पाकिस्तान की भाषा बोल रहे कांग्रेसी नेताओं पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं करते राहुल गांधी !

कांग्रेस पार्टी के नेताओं के इन बयानों की देश में हर तरफ निंदा हो रही, लेकिन इनके इन गैर-जिम्मेदाराना बयानों से पकिस्तान जरूर खुश दिखता है। इसका ताजा प्रमाण है कि तरह लश्कर-ए-तैयबा ने भी गुलाम नबी आज़ाद के सुर में सुर मिलाया है। उसका कहना है कि उसकी भी वही राय है जो गुलाम नबी आजाद की राय है। कितना शर्मनाक है कि एक आतंकी संगठन की भाषा देश की एक राष्ट्रीय पार्टी का नेता बोल रहा है।

एक तरफ जहाँ केंद्र की मोदी सरकार देश की एकता एवं अखंडता को हर हाल में सुनिश्चित करने के लिए तत्पर है। तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी लगातार देश को तोड़ने की अपनी मंशा पर काम करती दिखाई देती है। अभी हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू-कश्मीर में अपनी सहयोगी पीडीपी के साथ कानून व्यवस्था और तमाम मुद्दों को लेकर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया।

रमजान के विराम के बाद एक बार फिर केंद्र सरकार ने आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट को मंजूरी दे दी और अब आतंक के खिलाफ़ अभियान में एनएसजी (नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड) के भी शामिल होने की बात सामने आई है, इसके बाद से ही कांग्रेस लगातार प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को लेकर उल्टी-सीधी बयानबाजी करने में लगी है।

लेकिन कांग्रेस पार्टी का असली चेहरा तो तब सामने आया, जब कांग्रेस के राज्यसभा सांसद गुलाम नबी आज़ाद ने सेना के आतंक विरोधी अभियान पर ही सवाल खड़े कर दिए। गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि सेना के ऑपरेशन में आतंकियों से ज्यादा आम नागरिक मारे जाते हैं। गुलाम नबी आज़ाद ने यहाँ तक कह डाला कि जब सेना 4 आतंकियों के खिलाफ़ कार्यवाही करती है, तो 20 आम नागरिक मार देती है।

आजाद को बताना चाहिए कि उन्होंने ये बयान किस आधार पर दिया है। आजाद कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं और कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता हैं। उनका ये गैर-जिम्मेदाराना बयान न केवल सेना का मनोबल तोड़ने वाला है, बल्कि इससे भारतीय विदेशनीति को भी नुकसान पहुँच सकता है। कांग्रेस ने सर्जिकल स्ट्राइक के बाद एक बार फिर सेना पर सवाल उठाकर अपना दोहरा चरित्र उजागर किया है।  

आजाद के बाद कांग्रेस के ही सैफुद्दीन सोज ने भी कश्मीर की आज़ादी की हिमायत की और पकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के कश्मीर की आजादी के वक्तव्य का समर्थन किया। इतना ही नहीं, सैफुद्दीन सोज ने यहाँ तक कह दिया कि कश्मीर में बंदूक थामे युवाओं के साथ पावरफुल डायलॉग होनी चाहिए। कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व को अपने इन नेताओं के बयानों पर अपना रुख साफ़ करना चाहिए। प्रायः यही देखा गया है कि अपने नेताओं के ऐसे बयानों कांग्रेसी शीर्ष नेतृत्व द्वारा कोई कार्यवाही तो दूर उन्हें चेतावनी तक नहीं दी जाती।   

गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं के इन बयानों की देश में हर तरफ निंदा हो रही, लेकिन इनके इन गैर-जिम्मेदाराना बयानों से पकिस्तान जरूर खुश दिखता है। इसका ताजा प्रमाण है कि तरह लश्कर-ए-तैयबा ने भी गुलाम नबी आज़ाद के सुर में सुर मिलाया है। उसका कहना है कि उसकी भी वही राय है जो गुलाम नबी आजाद की राय है।

कितना शर्मनाक है कि एक आतंकी संगठन की भाषा देश की एक राष्ट्रीय पार्टी का नेता बोल रहा है। वैसे यह कोई पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस पार्टी ने भारतीय सेना पर सवाल खड़े किये हों। कांग्रेस पार्टी अक्सर सेना के मनोबल को गिराने और पाकिस्तान को खुश करने वाले बयान देती रही है। इसका लम्बा इतिहास है।

कांग्रेस का चाहें जो रुख हो, केंद्र सरकार हर हाल में जम्मू-कश्मीर में शांति चाहती है। लेकिन यह आतंकवाद के मुद्दे पर नरमी के साथ संभव नहीं होगा। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने हाल में दिए एक बयान में स्पष्ट किया था कि हम किसी भी कीमत पर सीमा पार से आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि कश्मीर में शांति कायम रहे।

मोदी सरकार के आतंकवाद के प्रति कड़े रुख का अंदाज़ा इन आंकड़ों से भी लगाया जा सकता है। एनडीए सरकार के केंद्र की सत्ता में आने के बाद सीमा पार आतंकियों की घुसपैठ में 45% की कमी आई है। 2011-14 के बीच जहाँ 471 आतंकी मारे गए, वहीं 2014-18 के बीच 619 आतंकियों को भारतीय सेना ने मार गिराया।

इसमें कोई दोराय नहीं कि भारतीय सेना हमेशा देश की रक्षा के लिए समर्पित भाव से कार्य करती है और वो हर समय दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम रही है, लेकिन महत्वपूर्ण यह हो जाता है कि केंद्रीय नेतृत्व किसके हाथ में है। जब नेतृत्व मजबूत होता है, तो सेना को कार्यवाही के लिए छूट दे देता है, जिसके बाद हमारे जवान देश के दुश्मनों को छठी का दूध याद दिला देते हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)