समाज-संस्कृति

‘अकबर ने दुर्भावना से प्रयागराज का नाम बदला था, योगी आदित्यनाथ ने इसे सुधारा है’

कुंभ का आयोजन ग्रह नक्षत्रों के संयोग से होता है। प्रयाग कुंभ के इतिहास में नया संयोग जुड़ा। वह यह कि इस समय उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश ही नहीं, विश्व में रहने वाले हिंदुओं की आस्था का ध्यान रखा। भारत में अनेक स्थानों के पुराने नाम बहाल करने के लिए आंदोलन या अभियान चलाने पड़े। बंबई को मुम्बई नाम दिलाने का अभियान

लोकमंथन : भारतीयता के गौरव की अनुभूति कराने वाला आयोजन

भारत में विचार विनिमय की अपनी एक समृद्ध संस्कृति रही है। ऋषि, मुनि तथा विचारक एक जगह एकत्रित होकर समाज की समस्याओं तथा उसके निवारण पर विमर्श करते थे। धीरे–धीरे इस परम्परा ने सामाजिक उत्थान की बजाय राजनीतिक उत्थान का रास्ता चुन लिया अर्थात हर विमर्श राजनीतिक दृष्टि से आयोजित होने लगे जिससे भारतीय समाज और संस्कृति को भारी नुकसान

जयंती विशेष : भारतीयता के चिंतक दीन दयाल उपाध्याय

राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास को लेकर दुनिया के तमाम विद्वानों ने अलग-अलग वैचारिक दर्शन प्रतिपादित किए हैं। लगभग प्रत्येक विचारधारा समाज के राजनीतिक, आर्थिक उन्नति के मूल सूत्र के रूप में खुद को प्रस्तुत करती है। पूँजीवाद हो, साम्यवाद हो अथवा समाजवाद हो, प्रत्येक विचारधारा समाज की समस्याओं का समाधान देने के दावे के साथ

‘हिन्दू चिंतन-दर्शन का अलग रूप है, तो यह हिन्दुओं के जीवन में दिखना भी चाहिए’

भारतीय चिंतन व ज्ञान में विश्व कल्याण की कामना समाहित रही है। तलवार के बल पर अपने मत के प्रचार की इसमें कोई अवधारणा ही नहीं है। सवा सौ वर्ष पहले स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में भारतीय संस्कृति के इस मानवतावादी स्वरूप का उद्घोष किया था। यह ऐतिहासिक भाषण शिकागो की पहचान से जुड़ गया। इसकी एक सौ पच्चीसवीं जयंती पर शिकागो में विश्व

अटल जी कोई शौकिया कवि नहीं थे, बल्कि कवित्व उनके स्वभाव में रचा-बसा था!

देश का बहत्तरवां स्वतंत्रता दिवस एक ऐसी तारीख के रूप में इतिहास में दर्ज हो चुका है, जिसके अगले ही दिन राजनीतिक जीवन में नैतिक निष्ठा और वैचारिक शालीनता के पर्याय, समावेशी राजनीति के अग्रदूत, जनप्रिय नेता, प्रखर वक्ता, काल के कपाल पर जीवन के गीत लिखने वाले मूर्धन्य कवि और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 93 वर्ष की अवस्था में मृत्यु

भारतीय राजनीति के अजातशत्रु का अवसान

आपने पिछले बार दिल्ली की सडकों पर ऐसा विशाल जनसैलाब कब देखा? किसी नेता के लिए ऐसा अपार प्यार, स्नेह और इज्ज़त आपने कब देखा? यह याद रखिए अटल जी ने एक ऐसे समय में सियासत की थी, जब कोई सोशल मीडिया नहीं थी, लेकिन इसके बावजूद लाखों-करोड़ों  लोगों के दिल में उनकी प्रतिमा स्थापित रही। अब पूरे देश के सामने यह उदाहरण है कि

हमें समझना होगा कि आजादी का मतलब सिर्फ अधिकार नहीं, कर्तव्य भी है!

आज देश अपना बहत्तरवां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। ऐसे में इस सवाल पर चर्चा होनी चाहिए कि आखिर स्वतंत्रता से हम क्या समझते हैं? आजादी का हमारे लिए क्या मतलब है  ? एक स्वतंत्र देश में हमें क्या करना चाहिए? आज यह सवाल हमें हमें खुद से बार-बार पूछने चाहिए

लोकमान्य तिलक : स्वराज के वो सिपाही जिन्हें इतिहास में वह जगह नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी!

तिलक का जीवन-चरित्र और संघर्ष नदी के विपरीत दिशा में बहने वाले नाविक का रहा है। वो अपने जीवन में सिर्फ स्वयं-सिद्धि के कार्यों में नहीं लगे हुए थे बल्कि ऐसे लोगों और संस्थाओं की तलाश में थे जो राष्ट्रवाद की अलख जगा सकें। तिलक की बहुआयामी प्रतिभा उनके कार्यों से स्पष्ट होती है।

राम नाईक : जिनकी सक्रियता यह सन्देश देती है कि राज्यपाल का पद आराम के लिए नहीं है!

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने ‘चरैवेति-चरैवेति’ शीर्षक से अपने संस्मरण लिखे हैं। वस्तुतः यह उनका निजी जीवन दर्शन भी है, जिस पर उन्होंने सदैव अमल किया है। यही कारण है कि उन्होंने राजभवन के प्रति प्रचलित  मान्यता को बदल दिया। चार वर्ष का उनका कार्यकाल चरैवेति-चरैवेति को ही रेखांकित करता है।

अंग्रेजों और वामपंथियों के ऐतिहासिक झूठों को राखीगढ़ी-सिनौली की खोजों ने किया बेनकाब

जून, 2018 का महीना इस बात के लिए याद किया जाएगा कि इस महीने में ऐसी दो ऐतिहासिक खोजें सामने आईं, जिन्होंने भारत के प्राचीन इतिहास पर लिखी गयी अबतक की तमाम पुस्तकों को बेमानी साबित कर दिया है। हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी गाँव और उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के सिनौली गाँव से सम्बंधित इन दोनों ऐतिहासिक खोजों ने वैदिक युग, आर्य