डॉ दिलीप अग्निहोत्री

भारत-चीन अनौपचारिक वार्ता के निकलेंगे सकारात्मक परिणाम

अंततः बिना एजेंडे की शिखर वार्ता का प्रयोग कारगर रहा। भारत और चीन के बीच आपसी विश्वास बहाल हुआ। चीन ने भारत के साथ संवाद और अच्छे संबन्ध रखने का महत्व स्वीकार किया। कहा गया कि द्विपक्षीय संबंधों का नया अध्याय शुरू हुआ है। ये सकारात्मक रूप में आगे बढ़ते रहेंगे। दो दिन में छह वार्ताएं हुई। यह सकारात्मक बदलाव को रेखांकित करता है। भविष्य में इसके बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते है।

महाभियोग प्रकरण : उपराष्ट्रपति का न्यायसंगत निर्णय, कांग्रेस की फिर हुई फजीहत !

मुख्य न्यायाधीश को हटाने की कांग्रेसी मुहिम का यही हश्र होना था। राज्यसभा के सभापति वैकैया नायडू ने इस संबन्ध में विपक्ष की नोटिस को खारिज कर दिया। उन्होंने इसके लिए पर्याप्त होमवर्क किया। देश के दिग्गज संविधान और विधि विशेषज्ञों से विचार विमर्श किया। इसके आधार पर विपक्ष की नोटिस के प्रत्येक बिंदु का परीक्षण किया।

‘हिन्दू आतंकवाद’ का झूठ फैलाने के लिए देश से कब माफ़ी मांगेगी कांग्रेस !

गत ग्यारह वर्षों से आतंकवाद की साज़िश का शिकार होकर जेल यंत्रणा झेल रहे असीमानन्द को अंततः न्याय मिला। राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया। यह मसला पांच लोगों की रिहाई तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से भगवा आतंकवाद शब्द भी निर्मूल साबित हुआ। यह शब्द दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को अपमानित करने वाला था। ऐसा करने वालों के अपराध की भी

गांधी के उपवास की महान परंपरा का कांग्रेसी उपहास !

महात्मा गांधी अहिंसा और डॉ. आंबेडकर संवैधानिक व्यवस्था के प्रबल हिमायती थे। दोनों महापुरुष अपने इस आग्रह से किसी प्रकार के समझौते  के लिए कभी  तैयार नहीं हुए। महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन से देश की आजादी की लड़ाई को बल मिला, तो स्वतंत्र भारत को डॉ. आंबेडकर ने भारतीय संविधान के रूप में एक उत्तम शासन-तंत्र प्रदान किया।

लिंगायत विभाजन की चाल से खुद कांग्रेस को ही होगा नुकसान !

कर्नाटक में पांच वर्ष तक शासन करने के बाद भी कांग्रेस उपलब्धियों के नाम पर खाली हाथ है। यह विरोधियों का आरोप नहीं, उसकी खुद की कवायद से उजागर हुआ। अब वह धर्म विभाजन के आधार पर अपनी सत्ता बचाने का अंतिम प्रयास कर रही। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित किया। कांग्रेस की त्रासदी समझी जा सकती है। देश के करीब सात

बाबा साहेब के नाम में सुधार का विरोध करने वालों को केवल अपनी राजनीति की चिंता !

डॉ. आंबेडकर अपने नाम के साथ पिता के नाम को देखकर भावविह्वल होते होंगे। मगर, बिडंबना देखिये उनके नाम पर सियासत करने वालों को इस पर भी आपत्ति है। वह उनके नाम में उतने शब्द ही देखना चाहते हैं, जितने उनकी सियासत में फिट बैठते हैं। जिन्हें उनके नाम के कुछ शब्दों पर कठिनाई है, वह उनका पूरा सम्मान कभी नहीं कर सकते। इसका जवाब तलाशना होगा कि उनके पूरे नाम को किसकी इच्छा से

सामाजिक न्याय का अतिवंचित तक विस्तार करने की दिशा में प्रयासरत योगी सरकार !

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सामाजिक न्याय के विस्तार के लिए प्रयासरत दिख रहे हैं। उनकी मंशा आरक्षण के लाभ को अतिदलित और अतिपिछड़े वर्ग तक पहुंचाने की है। इसका ऐलान उन्होंने विधानसभा में किया। वैसे, आरक्षण का विषय संवेदनशील होता है। फिर भी समाज के वंचित वर्ग को इस माध्यम से बराबरी पर लाने की आवश्यकता है। लेकिन, इतने दशक बीतने के बाद भी आरक्षित वर्ग का

गिरने से अच्छा है कि ठोकर खाकर संभल जाइए, मायावती जी !

बसपा और सपा का घोषित सियासी सौदा फिलहाल तात्कालिक था। इसमें लोकसभा के दो और राज्यसभा की एक सीट को शामिल किया गया था। इस सौदे में सपा को शत-प्रतिशत मुनाफा हुआ। उसके लोकसभा व राज्यसभा के तीनों उम्मीदवार विजयी रहे। लेकिन, बसपा खाली हाँथ रही। एक दूसरे पर कितना विश्वास था, यह मायावती के बयान से ही जाहिर था। मायावती ने कहा था कि राज्यसभा में उनके एजेंट को वोट

सुशासन और विकास की राजनीति से विपक्ष को जवाब !

इसमें संदेह नहीं कि दो उपचुनाव की जीत ने उत्तर प्रदेश में विपक्ष का मनोबल बढाया था। लेकिन, यह माहौल कुछ दिन ही कायम रहा। योगी सरकार ने एक वर्ष की उपलब्धि से एक बार फिर राजनीति की दिशा बदली है। क्योंकि, इन उपलब्धियों के माध्यम से योगी आदित्यनाथ ने सपा और बसपा सरकार की जातिवादी, परिवारवादी और भ्रष्ट व्यवस्था को भी उजागर किया है। एक वर्ष की उपलब्धियों के माध्यम से मुख्यमंत्री

आत्ममुग्धता और अंधविरोध को समर्पित रहा कांग्रेस का अधिवेशन

कांग्रेस का महाधिवेशन पहली बार राहुल गांधी की सदारत में हुआ। उम्मीद थी कि पार्टी में नई सोच, नया उत्साह दिखाई देगा। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ। ताजपोशी नयी थी। इसके अलावा कुछ भी नया नहीं था। वही पुरानी बात दोहराई गई जिसके मूल में नरेंद्र मोदी थे। मुकाबले की बात चली तो गठबन्धन पर पहुंच गए। इसके अलावा महाधिवेशन की कोई उपलब्धि नहीं रही। किसी विपक्षी पार्टी के महाधिवेशन में सत्ता पक्ष पर