काउंटर फैक्ट

आरएसएस कार्यकर्ताओं के प्रति मार्क्सवादी हिंसा पर खामोश क्यों है असहिष्णुता गिरोह ?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या और उन पर जानलेवा हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है। यह घटनाएं किसी षड्यंत्र की ओर इशारा करती हैं। केरल, पंजाब, कर्नाटक और अब भाजपा शासित मध्यप्रदेश में भी संघ के कार्यकर्ता पर हमला करने की घटना सामने आई है। अभी इन घटनाओं के पीछे एक ही कारण समझ आ रहा है। संघ की राष्ट्रीय विचारधारा के विस्तार और उसके बढ़ते प्रभाव से अभारतीय

जेएनयू को बर्बादियों की तरफ ले जा रहा वामपंथी गिरोह

जेएनयू फिर से एक बार सुर्खियों में है। फिर से, ग़लत कारणों से। ये ग़लत वजहें किसी भी ‘जेनुआइट’ को परेशान कर सकती हैं। आपसी झगड़े के बाद से एक छात्र नजीब जेएनयू से गायब है। जहां तक मेरी स्मृति है, यह शायद जेएनयू में अपनी तरह की पहली घटना है। हां, इसके पहले फरवरी में भी कुख्यात ‘नारेबाज़ी’ कांड के बाद कुछ छात्र ‘भूमिगत’ हुए थे, लेकिन कोई लापता हो जाए, ऐसा पहली बार हुआ है। इस

इफ्तारी आयोजन धर्मनिरपेक्षता है तो मोदी का ‘जय श्रीराम’ कहना सांप्रदायिक कैसे हो गया, मिस्टर सेकुलर ?

यूपी चुनाव करीब है, जिसे देखकर तमाम राजनीतिक पार्टियॉं प्रधानमंत्री के लखनऊ में रावण-दहन के वक्त दिए गए उद्बोधन के राजनीतिक अर्थ निकाल रही हैं। राजनीतिक पार्टियों को यह भी ज्ञात होना चाहिए कि मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री है, जिन्होंने दशहरा में दिल्ली का किला छोड़कर लखनऊ के कार्यक्रम में हिस्सा लिया और अपने उद्बोधन में देश में व्याप्त कुरीतियों पर हमला किया। मोदी पर आज तक

तीन तलाक़ जैसी अमानवीय व्यवस्था के समर्थन में खड़े लोगों की शिनाख्त जरूरी

पिछले लगभग एक सप्ताह से ‘तीन तलाक़’ पर मची रार के बीच जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, जिस तरह से तमाम रोना-धोना मचा है, उसमें से छान कर तीन तरह की प्रतिक्रियाएं आप नमूने के तौर पर रख सकते हैं। पहली श्रेणी में वे मुसलमान हैं, जिनके मुताबिक ‘कुरान’ का ही आदेश अंतिम आदेश है, उसमें कोई फेरबदल नहीं किया जा सकता, चाहे कितनी भी विकृत प्रथा हो, उसको सुधारा नहीं जा सकता और

मुस्लिम औरतों का हक़ छिनकर इस्लाम की कौन-सी शान बढ़ाएंगे, मिस्टर मौलाना ?

नेशनल लॉ कमीशन की प्रश्नावली पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रवैया दुर्भाग्यपूर्ण है। लॉ कमीशन ने नागरिकों के विचार के लिए सिर्फ़ एक प्रश्नावली रखी है। उसने इस प्रश्नावली में यह भी नहीं कहा है कि समान नागरिक संहिता लागू कर ही दी जाएगी, बल्कि उसने इस पर एक स्वस्थ चर्चा की बुनियाद डालने का

तीन तलाक के मसले पर मौन क्यों है वामपंथी गिरोह ?

भारतीय कम्यूनिस्टों की चुप्पी इस समय उनके पक्ष का इजहार कर रही है। देश के कॉमरेड-फेमिनिस्ट और चर्च के इशारे पर अम्बेडकर के नाम की माला जपने वाले अम्बेडकरवादी भी इस समय चुप हैं। वे जानते हैं कि इस समय वे बोलेंगें तो अपनी पोल खोलेंगे। भारतीय जनता पार्टी को स्यूडो कम्यूनिस्ट एन्टीलेक्चुअल्स ने ही महिला विरोधी प्रचाारित किया था। यह समय कैसे संयोग का समय है कि भारतीय जनता पार्टी

कांग्रेस के ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के फर्जी दावों की खुली पोल

उड़ी आतंकी हमले के बाद से देश बड़ी आशा की निगाह से सरकार पर ध्यान लगाए बैठा था कि सरकार जवानों की शाहदत बेकार नहीं जाने देगी।उसके बाद से सरकार की तरफ से जो बयान आये उससे लगने लगा था कि सरकार की रणनीति अब पाक को धुल चटाने की है साथ में डीजीएमओ ने

‘तीन तलाक’ के बहाने फिर बेनकाब हुआ वामपंथी गिरोह

देश में कुछ ही समय बाद एक बड़ा मसला फिर से उठने वाला है। यह हालांकि दीगर बात है कि जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी नीत एनडीए सरकार आयी है, तब से ही तथाकथित बुद्धिजीवी, चिंतक और कलाकार किसी न किसी बहाने इस सरकार को घेरने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। यह भी कोई अनजानी बात नहीं कि ये सभी किसी न किसी तरह वामपंथी और कांग्रेसी वित्त पोषित और उन्हीं के गिरोह के भी हैं।

सेना पर भरोसा नहीं है क्या कि सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो मांग रहे हैं केजरीवाल ?

देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ के नेता और बुद्धिजीवी राष्ट्रीय मुद्दों पर भी बेतुकी बयानबाजी करने से बाज नहीं आते हैं। वक्त की नजाकत कहती है कि इस वक्त भारत और पाकिस्तान के संबंध में बहुत संभलकर बोलने की जरूरत है। इस वक्त कोई भी विचार प्रकट करते वक्त यह ध्यान रखना ही चाहिए कि उसका क्या असर होगा ? कहीं हमारा विचार दुश्मन देश को मदद न पहुँचा दे। अपने किसी भी बयान से भारत सरकार,

यह सिर्फ सर्जिकल स्ट्राइक नहीं, मोदी का ‘मास्टर स्ट्रोक’ है!

पिछले एक सप्ताह से तकरीबन हरेक जगह भारत के पाकिस्तान पर किए सर्जिकल स्ट्राइक की ही चर्चा है। और, यह न समझिए कि अपने एसी चेंबर में बैठकर केवल एंटरटेनमेंट चैनल के स्वयंभू विद्वान ही इस पर मशविरा कर रहे हैं। गुवाहाटी से गुड़गांव और दार्जिलिंग से दरभंगा तक, इसके चर्चे गरम हैं। बाल काटनेवाले नाई से लेकर कपड़े प्रेस करनेवाले भाई तक, हरेक आदमी की इस मुद्दे पर राय है और फैसला है।