पॉलिटिकल कमेंटरी

इन तथ्यों से साफ हो जाता है कि राजनीति की उपज है मध्य प्रदेश का किसान आंदोलन !

यह एक हद तक सही है कि देश में किसानों की माली हालत ठीक नहीं है, लेकिन पिछले दिनों जिस तरह अचानक देश के कई हिस्‍सों में किसानों का आंदोलन उठ खड़ा हुआ, उससे 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सक्रिय हुए पुरस्कार वापसी गिरोह की याद ताजा हो उठी। बाद में किसानों को आंदोलन के लिए भड़काने, सड़कों पर दूध बहाने से लेकर सब्‍जी फेंकने तक में कांग्रेसी नेताओं की संलिप्‍तता के ऑडियो-वीडियो

एससीओ की सदस्यता से पाकिस्तान को घेरने के लिए भारत को मिला एक और मंच

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ के सदस्य देशों के सामने आतंकवाद का मुद्दा उठाया। अपने संबोधन में उन्‍होंने भारत को सदस्य चुनने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि आंतकवाद मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन है और इससे हमे मिलकर निपटना होगा। उन्‍होंने थ भी कहा कि आतंकवाद मानव अधिकारों और मानव मूल्यों के सबसे बड़े उल्लंघनकारियों में से एक है। जब तक आतंकियों

अमित शाह ने ‘चतुर बनिया’ वाले बयान के जरिये कांग्रेस की दुखती रग पर ऊँगली रख दी है !

अमित शाह के ‘चतुर बनिया’ वाले बयान के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया बिलकुल स्वाभाविक हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर आज तक कांग्रेस ही ज़्यादातर सत्ता पर काबिज़ रही है और कांग्रेस के शीर्ष पर नेहरू-गांधी परिवार का ही दबदबा रहा है। गांधी को ये अंदेशा था, इसीलिए वो कांग्रेस को भंग करने की बात कहे थे। मगर, कांग्रेस ने उनकी इस इच्छा का तो सम्मान नहीं किया, बल्कि उनके

समस्या असहिष्णुता की नहीं, अभिव्यक्ति के अतिरेक की है !

सीबीआई के छापे मालिक के घर पर किसी अन्य कारण से पड़े, लेकिन उसे अभिव्यक्ति के हनन का मामला बना कर एनडीटीवी के ख्यात प्रस्तोता ने अपना एकांगी पक्ष रखा तो सोशल माध्यमों पर दूसरा पक्ष रखने वालों की बाढ़-सी आ गयी। ऐसी बहसों में गलत क्या है, जब मीडिया का दावा ही सच को उजागर करने का है?

नीतीश कुमार ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था का मखौल बना दिया है !

बिहार में शिक्षा की किस कदर दुर्गति हुई है, इसका प्रमाण हमें पिछले दो साल के टॉपर ही दे देते हैं। गणेश कुमार और रूबी राय। दो नाम ही काफी हैं, शैक्षणिक व्यवस्था के क्रमिक विनाश को समझने के लिए। 2015 में बिहार में बारहवीं की परीक्षा में 75 फीसद छात्र पास हुए, वहीं 2017 में सिर्फ 36 फीसद छात्र ही उत्तीर्ण हुए यानि 64 प्रतिशत छात्र फेल हो गए। दो वर्षों के नतीजों के बीच आया ये बड़ा अंतर चौंकाता है।

मोदी के रूस दौरे से पाक के रूस से नजदीकी बढ़ाने की कूटनीति को जोरदार धक्का लगा है !

देखा जाये तो आज विदेश नीति के मायने बदल गये हैं। पहले विदेश नीति के तहत सामरिक मामलों को तरजीह दी जाती थी, लेकिन अब इसके अंतर्गत आर्थिक मसलों को केंद्र में रखा जाता है। आज की तारीख में छोटे देश भी परमाणु हथियार से लैस हैं। ऐसे में कोई भी देश किसी दूसरे देश पर हमला करने की हिमाकत नहीं कर सकता है।

सौ दिन भी नहीं हुए पंजाब में कांग्रेस सरकार को बने और भ्रष्टाचार के गुल खिलने लगे !

पंजाब में सत्ता प्राप्त होते ही कांग्रेस अपने पुराने रंग-ढंग में ढलती हुई नज़र आ रही है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तो उम्मीद की जा रही थी कि वे वाकई पंजाब में कुछ अलग करेंगे। लेकिन, अब कुछ महीनों के अन्दर ही कैप्टन सरकार में भ्रष्टाचार के गुल खिलने शुरू हो गए हैं।

विकास की राजनीति के तीन साल

भाजपा नीत मोदी सरकार के तीन सालों के शासन के बाद आज देश में जो राजनीतिक माहौल नज़र आ रहा उसका स्पष्ट संकेत यही है कि अगर फिर से आम चुनाव कराया जाये तो आसानी से भाजपा दोबारा सत्ता में आ जायेगी। ऐसे में इस सवाल का उठना लाजिमी है कि आखिर कौन से कारण हैं, जिनकी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पूरे देश में कायम है।

मोदी सरकार के तीन साल बीतने के बाद कहाँ खड़ा है विपक्ष ?

केंद्र में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के तीन साल पूरे हो रहे हैं। सरकार के उठाए गए कदमों के बारे में सब जगह चर्चा हो रही है, लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र में बगैर विपक्ष के बारे में बात किए कोई चर्चा पूरी नहीं होती है। आज जब सरकार ने तीन साल पूरे कर लिए हैं और प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में लगातार इजाफा हो रहा है, तब विपक्ष के बारे में, उसकी नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में विचार करना और जरूरी

नेहरू की ऐतिहासिक भूलों का परिणाम हैं देश की अधिकांश समस्याएँ

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह ने कश्‍मीर समस्‍या के लिए कांग्रेस को जिम्‍मेदार ठहराया। देखा जाए तो कश्‍मीर ही नहीं, देश में जितनी भी समस्‍याएं हैं उनमें से अधिकांश के लिए नेहरू परिवार की सत्‍ता लोभी राजनीति जिम्‍मेदार है। अपने को उदार साबित करने और विश्‍व में शांतिरक्षक का तमगा पाने के लिए नेहरू ने कई ऐसी भूलें की हैं, जिनका खामियाजा देश को सैकड़ों वर्षों तक भुगतना