ये तथ्य बताते हैं कि मजबूती की ओर अग्रसर है भारतीय अर्थव्यवस्था

बैंकिंग क्षेत्र के नतीजे अच्छे रहे हैं और एनपीए भी नियंत्रण में है। कर्ज की मांग भी बढ़ी है। इस वजह से बैंकों के शेयर में तेजी देखी जा रही है। भारतीय शेयर बाजार अमेरिकी शेयर बाजार की तरह आगे बढ़ रहा है। जुलाई महीने में दोनों बाजारों में लगभग 5 प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई है। मौजूदा परिदृश्य में बैंकिंग के अलावा अन्य क्षेत्र की कंपनियों की आय भी बेहतर रहने के आसार हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शेयर बाजार में चल रहे उतार-चढ़ाव का  दौर अब ख़त्म होने वाला है।

एक तरफ डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोरी के बाद मजबूती की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है तो दूसरी तरफ भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नरम रुख अपनाने से विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ रहा है और इसी वजह से विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बिकवाली की जगह लिवाली करनी शुरू की है।

एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार 20 जुलाई को विदेशी संस्थागत निवेशकों ने शेयर बाजार में 6,012 करोड़ रुपये का निवेश किया। सितंबर 2021 के बाद यह पहला महीना है, जब विदेशी निवेशकों ने बिकवाली के मुकाबले लिवाली अधिक की है। साथ ही, खुदरा और थोक महंगाई में भी कमी आनी शुरू हो गई है।

कच्चे तेल और विविध जिंसों की कीमतों में तेजी की वजह से मुद्रास्फीति बढ़ी थी, लेकिन अब इसमें नरमी आती दिख रही है, जिसका कारण भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाये गए कदम हैं।  मुद्रास्फीति दर में कमी आने से भारतीय रिजर्व बैंक अब नीतिगत दरों में बढ़ोतरी नहीं करेगा, जिससे बैंक भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना बंद कर देंगे।

वैसे तो बैंक जमा का उपयोग ऋण देने में करते हैं, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक भी रेपो दर में कटौती करके बैंकों को सस्ती दर पर पूँजी मुहैया कराता है, लेकिन जब केंद्रीय बैंक रेपो दर में बढ़ोतरी करता है तो बैंक को महंगी दर पर पूँजी मिलती है और बैंक अपने उधारी दरों में इजाफा कर देता है।

जुलाई महीने के तीसरे सप्ताह में ब्रेंट क्रूड में 4 प्रतिशत की नरमी आई है और यह 105 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है। पिछले पांच हफ्तों में ब्रेंट क्रूड लगभग 14 प्रतिशत नीचे आया है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में नरमी देखकर केंद्र सरकार द्वारा ईंधन पर लगाये गए अप्रत्याशित लाभ कर में भी कटौती की गई है।

बैंकिंग क्षेत्र के नतीजे अच्छे रहे हैं और एनपीए भी नियंत्रण में है। कर्ज की मांग भी बढ़ी है। इस वजह से बैंकों के शेयर में तेजी देखी जा रही है। भारतीय शेयर बाजार अमेरिकी शेयर बाजार की तरह आगे बढ़ रहा है। जुलाई महीने में दोनों बाजारों में लगभग 5 प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई है। मौजूदा परिदृश्य में बैंकिंग के अलावा अन्य क्षेत्र की कंपनियों की आय भी बेहतर रहने के आसार हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शेयर बाजार में चल रहे उतार-चढ़ाव का  दौर अब ख़त्म होने वाला है।

भारत की सेवा गतिविधियां जून महीने में पिछले 11 साल में सबसे तेजी से बढ़ी हैं, जो   आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने, मांग में वृद्धि और महामारी में कमी आने की वजह से संभव हुई है। एसऐंडपी ग्लोबल द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार सेवा क्षेत्र का पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (सेवा पीएमआई) मई महीने के 58.9 से बढ़कर जून में 59.2 हो गया, जोकि अप्रैल 2011 के बाद सबसे उच्च स्तर है। उल्लेखनीय है कि 50 अंक से ऊपर विस्तार का और इससे कम, संकुचन का संकेतक है।

सेवा क्षेत्र में जून तिमाही के आखिरी महीने में नये कार्यों में तेजी आई है। यह वृद्धि दर पिछले 11 सालों में सबसे तेज है। सेवा क्षेत्र का ग्राहक आधार बढ़ा है और विपणन में बेहतरी आई है। एक अनुमान के अनुसार सेवा गतिविधियों में सुधार अगले 12 महीनों तक बरकरार रह सकता है। यह अर्थव्यवस्था में बेहतरी आने से संभव हुआ है। उपभोक्ता सेवाओं में जून महीने में आउटपुट और नए ऑर्डर दोनों में ही तेज वृद्धि हुई है।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 3 जून, 2022 को समाप्त पखवाड़े में बैंकों के ऋण में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 13.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह पिछले 3 साल में सर्वाधिक वृद्धि है। पिछले साल बैंक ऋण की वृद्धि दर महज 5.7 प्रतिशत थी। 3 जून, 2022 को समाप्त पखवाड़े में बैंकों ने 1.02 लाख करोड़ रुपये कर्ज दिया, जिससे बैंकों की ओर से दिया गया कुल ऋण बढ़कर 121.40 लाख करोड़ रुपये हो गया है। उल्लेखनीय है कि 20 मई, 2022 तक ऋण वृद्धि सालाना आधार पर 12.1 प्रतिशत रही थी।  भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास भी दो अंकों की ऋण वृद्धि से संतुष्ट हैं।

वैसे, दो अंकों में ऋण में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण उधारी दरों में बढ़ोतरी किया जाना और कंपनियों की कार्यशील पूंजी की जरूरतों में तेजी आना है। बढ़ती महंगाई की वजह से भारतीय रिजर्व बैंक को हालिया मौद्रिक समीक्षाओं में रेपो दर में 90 आधार अंकों की बढ़ोतरी करनी पड़ी है और महामारी के दौरान आर्थिक गतिविधियों के बंद हो जाने के कारण कार्यशील पूँजी की मांग कम हो गई थी।

इसके साथ, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा कर्ज देने की रफ़्तार भी बढ़ी है, जो पिछले 1 साल से स्थिर थी। खुदरा ऋण क्षेत्र की वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान आवास ऋण का है। वैसे, ऋण में वृद्धि की रफ़्तार को बढ़ाने के लिए बैंक अन्य खुदरा क्षेत्रों में भी उधारी देने पर ध्यान दे रहे हैं।

तीन जून, 2022 को समाप्त पखवाड़े में ऋण के अलावा बैंकों में जमा 1.59 लाख करोड़ रुपये बढ़ा है, जिससे बैंकों में जमा बढ़कर 167.33 लाख करोड़ रुपये हो गया है। चालू वित्त वर्ष में अब तक बैंकों में 2.5 लाख करोड़ रुपये जमा की बढ़ोतरी हुई है, जबकि सालाना आधार पर बैंकिंग व्यवस्था में जमा में बढ़ोतरी 9.3 प्रतिशत रही है और ऋण जमा अनुपात का अंतर इस पखवाड़े में पिछले पखवाड़े की तुलना में बढ़ गया है।

वित्त वर्ष 2023 की जून तिमाही में बैंकिंग और अन्य वित्तीय संस्थानों के तिमाही परिणाम शानदार रहे हैं। ऐसा लगता है कि बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थान महामारी के नकारात्मक प्रभावों से उबर चुके हैं। ऋण की मांग मजबूत हुई है और डिजिटलाइजेशन की वजह से ऋण लागत में कमी आ रही है। साथ ही, बैंक अपने एनपीए पर भी काबू पाने में सफल रहे हैं। बैंक की जमा और उधारी दोनों में वृद्धि देखी जा रही है।

देश में महामारी के प्रभाव ख़त्म होने के कगार पर है और आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से शुरू हो गई है। समस्या फिलहाल महंगाई और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत के तेज रहने के कारण है, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाये गए क़दमों की वजह से महंगाई धीरे-धीरे काबू में आ रही है।

भू-राजनीतिक संकट में थोड़ी नरमी आने और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वोस्ट्रो खाते रूपये में खोलकर अंतर्राष्ट्रीय कारोबार करने के निर्णय से कच्चे तेल के आयात और अन्य जरुरी उत्पादों के रूस और यूक्रेन से आयात करने के रास्ते आसान हो रहे हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था के गुलाबी बनने की संभावना बढ़ रही है।

इसी वजह से अर्थव्यवस्था के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023 के लिए अपने पहले वाले 7.2 प्रतिशत वृद्धि दर के अनुमान को बरकरार रखा है, जिसे भारत मौजूदा परिदृश्य में आसानी से हासिल कर सकता है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)