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देश की आज़ादी में दिल्ली के गांवों का भी रहा है महत्वपूर्ण योगदान!

देश की आजादी के आंदोलन में दिल्ली के गांवों की भागीदारी का सिरा सन् 1857 में हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम तक जाता है जब चंद्रावल, अलीपुर सहित राजधानी के अनेक अधिक गांवों के निवासियों ने विदेशी शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा दिया था। अंग्रेजों ने इस पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दमन और दिल्ली पर दोबारा कब्जा करने के बाद इसमें हिस्सा लेने वाले क्रांतिकारियों को बहुत ही कठोरता से कुचला।

दलित-मुस्लिम गठजोड़ की सियासी चाल को समझना होगा!

कुछ मुस्लिम राजनेताओं ने आजकल दलितों को मुसलमानों के साथ आने का न्योता दिया है। उनका दावा है कि वे जब मुसलमानों के साथ आ जाएंगे तो हिंदुओं की हिम्मत नहीं है कि उनका बाल भी बांका कर सकें। पर जो मुस्लिम नेता इतनी बहबूदी हांकते हुए दलितों को अपने साथ आने के लिए मनुहार कर रहे हैं, उनके अपने समाज में दलितों की क्या कद्र है, इसका नमूना भी वे जान लें तो बेहतर रहे।

सरकार पर आरोप लगाने से पहले जरा न्यायपालिका की खामियों की तरफ भी देखें मुख्य न्यायाधीश!

देश के मुख्य न्यायधीश द्वारा जजों की नियुक्ति को लेकर बार–बार चिंता जाहिर की जाती है, लेकिन स्वयं इस सम्बन्ध में अबतक उन्होंने कोई पहल नहीं की। लेकिन इसकी अति तो तब हो गई जब स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के संबोधन पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री अदालतों में जजों की कमी पर कुछ नहीं बोले।

इस्लामिक कट्टरपंथ को बौद्ध धर्म के लिए खतरा मानते थे अम्बेडकर!

इस्लाम जहां-जहां गया वहां पर पूरे के पूरे समाज और उसकी चेतना को एकदम इस्लाम मय करने की उसने हर तरह से कोशिश की। इस्लाम के आने के पूर्व मध्य एशिया बौद्घ था, ईरान अग्निपूजक था और दक्षिण पूर्व के मलयेशिया तथा इंडोनेशिया बौद्घ थे या वैष्णव मत के अनुयायी थे, मगर आज वहां इन मतों को मानने वाले ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे।

ईमानदार राजनीति की निकली हवा, दिल्ली सरकार के पदों की बंदरबाँट करने में डूबे केजरीवाल!

अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन का सहारा लेकर अरविन्द केजरीवाल व उनकी टीम ने मौका देख धीरे-से पूरे आंदोलन को एक-तरफ़ कर अपना नया राजनीतिक एजेंडा आम आदमी पार्टी के रूप में देश में लांच किया।

मोदी सरकार की बलूचिस्तान नीति हो रही कामयाब, घुटनों पर आया पाक!

कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान में वाक् युद्ध चलता रहा है, लेकिन अब मामला…

जब नेहरु सत्ता में थे तब आजादी की एक जंग लड़ रहा था ‘जनसंघ’

आज जब हम आजादी की सत्तरवीं सालगिरह मना रहे हैं तो हमें ये भी याद रखना चाहिए कि भारत कोई एक दिन में आजाद भी नहीं हुआ था। आज जिस भूभाग को हम नक़्शे पर देखते हैं वो 1947 में बनना शुरू हुआ था। धीरे धीरे करीब 15 साल का समय बीतने के बाद, हमारे उस नक़्शे ने अपनी वो शक्ल ली जिसे हम आज देखते हैं।

शहीदों के राष्ट्र-निर्माण के स्वप्न को पूर्ण करने में ही है आज़ादी की सार्थकता!

भारत आज अपनी आजादी की 70 वीं सालगिरह मना रहा है। लाल किले पर तिरंगा फहर चुका है । सन् 1947 को आज ही के दिन भारत ने लगभग 200 वर्षों की अंग्रेजी दासता के बंधनों को तोड़ कर आजादी का प्रथम सूर्योदय देखा था। आजादी के इस आंदोलन में कितनी शहादतें हुई, ये अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। देश के हर गांव के ही आस-पास ऐसी कई कहानियां होगी, जिनसे हम आज भी अनजान हैं।

वहाबी कट्टरपंथ को नकारें भारतीय मुसलमान

विभाजन के बाद देश ने कई विभीषिकाओं को झेला, हजारों आपदाओं को सहन किया। फिर…

सेकुलर पत्रकारों की पाखंडी पत्रकारिता का खोखला चरित्र

बिहार विधानसभा चुनाव के बाद थोड़े दिन शांति रही। लगा कि अब “असहिष्णुता” खत्म हो गई है। लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव नजदीक आते ही एक बार फिर “छदम सेकुलरवादी” सक्रिय हो गए हैं और देश में फिर से असहिष्णुता का हौवा खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में फिर से “लोकतंत्र खतरे में है… आपातकाल से भी बुरी स्थिति हो गई है