समाज-संस्कृति

‘निर्मला सीतारमण ने बजट को भारतीय परम्पराओं से जोड़ने की एक कामयाब कोशिश की है’

निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट प्रस्तुत करने के साथ देश में वर्षों पुरानी एक परंपरा को भी तोड़ डाला। अंग्रेजों के समय से तत्कालीन वित्त मंत्री चमड़े के ब्रीफकेस में बजट दस्तावेज लेकर पहुंचते थे। मगर निर्मला सीतारमण लाल मखमली कपड़े में बजट दस्तावेजों को रख कर संसद पहुंचीं।

क्या स्मार्टफोन की लत में एक रोबोटिक समाज बनते जा रहे हम?

हाल ही में जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केअर की एक रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2011 से 2017 तक दुनिया भर में सेल्फी लेते समय 259 लोगों की मौत हुई। इनमें सबसे अधिक 159 मौतें  अकेले भारत में हुईं। जब 1876 में पहली बार फोन का आविष्कार हुआ था तब किसने सोचा था कि यह अविष्कार जो आज विज्ञान जगत में सूचना के क्षेत्र में क्रांति लेकर आया है,

‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भारत की महान धरोहर के प्रति विश्व की सहमति है’

योग भारत की अमूल्य धरोहर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से आज विश्व में इसकी गूंज है। पांच वर्ष पहले उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में योग दिवस मनाने का प्रस्ताव किया था, इस पर सबसे कम समय में सर्वाधिक देशों के समर्थन का रिकार्ड कायम हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने जिस ऐतिहासिक समर्थन से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को स्वीकार किया था, वह रा

21 जून को योग दिवस के लिए चुनने के पीछे कोई इत्तेफाक नहीं, ठोस वैज्ञानिक कारण हैं

योग के विषय में कोई भी बात करने से पहले जान लेना आवश्यक है कि इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह  है कि आदि काल में इसकी रचना, और वर्तमान समय में इसका ज्ञान एवं इसका प्रसार स्वहित से अधिक सर्व अर्थात सभी के हित को ध्यान में रखकर किया जाता रहा है। अगर हम योग को स्वयं को फिट रखने के लिए करते हैं, तो यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन अगर हम इसे

भारतीय कलाओं पर भव्य आयोजन का साक्षी बना यूपी का राजभवन

राज्यपाल राम नाईक के कार्यकाल में राजभवन अनेक भव्य सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का गवाह बना है। राजभवन के द्वार आमजन के लिए भी खोले गए। इसके माध्यम से राम नाईक ने राज्यपाल के कर्तव्यों को नया आयाम भी दिया है। भविष्य में इसे नजीर के रूप में प्रतिष्ठा मिलेगी। ऐसे ही कार्यक्रमों में बीते दिनों सम्पन्न हुई कलाकारों की कार्यशाला का भी शुमार हुआ।

‘बलात्कार की इन घटनाओं के लिए केवल आरोपी नहीं, समाज भी जिम्मेदार है’

हर आँख नम है, हर शख्स शर्मिंदा है, क्योंकि आज मानवता शर्मसार है, इंसानियत लहूलुहान है। एक वो दौर था जब नर में नारायण का वास था लेकिन आज उस नर पर पिशाच हावी है। एक वो दौर था जब आदर्शों नैतिक मूल्यों संवेदनाओं से युक्त चरित्र किसी सभ्यता की नींव होते थे, लेकिन आज का समाज तो इनके खंडहरों पर खड़ा है। वो कल की बात थी जब मनुष्य को अपने

मोदी और योगी के राज में अपने गौरव के अनुकूल विकसित हो रही अयोध्या

यह मानना पड़ेगा कि योगी आदित्यनाथ की सरकार केंद्र के प्रयासों में सहयोगी की भूमिका का बखूबी निर्वाह कर रही है। यह सहयोग सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की गौरव-गाथा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि केंद्र की विकास और कल्याणकारी योजनाओं को भी प्रदेश में बेहतर ढंग से लागू किया गया है। इतना ही नहीं कई क्षेत्रों में तो राष्ट्रीय स्तर के कीर्तिमान भी स्थापित हुए।

मोदी राज में बढ़ रही गांधी के खादी की लोकप्रियता

महात्मा गांधी ने कुटीर उद्योग के माध्यम से देश की आर्थिक समृद्धि का जो सपना देखा था, उसे पूरा करने के लिये केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) के अधीनस्थ खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग एवं अन्य माध्यमों से लगातार प्रयास कर रहा है। आयोग गर्मियों के लिए सिली-सिलाई कुर्तियां, कमीजें, सलवार-कमीज, कुर्ता-पायजामा, साड़ियाँ तथा सर्दियों के लिए

शहादत दिवस : ‘इंसान को मारा जा सकता है, उसके विचार को नहीं’

23 मार्च को भारतवासी कैसे भुला सकता है? इसी दिन देशभक्त भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू ने भारत माता को परतंत्रता की बेड़ियो से आजाद करवाने के लिए मौत को गले लगाया था। इन तीन वीर सपूतों को अपने मौत का कोई गम नहीं था, बल्कि इनके चेहरे पर खुशी का भाव था कि उनकी शहादत ने लोगों में आजादी के प्रति जुनून पैदा कर गया। 23 मार्च कोई समान्य तिथि नहीं है, इसी दिन भारत के कोने कोने में क्रांति

‘स्त्री न पहले कभी अबला रही और न अब है’

संसार की आधी आबादी महिलाओं की है। अतः विश्व की सुख-शांति और समृद्धि में उनकी भूमिका भी विशेष रुप से रेखांकनीय है। भारतीय-चिन्तन-परम्परा में यह तथ्य प्रारंभ से ही स्वीकार किया जाता रहा है। इसलिए भारतीय-संस्कृति में नारी सर्वत्र शक्ति-स्वरुपा है; देवी रुप में प्रतिष्ठित है।