ये सिर्फ आईसीजे में जस्टिस भण्डारी की जीत नहीं, भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव का उद्घोष भी है !

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज समेत तमाम राजनयिकों ने अपने-अपने स्तर पर विश्व समुदाय में दलवीर भण्डारी को समर्थन दिलाने के लिए माहौल बनाया, जिसका सुपरिणाम अब उनकी जीत के रूप में हमारे सामने है। अतः निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि ये सिर्फ दलवीर भण्डारी की अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में हुई जीत ही नहीं, बल्कि वर्तमान सरकार की कूटनीतियों की सफलता का सशक्त उदाहरण भी है। काश इसी स्तर पर संप्रग सरकार ने भी 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद के चुनाव में कूटनीतिक जोर लगाया होता तो शायद तब शशि थरूर बान की मून से पिछड़कर यूएन महासचिव बनने से चूके नहीं होते।

गत बीस नवम्बर को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में भारत के दलवीर भण्डारी को न्यायाधीश के रूप में चुना गया। ये दूसरी बार है, जब जस्टिस भण्डारी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में चुने गए हैं। इससे पहले वे 2012 में आईसीजे के न्यायाधीश चुने गए थे, उनका कार्यकाल 18 फरवरी को पूरा हो रहा है। दरअसल आईसीजे में 15 न्यायाधीश होते हैं, जिनमें से 14 न्यायाधीशों का चयन हो चुका था। दलवीर भण्डारी का मुकाबला पन्द्रहवें न्यायाधीश के लिए ब्रिटेन के उम्मीदवार क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था। उनकी जीत को लेकर कई आशंकाएं जताई जा रही थीं।

चूंकि, ब्रिटेन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है, अतः उसके उम्मीदवार के पक्ष में जीत की ज्यादा संभावनाएं थीं, लेकिन आखिरी समय में ब्रिटेन ने अपने उम्मीदवार का नाम वापस ले लिया जिसके बाद दलवीर भण्डारी की जीत का रास्ता एकदम साफ़ हो गया। ब्रिटेन द्वारा उम्मीदवार का नाम वापस लिए जाने के बावजूद मतदान हुआ, जिसमें भण्डारी जनरल एसेंबली में 183 और सुरक्षा परिषद में 15 मत प्राप्त कर शानदार ढंग से विजयी हुए। इसीके साथ ये पहला अवसर है, जब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ब्रिटेन का कोई न्यायाधीश नहीं होगा।

जस्टिस दलवीर भण्डारी

आईसीजे में दलवीर भण्डारी की जीत को भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दलवीर भण्डारी की जीत के लिए पूरे योजनाबद्ध ढंग से जोरदार अभियान चलाया था। गौरतलब है कि जब कुलभूषण जाधव की फांसी पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने रोक लगाई थी, तो उसमें दो लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। एक थे भारत के वकील हरीश साल्वे और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में बतौर न्यायाधीश मौजूद दलवीर भण्डारी, इन दोनों लोगों ने पाकिस्तान की कारगुजारियों को उजागर कर जाधव की फांसी टालने में अपने-अपने स्तर पर महत्वपूर्ण निभाई थी। बस यहीं से भारत सरकार ने चुप-चाप दलवीर भण्डारी को अतर्राष्ट्रीय न्यायालय में दुबारा लाने के लिए काम शुरू कर दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज समेत तमाम राजनयिकों ने अपने-अपने स्तर पर विश्व समुदाय में दलवीर भण्डारी को समर्थन दिलाने के लिए माहौल बनाया, जिसका सुपरिणाम अब उनकी जीत के रूप में हमारे सामने है। अतः निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि ये सिर्फ दलवीर भण्डारी की अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में हुई जीत ही नहीं, बल्कि वर्तमान सरकार की कूटनीतियों की सफलता का सशक्त उदाहरण भी है। काश इसी स्तर पर संप्रग सरकार ने भी 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद के चुनाव में कूटनीतिक जोर लगाया होता तो शायद तब शशि थरूर बान की मून से पिछड़कर यूएन महासचिव बनने से चूके नहीं होते।

एक प्रश्न यह उठता है कि दलवीर भण्डारी के आईसीजे में होने का भारत के लिए क्या प्रभाव होगा ? गौर करें तो अभी कुलभूषण जाधव का मामला आईसीजे में ही है और उसपर कोई अंतिम निर्णय नहीं आया है, अतः दलवीर भण्डारी के पुनर्निर्वाचन से इस मामले में भारत का पक्ष मजबूती से कायम रहेगा जबकि पाकिस्तान दबाव की स्थिति में होगा। बल्कि ये कहें तो गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान अभी से इस सम्बन्ध में कुछ-कुछ दबाव में नजर आने लगा है।

कुलभूषण जाधव की पत्नी को उनसे मिलने के लिए वीजा प्रस्ताव देना पाकिस्तान के दबाव को ही दर्शाता है। हालांकि भारत ने मांग की है कि पत्नी के साथ-साथ माँ को भी मिलने की अनुमति तथा दोनों की सुरक्षा का पूरा भरोसा दिया जाए तो ही पाकिस्तान के प्रस्ताव को स्वीकारा जा सकता है। उम्मीद है कि देर-सबेर पाकिस्तान इन मांगों को भी मान ही लेगा।

चूंकि, पाकिस्तान को पता है कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जब फिर इस मामले की सुनवाई होगी तो ये देखा जाएगा कि पाकिस्तान ने जाधव को लेकर किस प्रकार का व्यवहार रखा है, इस आधार पर भी उसके पक्ष का निर्धारण किया जाएगा। यदि उसके व्यवहार में किसी प्रकार के अनुचित तत्व मिले तो ये पूरी तरह से उसके विपक्ष में चला जाएगा और उसका पक्ष कमजोर होगा।

एक तो भारत की तरफ से वहाँ दलवीर भण्डारी मौजूद हैं। दूसरे पाकिस्तान की आतंक को लेकर बेहद खराब वैश्विक छवि बनी है, उसे अब लगभग सर्वस्वीकृत रूप से आतंकियों का पनाहगार माना जाने लगा है। भारत के प्रति उसकी साजिशों के साक्ष्य भी उसकी मुश्किलें बढ़ाने वाले हैं। इन सब कारणों के मद्देनज़र कुलभूषण जाधव के मसले को लेकर पाकिस्तान आंतरिक रूप से बेहद दबाव में है।

दलवीर भण्डारी का अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पुनर्निर्वाचन पाकिस्तान के दबाव को और बढ़ाएगा। वहीं भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के जरिये जाधव की रिहाई पर मुहर लगवाने की दिशा में भण्डारी अपने पद की मर्यादाओं में रहते हुए भी पिछली बार की तरह ही मददगार सिद्ध हो सकते हैं। पाकिस्तान से इतर भण्डारी के आईसीजे न्यायाधीश बनने का भारत को  एक लाभ यह भी होगा कि इससे वीटो शक्तिधारक देशों के बीच यह सदेश जाएगा कि भारत के प्रभाव की अनदेखी करना अब संभव नहीं है। अब उन्हें हर स्तर पर भारत को महत्व और अधिकार देने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)