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तय करें मुसलमान, वे हैदर रज़ा के साथ हैं या मकबूल फ़िदा हुसैन के साथ ?

सैयद हैदर रज़ा साहब के बारे में सोचते हुए यह लेख लिख रहा हूँ जो अभी 23 जुलाई को ही दिवंगत हुए हैं। स्वभाव की तरह यहां भी एंगल राष्ट्रवादी ही है और इस बड़े आदमी की तुलना अकस्मात मकबूल फ़िदा हुसैन जैसे दोयम दर्जे के व्यक्ति से कर बैठ रहा हूं। एक तरफ हैदर रजा हैं दूसरी तरफ मकबूल।

भारत की सांस्कृतिक विरासत हैं जनजातीय लोक-कलाएं

तिहास के तमाम अचिन्हित पन्नों एवं भारतीय भूगोल की तमाम अनहद सीमाओं में अपनी विविधताओं से परिपूर्ण संस्कृतियों एवं कलाओं की गुमनाम छाप छोड़ने वाली तमाम जनजातियां वर्तमान में मुख्यधारा के सांस्कृतिक मंचों के नेपथ्य में जाने के बावजूद विमर्शों में कायम हैं। वर्तमान भारत के भूगोल और प्राचीन भारत के इतिहास के बीच यहाँ के मूल निवासियों को लेकर एक भ्रम की स्थिति आज भी सांस्कृतिक विमर्शों का हिस्सा बनी हुई है। हलाकि तमाम लेखकों एवं इ

कुर्सी से चिपकने की राजनीति में पीएचडी है केजरीवाल की पार्टी: अन्ना हजारे

भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में अन्ना हजारे के सहयोगी रहे अरविन्द केजरीवाल के संबध में सवाल पूछने पर अन्ना कहते हैं कि केजरीवाल ने राजनीति में जाकर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया। मैंने पहले ही कहा था कि यह आंदोलन भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए होगा, राजनीति के लिए नहीं। मैंने राजनीतिक दल बनाने के लिए अरविंद को रोका था।

ई-शासन: मोदी सरकार में बढ़ा पारदर्शिता, सुगमता और संवाद का अवसर

किसी भी सरकार अथवा शासकीय व्यवस्था की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाता है कि वह अपने कार्यों में पारदर्शिता, आम जन के लिहाज से सुगमता और जनता से संवाद स्थापित करने की दिशा में किस ढंग से प्रयास कर रही है। शासकीय तंत्र की कार्यप्रणाली में लोकतांत्रिक मूल्यों के स्थायित्व के लिए पारदर्शिता, सुगमता और जनसंवाद, तीनों का स्थापन एक अनिवार्य शर्त की तरह है।

केवल राहुल गांधी ही नहीं, पूरी एक जमात के मुंह पर है कोर्ट का तमाचा

राहुल गांधी के लिए कोर्ट का यह आदेश एक अदालती आदेश भर नहीं है बल्कि यह एक ऐतिहासिक तथ्य भी बन गया है जिसे इतिहास में दर्ज करते हुए, पुर्व में किये गये इतिहास लेखन के घोटालों में सुधार किया जा सकता है।

इतिहास में की गयी गलतियां हैं कांग्रेस के बौखलाहट की मूल वजह

इतिहास लिखना और इतिहास लिखवाना दोनों दो बातें हैं। पिछले 69 वर्षों से स्वाधीन भारत में कांग्रेस ने सच के समानान्तर झूठों का एक पुलिंदा तैयार करवाया और उसे बता दिया कि यही है इस देश का इतिहास। कांग्रेस निर्मित इतिहास के घड़े में अब कुछ सुराख बन गये हैं और उसमें से वही बदबूदार पानी रिस रहा है जिसे कभी उसके पोषित बुद्धिजीवियों द्वारा देश पर थोपा गया था।

कुतर्कों की बुनियाद पर टिका वामपंथी बुद्धिजीवियों का विलासी-विमर्श

हिटलर के प्रचारक गोयबेल्स ने ये उक्ति यूँ ही नहीं कही होगी कि अगर किसी झूठ को सौ बार बोला जाय तो सामने वाले को वो झूठ भी सच लगने लगता है। भारत के संदर्भ में अगर देखा जाय तो आज ये उक्ति काफी सटीक नजर आती है। भारतीय राजनीति एवं समाज के विमर्शों में दो ऐसे शब्दों का बहुतायत प्रयोग मिलता है, जिनकी बुनियाद ही कुतर्कों और झूठ की लफ्फाजियों पर टिकी हुई है। ये दो शब्द हैं दक्षिणपंथ एवं फासीवाद।

आतंकवादियों की शवयात्रा निकालने पर पूरी तरह से रोक लगाने की जरुरत

भारतीय सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में बुरहान मुजफ्फर वानी की मौत के बाद निकले जनाजे में जमकर उत्पात हुआ। करीब 30 जानें जा चुकी हैं। अभी कितनी जान जाएगी, बता पाना मुश्किल है। हिंसक प्रदर्शन की वजह से अमरनाथ यात्रा रोकनी पड़ी है। हिंदुस्तान में हर साल करीब एकाध आतंकवादी ऐसा होता है, जिसकी शवयात्रा के दौरान हंगामा होता है।

सच्चे देशभक्त की तलाश गूगल पर नहीं दस्तावेजों में पूरी होगी

29 जून से 6 जुलाई तक दिल्ली के नेहरु मेमोरियल एंड लाइब्रेरी में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लेकर एक प्रदर्शनी का आयोजन हुआ था। इस कार्यक्रम का उद्घाटन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने किया था। प्रदर्शनी का उद्देश्य डॉ मुखर्जी के जीवन के उन तमाम पक्षों पर प्रकाश डालना था जिनपर या तो बिलकुल चर्चा नहीं हुई अथवा बहुत कम हुई है।

फ्रांस वाला खतरा भारत पर भी मंडरा रहा है, सचेत होइए!

मैं आतंकवाद के मामले में स्वार्थी हूँ। मैं, नीस में ट्रक से कुचलने से हुयी मौतों पर, फ्रांस के साथ किसी भी शोक और श्रधांजलि में नही खड़ा हूँ। मैं आप सबसे यही कहूँगा की आप भी कोई शोक मत मनाइये, यह काम राजनैतिज्ञों और आदर्श लिबरल का है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? क्या मेरे अंदर का इंसान मर गया है या फिर मैं ही दानव हो गया हूँ?