नोटबंदी

भ्रम और नेतृत्वहीनता के भँवर में घिरी कांग्रेस

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस वक्त उस दौर से गुजर रही है जहां पार्टी नेतृत्व के सम्बन्ध में उसके नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक में एक भ्रम और उलझन लक्षित किया जा सकता है । अपनी बीमारी और राहुल गांधी को आगे बढ़ाने की रणनीति के तहत कांग्रेस अध्यक्षा ने खुद को नेपथ्य में रखा था । उनके नेपथ्य में रहने की वजह से पुरानी पीढ़ी के नेता स्वत: परिधि पर चले गए थे और राहुल गांधी के आसपास के

विमुद्रीकरण : निर्णय एक आयाम अनेक

सचमुच अतुलनीय हैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी। अनपेक्षित और चौकाऊ, हर कयास से परे, हर वह साहसिक फैसला लेने को हमेशा तैयार जिससे देश का कोई भला होने वाला हो, जिससे माँ भारती का भाल ज़रा और ऊँचा उठने वाला हो। देश भर में भाजपा-जन जब राजनीति में शुचिता के प्रतीक पुरुष श्री लालकृष्ण आडवाणी का जन्मदिन मना रहे थे, उसी दिन भारत में आर्थिक स्वच्छता के एक बड़े कदम, या यूं कहें

चंडीगढ़ निकाय चुनाव : भाजपा की चली आंधी, जनता ने दिखाया विपक्षी दलों को आईना

हाल ही में पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ में निकाय चुनावों के परिणाम आये। इन चुनावों में जनता ने भाजपा को ऐतिहासिक रूप से विजयी बनाया है। चंडीगढ़ निकाय के कुल 26 वार्डों में से 22 वार्डों में भाजपा ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 20 में उसे जोरदार जीत हासिल हुई है। भाजपा की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को सिर्फ एक सीट हाथ लगी, वहीँ पिछली बार के चुनावों में ११ सीटें जीतने वाली कांग्रेस

संसद सत्र को हंगामे की भेंट चढ़ाने वाले विपक्षी दलों का जनता करेगी हिसाब

लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद का का काम जनता की भलाई करना होता है, लेकिन शीतकालीन सत्र में जो स्थिति नजर आई, उसे देखकर इस सम्बन्ध में निराशा ही होती है। जिस नोटबंदी पर विपक्ष ने इस पूरे संसद सत्र को हंगामे की भेंट चढ़ा दिया, उसपर भारतीय जनता सरकार के साथ खड़ी है। क्योंकि लोगों को समझ आ रहा है कि इसका दूरगामी असर देश के लिए सुखद साबित होगा। फिर किस उद्देश्य की पूर्ति के

संसद ठप्प करने की नकारात्मक राजनीति से बाज आयें विपक्षी दल

संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त होने में चंद दिन शेष बचे हैं और अबतक का यह पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। नोटबंदी को लेकर विपक्षी दल लोकतंत्र के मंदिर संसद मे जो अराजकता का माहौल बनाए हुए हैं, वह शर्मनाक है। सरकार नोटबंदी पर चर्चा को तैयार है, लेकिन विपक्षियों को तो चर्चा चाहिए ही नहीं, क्योंकि चर्चा में वे टिक नहीं पायेंगे, इसलिए बस फिजूल का हंगामा कर संसद का वक़्त और

गरीबों-मजदूरों के लिए लाभकारी है नोटबंदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी के फैसले को लागू करके बड़ा रिस्क लिया है जो अगर वो नहीं भी लेते तो कोई फर्क नहीं पड़ता और उनकी राजनीति निर्बाध गति से चलती रहती । नोटबंदी के पहले हो रहे तमाम सर्वे के नतीजे यह बता रहे थे कि मोदी सबसे लोकप्रिय नेता हैं । बावजूद ये जोखिम उठाना इस बात का संकेत देता है कि नरेन्द्र मोदी देश के लिए कुछ बड़ा करने की दिशा में कदम उठा चुके हैं ।

चार दशकों के राजनीतिक सफर में हर अवसर पर विफल रहे हैं मनमोहन सिंह

एक पत्रकार वार्ता (जनवरी 2014) में डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि मेरा मूल्यांकन इतिहास करेगा। इसमें कोई शक नहीं कि चार दशक तक किसी एक राजनीतिक दल के साथ पूरी वफादारी और राजनीतिक निष्ठा से सरकार में शीर्ष पदों पर काम करने वाले व्यक्ति का मूल्यांकन होना स्वाभाविक है। इसमें कोई शक नहीं कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में डॉ मनमोहन सिंह उन चंद लोगों में से एक हैं, जिन्हें

समय की मांग है नकदी रहित अर्थव्यवस्था

8 नवम्बर को केंद्र की मोदी सरकार द्वारा देश में पाँच सौ और एक हजार के नोटों को प्रतिबंधित कर दिया गया और फिर इनकी जगह पाँच सौ और दो हजार के नये नोटों की शुरुआत की गई। चूंकि, पाँच सौ और हजार के पुराने नोट देश की कुल नकदी का ८६ प्रतिशत थे, इसलिए इनका प्रतिबंधित होना देश की अर्थव्यवस्था से लेकर आम जनों की घरेलू आर्थिकी तक को सीधे-सीधे प्रभावित करने वाला था। बैंकों के आगे

नोटबंदी : कैशलेस अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ता देश

देश को भ्रष्टाचार और कालेधन से मुक्त करने के लिये प्रधानमंत्री नेरंद्र मोदी की 8 नवंबर को एकाएक की गई घोषणा ने सभी हलकनों में हलचल-सी पैदा कर दी। इस ऐलान के बाद से सभी 500 और 1000 रूपये के पुराने नोट अमान्य हो गये। हालांकि इस देशव्यापी फैसले से लोगों को थोड़ी समस्या का सामना तो करना पड़ रहा है, किंतु अब लोग कैशलेस और मोबाइल वॉलेट का अधिक उपयोग कर रहे हैं, जिससे

निकाय चुनावों में भाजपा की इस बम्पर जीत के बाद तो नोटबंदी के विरोध की राजनीति बंद करें विपक्षी!

वैसे तो हर चुनाव का मुद्दा और कलेवर अलग होता है। उसमे भी स्थानीय निकाय और नगर पंचायत चुनावों का मुद्दा पूर्णतया स्थानीय होता है। परंतु पिछले दिनों महाराष्ट्र और गुजरात मे निकाय चुनाव का आयोजन विमुद्रीकरण के साए में हुआ जहां पर अन्य स्थानीय मुद्दों के अलावा विमुद्रीकरण चुनाव में बड़ा मुद्दा था और हर पार्टी इस मुद्दे को भुनाने में लगी थी। इस चुनाव मे भाजपा ने भारी जीत दर्ज की जिसे प्रधानमंत्री