वामपंथी

लाल आतंक : केरल में वामपंथी हिंसा का शिकार हुए भाजपा नेता रवींद्रनाथ

अभी सी.पी.एम. के कार्यकर्ताओं के हाथों केरल भाजपा के युवा कार्यकर्ता निर्मल (20) की हत्या के एक सप्ताह भी नहीं बीते कि यहाँ एक और भाजपा नेता की मौत मार्क्सवादी हिंसा में हो गयी है। भाजपा के कडकल पंचायत समिति के अध्यक्ष एवं सेवानिव्रित पुलिस इंस्पेक्टर रवींद्रनाथ (58) दिनांक 2 फ़रवरी को मार्क्सवादियों के घातक हमले में घायल हो गए थे। उनके सर पर गंभीर चोटें आई थीं। इस चोट के कारण

लाल आतंक : कन्नूर में वामपंथी हिंसा ने ली आरएसएस स्वयंसेवक संतोष की जान

सी.पी.एम. शासित केरल के कन्नूर जिले में दिनांक 18 जनवरी 2017 की रात को हुए ताज़ा हिंसा में एक और स्वयंसेवक संतोष (५२) की जान चली गयी है। इसी हिंसा में एक और स्वयंसेवक रंजित की हालत काफी गंभीर बताई जा रही है। यह ताज़ा हिंसा केरल के निवर्तमान मुख्यमंत्री पी विजयन के चुनावी क्षेत्र धर्मादम में हुई है। सी.पी.एम. के आक्रमणकारी दस्ते ने आरएसएस स्वयंसेवक एवं बीजेपी कार्यकर्ता संतोष पर

पाठ्यक्रमों पर गहराया लाल रंग न तो हिंदी के विद्यार्थियों के लिए अच्छा है, न ही समाज के लिए – प्रो चन्दन कुमार

साहित्य यूँ तो समाज का दर्पण कहा जाता है, लेकिन क्या हो जब यह दर्पण किसी ख़ास विचारधारा का मुखपत्र भर बन कर रह जाये ? क्या हो जब साहित्य के नाम पर विचारधारा का प्रचार किया जाने लगे। साहित्य की दुनिया में एक खास विचारधारा की तानाशाहियों पर खुलकर बातचीत की हिंदी-विभाग के प्रोफ़ेसर चन्दन कुमार से

हिंसा और दमन के जरिये राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करना है वामपंथ का असल चरित्र

केरल हमेशा से राजनीतिक हिंसा के लिए कुख्यात रहा है। आये दिन वहां राजनीतिक दलों के आम कार्यकर्ता इन हिंसा के शिकार हो रहे हैं। केरल में अक्सर हर तरह की राजनीतिक हिंसा में अक्सर एक पक्ष मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ही होती आई है| चाहे आज़ादी के पहले त्रावनकोर राज्य के विरुद्ध एलप्पी क्षेत्र में अक्टूबर 1946 को हुआ कम्युनिस्टों का हिंसक पुन्नापरा-वायलर विद्रोह हो, जिसमें हजारों की तादाद

राष्ट्र-निर्माण के आगे निजी सुख-दुःख का नहीं होता महत्व

राजनीति संभावनाओं का खेल है। राजनीति में न तो कोई किसी का स्थाई मित्र होता है, न शत्रु। यदि इस सिद्धांत को सत्य मान भी लिया जाय तो भी यह कहना अनुचित न होगा कि हर दल के अपने कुछ सिद्धांत, अपनी-अपनी मूल प्रकृति, अपने-अपने मतदाता-वर्ग होते हैं और ये सब एक दिनों में नहीं बनता, बल्कि वर्षों में उनकी अपनी एक पहचान और छवि बनती है। अगर विशिष्ट चाल-चरित्र-चेहरे की बात बेमानी भी हो तो

नजीब मामले में उजागर हुई वामपंथी छात्र संगठनों की संदिग्ध भूमिका

नजीब के नाम पर वामपंथी संगठन और कांग्रेस के नेताओं के साथ तीन नवंबर को जब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अरविन्द केजरीवाल भाषण देते हुए नजर आए तो उनकी यही बात बरबस याद आ गई, ‘‘सब मिले हुए हैं जी।’’ नजीब के नाम पर अरविन्द केजरीवाल जरूर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय पहुंच गए, लेकिन ये नजीब, अरविन्द के पुराने मित्र दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग नहीं थे, बल्कि

जेएनयू को बर्बादियों की तरफ ले जा रहा वामपंथी गिरोह

जेएनयू फिर से एक बार सुर्खियों में है। फिर से, ग़लत कारणों से। ये ग़लत वजहें किसी भी ‘जेनुआइट’ को परेशान कर सकती हैं। आपसी झगड़े के बाद से एक छात्र नजीब जेएनयू से गायब है। जहां तक मेरी स्मृति है, यह शायद जेएनयू में अपनी तरह की पहली घटना है। हां, इसके पहले फरवरी में भी कुख्यात ‘नारेबाज़ी’ कांड के बाद कुछ छात्र ‘भूमिगत’ हुए थे, लेकिन कोई लापता हो जाए, ऐसा पहली बार हुआ है। इस

इफ्तारी आयोजन धर्मनिरपेक्षता है तो मोदी का ‘जय श्रीराम’ कहना सांप्रदायिक कैसे हो गया, मिस्टर सेकुलर ?

यूपी चुनाव करीब है, जिसे देखकर तमाम राजनीतिक पार्टियॉं प्रधानमंत्री के लखनऊ में रावण-दहन के वक्त दिए गए उद्बोधन के राजनीतिक अर्थ निकाल रही हैं। राजनीतिक पार्टियों को यह भी ज्ञात होना चाहिए कि मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री है, जिन्होंने दशहरा में दिल्ली का किला छोड़कर लखनऊ के कार्यक्रम में हिस्सा लिया और अपने उद्बोधन में देश में व्याप्त कुरीतियों पर हमला किया। मोदी पर आज तक

तीन तलाक के मसले पर मौन क्यों है वामपंथी गिरोह ?

भारतीय कम्यूनिस्टों की चुप्पी इस समय उनके पक्ष का इजहार कर रही है। देश के कॉमरेड-फेमिनिस्ट और चर्च के इशारे पर अम्बेडकर के नाम की माला जपने वाले अम्बेडकरवादी भी इस समय चुप हैं। वे जानते हैं कि इस समय वे बोलेंगें तो अपनी पोल खोलेंगे। भारतीय जनता पार्टी को स्यूडो कम्यूनिस्ट एन्टीलेक्चुअल्स ने ही महिला विरोधी प्रचाारित किया था। यह समय कैसे संयोग का समय है कि भारतीय जनता पार्टी

‘तीन तलाक’ के बहाने फिर बेनकाब हुआ वामपंथी गिरोह

देश में कुछ ही समय बाद एक बड़ा मसला फिर से उठने वाला है। यह हालांकि दीगर बात है कि जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी नीत एनडीए सरकार आयी है, तब से ही तथाकथित बुद्धिजीवी, चिंतक और कलाकार किसी न किसी बहाने इस सरकार को घेरने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। यह भी कोई अनजानी बात नहीं कि ये सभी किसी न किसी तरह वामपंथी और कांग्रेसी वित्त पोषित और उन्हीं के गिरोह के भी हैं।