकास की आधारशिला रखी और आर्थिक उन्नति की सुदृढ़ नींव खड़ी की।

सियासी मजबूरी में हिंदुत्व का चोला ओढ़ रही कांग्रेस

जो कांग्रेस अयोध्‍या स्‍थित राम जन्‍मभूमि स्‍थल को राम जन्‍मभूमि परिसर कहने से संकोच करती थी, वही कांग्रेस आज खुलकर राम मंदिर के पक्ष में खड़ी दिख रही है।

राम मंदिर : भूमि-पूजन पर विपक्ष का बेमतलब बवाल

राजनीति तोड़ती है, जबकि संस्कृति जोड़ती है। इसमें  किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि राम मंदिर राजनीतिक नहीं, अपितु एक सांस्कृतिक मुद्दा है।

रूस से लेकर रोम और इंडोनेशिया से अफ्रीका तक फैली हैं सनातन संस्कृति की जड़ें

दक्षिण पूर्व एशिया के देश वियतनाम में खुदाई के दौरान बलुआ पत्थर का एक शिवलिंग मिलना ना सिर्फ पुरातात्विक शोध की दृष्टि से एक अद्भुत घटना है अपितु भारत के सनातन धर्म की सनातनता और उसकी व्यापकता का  एक अहम प्रमाण भी है।

राम और रामायण का विरोध करने वालों की मंशा क्या है?

राम केवल एक नाम भर नहीं, बल्कि वे जन-जन के कंठहार हैं, मन-प्राण हैं, जीवन-आधार हैं। उनसे भारत अर्थ पाता है। वे भारत के प्रतिरूप हैं और भारत उनका। उनमें कोटि-कोटि जन जीवन की सार्थकता पाता है। भारत का कोटि-कोटि जन उनकी आँखों से जग-जीवन को देखता है।

रामनवमी विशेष : भारतीय पंथनिरपेक्षता के प्रतीक पुरुष श्रीराम

पंथनिरपेक्षता का विचार तो खैर अभारतीय है ही, इसलिए आज भी देश का बड़ा मानस इस विचार के साथ खुद को असहज पाता है, कभी खुद को इस विचार के साथ जोड़ नहीं पाता है। अन्य देशों का नहीं पता लेकिन भारत के लिए यह कथित विचार कृतिम है, कोस्मेटिक है, थोपा सा है, अप्राकृतिक है। हालांकि यह भी तथ्य है कि इससे मिलते-जुलते विचार को भारत अनादि काल से जीता आ रहा है। वह विचार है सर्व पंथ

अयोध्या में साकार हुआ त्रेतायुग का दीपोत्सव

प्रभु राम के वियोग में अयोध्या के लोग भी चौदह वर्ष तक बेचैन रहे थे। इन सभी को वनवास की समाप्ति और प्रभु की वापसी की प्रतीक्षा थी। ज्यों ज्यों यह समय निकट आ रहा था, जनमानस की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। भरत जी ने चित्रकूट में प्रभुराम से कहा था कि यदि वनवास के बाद निर्धारित अवधि तक आप वापस अयोध्या नहीं आये तो वह अपना जीवन ही समाप्त कर लेंगे।

दशहरा विशेष : भारत ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों में आयोजित होती है रामलीला

रामकथा और रामलीला केवल भारत तक ही सीमित नहीं हैं, विश्व के अनेक देशों में व्यापक पैमाने पर रामलीला का आयोजन होता है। इंडोनेशिया मुस्लिम देश है, फिर भी यहां रामलीला बहुत लोकप्रिय है। यहां के लोग स्वीकार करते हैं कि श्री राम उनके पूर्वज हैं। यह बात अलग है कि उनकी उपासना पद्धति अलग है। गत वर्ष अयोध्या में भव्य दीपावली मनाई गई थी, उसमें कोरिया की महारानी मुख्यातिथि के रूप में शामिल हुई थीं। उनका कहना था कि वह भी श्री राम की वंशज हैं।