कनिष्का तिवारी

निजी हितों के लिए सत्ता का दुरूपयोग कर फँसे केजरीवाल, शुंगलू समिति ने खोली पोल

नयी और ईमानदार राजनीति का स्वप्न दिखाकर काफी कम समय में ही केजरीवाल ने जनता के मन में अपने प्रति भरोसा पैदा किया और इसी भरोसे के बलबूते दिल्ली की सत्ता पर काबिज भी हुए। मगर, वर्तमान परिस्थितियों पर अगर हम नज़र डालें तो देखते हैं कि अरविन्द केजरीवाल ने जनता के भरोसे के साथ बुरी तरह से खिलवाड़ किया है। खुद को सर्वाधिक ईमानदार नेता का ख़िताब देने वाले केजरीवाल और

भाजपा की जीत से बौखलाए विपक्षी दलों का ईवीएम राग

‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ एक पुरानी और प्रचलित कहावत है, जो वर्तमान में ईवीएम को लेकर विपक्ष द्वारा मचाए जा रहे फ़िज़ूल के हंगामे पर एकदम सटीक बैठती है। एक तरफ यूपी की पराजय से सपा, बसपा तो दूसरी तरफ पंजाब में हुई हार से आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल

योगी सरकार के आते ही यूपी के शासन-प्रशासन की कार्य-संस्कृति में दिखने लगा बदलाव

उत्तर प्रदेश के 2012 के विधानसभा चुनावों में जब समाजवादी पार्टी को 224 सीटों का बहुमत प्राप्त हुआ था, तो जीत का जश्न इस कदर चला कि अखिलेश सरकार के तमाम मंत्रियों और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की जीत की खुमारी हफ़्तों तक नही उतरी थी। सपा कार्यकर्ताओं ने जश्न की खुमारी में काफी उत्पात मचाया था। यहाँ तक कि जश्न के दौरान एक व्यक्ति की मौत भी हो गयी थी; मगर उससे भी जश्न फीका नही पड़ा।

ईवीएम पर सवाल उठाने की बजाय हार के कारणों पर आत्ममंथन करें विपक्षी दल

पांच राज्यों में चुनाव संपन्न हो गये हैं और परिणाम भी सबके सामने आ चुके हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने की तैयारी में है तो वही मणिपुर और गोवा में भाजपा की सरकारें बन चुकी हैं। यानी पंजाब के अलावा अन्य राज्यों के चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है। स्पष्ट है कि जनता ने केंद्र की मोदी सरकार के लोक कल्याण से जुड़ी योजनाओं व विकासवादी एजेंडे के

सीएसओ ने जारी किए आंकड़े, नोटबंदी का नहीं पड़ा अर्थव्यवस्था पर कोई दुष्प्रभाव

नोटबंदी पिछले तीन महीनो से देश के सबसे चर्चित विषयों में से एक रही है। विपक्षियों द्वारा नोटबंदी के बाद इस बात को लेकर बहुत शोर किया गया कि नोटबंदी से देश की कृषि और अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी। लेकिन, कुछ समय पहले आये फसल उत्पादन में वृद्धि के आंकड़ों के बाद जहां यह साफ़ हो गया कि नोटबंदी से कृषि पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा है; वहीँ अभी हाल ही में केंद्रीय सांख्यिकी

मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का दमन करने वाला है तीन तलाक, लगना चाहिए प्रतिबन्ध

तीन तलाक का मामला चर्चा में बना हुआ है। 1937 में मुस्लिम पर्सनल क़ानून यानि शरिया में मिले इस अधिकार ने देश भर में लाखों नुस्लिम महिलाओं की ज़िन्दगी के साथ खिलवाड़ किया है। स्त्री-पुरुष असमानता सहित मुस्लिम औरतों के बुनियादी हक़ से उन्हें वंचित वाली इस शरियाई व्यवस्था पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग करते हुए 50,000 से ज्यादा दस्तख़त वाला एक मांगपत्र प्रधानमंत्री को भेजा जा चुका है और अब

आतंकियों के मददगारों पर सेना प्रमुख के कठोर रुख से बौखलाए क्यों हैं विपक्षी दल ?

भारतीय थल सेनाध्यक्ष विपिन रावत का ताजा बयान सेना पर पत्थर बरसाने वालों के लिए कड़े सन्देश और चेतावनी की तरह नज़र आ रहा। लेकिन, राष्ट्रीय हित में जारी इस चेतावनी को भी कांग्रेस व कुछ अन्य विपक्षी दलों ने राजनीतिक चश्मे से देखने में कोई गुरेज़ नहीं किया, जो देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। साथ ही, यह इन विपक्षी दलों के राष्ट्र-हित के तमाम दावों की भी पोल खोल रहा है। गौरतलब है कि सभी

अखिलेश सरकार के विकास के दावों की पोल खोलते आंकड़े

उत्तर प्रदेश चुनाव में सत्तारूढ़ सपा के सर्वेसर्वा अखिलेश यादव ‘काम बोलता है’ का नारा लगाते हुए राज्य में अपने कथित विकास की ढोल पीट रहे हैं, लेकिन जब हम राज्य के विकास से सम्बंधित आंकड़ो पर नज़र डालते हैं, तो दूसरी ही तस्वीर सामने आती है। यूपी विकास केंद्रित मापदंडो पर बेहद पिछड़ा हुआ दिखाई देता है। गौरतलब है कि सन 2012 जब प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनी, तबसे लेकर

बज़ट 2017-18 : राष्ट्र के दूरगामी हितों और नागरिकों के सर्वांगीण विकास को समर्पित

१ फरवरी २०१७ को अरुण जेटली ने २०१७-१८ के वित्तीय वर्ष का बजट प्रस्तुत किया। वित्त वर्ष २०१७-१८ का यह बज़ट पिछले कई वर्षो से पेश किये जा रहे अन्य बजटों की अपेक्षा ज्यादा चर्चित रहा, क्योंकि इस बार समय से पहले बज़ट पेश करने को लेकर विपक्ष सहित तमाम लोग यह अनुमान लगा रहे थे कि इस बजट में केंद्र की मोदी सरकार आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र लोक-लुभावने ऐलान कर सकती

घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए बनने लगा माहौल

सन १९९० में कश्मीरी पंडितो को कट्ट्रपंथियों के दबाव में मजबूरन अपना घर छोड़कर घाटी को अलविदा कहना पड़ा था, मगर आज २७ साल बाद उन्हें पुन अपने घर वापसी का रास्ता मिल गया है। २० जनवरी २०१७ को जम्मू कश्मीर विधान सभा में सभी दलों की सर्वसहमति के पश्चात् घाटी के पंडितो को विस्थापित करने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया है। गौरतलब है कि इस प्रस्ताव के पारित होने के ठीक २७ वर्ष