नेशनलिस्ट ऑनलाइन

थाईलैंड में हिन्दू-बौद्ध दर्शन का समावेश: राम को अपना आराध्य मानते हैं वहां के लोग

थाइलैंड की मान्यता के अनुसार रामायण थाइलैंड की कहानी है। थाइलैंड को पहले सियाम कहा जाता था जिसकी राजधानी अयुत्थया थी। ऐसा माना जाता है कि अयुत्थया या अयोध्या के राजा राम थे। इनके बाद 1782 में नए राजा ने कई कारणों से पुरानी राजधानी को अपने लिए अनुपयुक्त समझा और चाओ फरया नदी की

नेशनल राइटर्स मीट: लेखकों के जुटान से मिला अनुभवों का पिटारा

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउन्डेशन द्वारा दिल्ली में 30-31 जुलाई को आयोजित नेशनल राइटर्स मीट में देश भर से तीन सौ से ज्यादा लेखकों ने हिस्सा लिया। व्याख्यान अब सवाल-जवाब वाले कई सत्र आयोजित हुए। फाउन्डेशन की वेबसाईट नेशनलिस्ट ऑनलाइन डॉट कॉम को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा लांच किया गया। इस कार्यक्रम से लौटकर अपना अनुभव साझा कर रहे हैं पुष्कर अवस्थी:

गौतम बुद्ध और हिन्दू दर्शन

हमारे अनेक बुद्धिजीवी एक भ्रांति के शिकार हैं, जो समझते हैं कि गौतम बुद्ध के साथ भारत में कोई नया ‘धर्म’ आरंभ हुआ। तथा यह पूर्ववर्ती हिन्दू धर्म के विरुद्ध ‘विद्रोह’ था। यह पूरी तरह कपोल-कल्पना है कि बुद्ध ने जाति-भेदों को तोड़ डाला, और किसी समता-मूलक दर्शन या समाज की स्थापना की। कुछ वामपंथी लेखकों ने तो बुद्ध को मानो कार्ल मार्क्स का पूर्व-रूप जैसा दिखाने का यत्न किया है। मानो वर्ग-विहीन समाज बनाने का विचार बुद्ध से ही शुरू हुआ देखा जा सकता है, आदि।

श्रीमद्भगवद गीता के अनुवाद का अद्वितीय रचनाकर्म

किसी रचना अथवा कृति का एक भाषा से दुसरी भाषा में अनुवाद तो साहित्य-सृजन की एक आम प्रक्रिया है,मगर भाषा के साथ-साथ बिना भावार्थ बदले किसी कृति की मूल विधा को अन्य विधा में अनुवादित करना एक अद्दभुत किस्म का रचनाकर्म है। वेद-व्यास कृत श्रीमदभगवद गीता भारतीय संस्कृति की एक ऐसी पुस्तक है जो महज पुस्तक नहीं बल्कि घर-घर एवं व्यक्ति-व्यक्ति के आस्था का केंद्र-बिंदु भी है।

बौद्धिक एवं सामाजिक आंदोलन से भारत बनेगा विश्वगुरु: देवेन्द्र स्वरूप

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक, पांचजन्य के पूर्व संपादक तथा वरिष्ठ इतिहासकार देवेन्द्र स्वरूप जी भारतीय इतिहास तथा संस्कृति के गहन अध्येता है। जीवन के नौ दशक पार कर चुके देवेन्द्र स्वरूप जी के स्तम्भों को पांचजन्य में नियमित पढ़ा जा सकता है। वे राष्ट्रवादी पत्रकारिता के आधारस्तम्भ है। जीवन में सादगी, विचारधारा से

भारत की अर्थनीति ग्रामाधारित है, जिसकी रीढ़ है कृषि: डॉ. महेश चन्द्र शर्मा

कोई चीज़ स्वदेशी है इतने मात्र से ही वह ग्राहीय नही होती हैं। विदेशी होने मात्र से त्याज्य और स्वदेशी होने मात्र से ग्राहीय ऐसा दीनदयाल जी नहीं मानते हैं।छुआछूत भी स्वदेशी है, लेकिन वह ग्राहीय तो नहीं है। इसलिए जो स्वदेशी है उसे युगानुकूल यानी युग के तर्क के अनुकूल बनाना और जो विदेशी

पत्रकारिता की सरोकारी चिंताओं को रेखांकित करती पुस्तक

पत्रकार उमेश चतुर्वेदी की यह पुस्तक मीडिया के बदलते स्वरूप पर जहां एक ओर चिंता जाहिर करती है, वहीं दूसरी ओर सकारात्मक बदलाव के प्रति उम्मीद भी जगाती है। लेखक का मानना है कि उदारीकरण व नई आर्थिक नीतियों ने समाज व व्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया है। मीडिया भी इस बदलाव से अछूता नहीं रहा है। प्रिंट हो चाहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, उनके काम करने की शैली में आमूलचूल परिवर्तन आया है। पहले पत्रकारिता

पुस्तक-समीक्षा: रोम-रोम में बसे हैं श्रीराम

रामकथा आदर्श जीवन की संपूर्ण गाइड है। राम भारतवर्ष के प्राण हैं। वे भारत के रोम-रोम में बसे हैं। यही कारण है कि उनका अनादर देश बर्दाश्त नहीं कर सकता। मेरे राम मेरी रामकथा लिखने से पूर्व प्रख्यात लेखक नरेन्द्र कोहली राम चरित्र पर एक वृह्द उपन्यास लिख चुके हैं, जिसे खूब सराहा गया। यह दो भागों में था अभ्युदय-१ (दीक्षा, अवसर, संघर्ष की ओर) और अभ्युदय-२ (युद्ध-१ व युद्ध-२)। पहला खंड दीक्षा का लेखन उन्होंने १९७३ में शुरू किया था

भाजपा विरोधियों के दोहरे चरित्र से उठने लगा पर्दा, बेनकाब होने लगे चेहरे

साल 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार सत्ता में आयी तभी से विपक्षी दल, सुनियोजित गैंग की तरह काम करने वाले मीडिया घरानों और कुछ एनजीअे तंत्र द्वारा पूरे देश में ऐसा माहौल बनाया गया जैसे की भाजपा सरकार बनने से देश में तानाशाही लागू हो गयी हो।

भारतीय समाज का सच्चा प्रतिविम्ब है लोक-साहित्य

साहित्य समाज का वो आईना होता है जिसमे सदियों-सदियों तक तत्कालीन समाज का पारदर्शी चेहरा अपनी भौगोलिक,सांस्कृतिक एवं सामाजिक विविधताओं के विम्ब रूप में सुरक्षित रहता है। कम शब्दों में कहें तो साहित्य ही वो एकमात्र संचय-यंत्र है जिसमे समाज के हर तत्व को समेट लेने की अक्षय ऊर्जा होती है। इसमें कोई शक नहीं कि साहित्य के मूल्यांकन का मापदंड उसकी रचनाशीलता एवं अपने समाज के मूल स्वरुप के प्रतिचित्रण की चिरकालीनता होनी चाहिए।