मोदी

मोदी सरकार की नीतियों से बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत

भरपूर सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2030 के पूर्व भारत अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

वित्तीय समावेशन का शानदार उदाहरण बनी प्रधानमंत्री जन-धन योजना

जन-धन योजना के तहत खुले खातों की एक विशेषता यह है कि 56 प्रतिशत खाते महिलाओं के हैं। साथ ही, 67 प्रतिशत बैंक खाते ग्रामीण व कस्बाई क्षेत्रों में खुले हैं।

चंद्रयान-3 की सफलता ने बढ़ाया भारत का मान, मगर इसपर भी ओछी राजनीति से बाज नहीं आ रहा विपक्ष

जैसे ही चंद्रयान ने चांद को छुआ, यहां धरती पर ऐतिहासिक जश्‍न शुरू हो गया। जिसने भी यह देखा वह खुद को ना रोक सका। ढोल बजाए गए, मिठाइयां बांटी गई…

लाल किले से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने नए भारत की उपलब्धियों और आकांक्षाओं को स्वर दिया है!

मोदी ने स्‍वयं को कभी भी शासक अथवा राष्‍ट्राध्‍यक्ष की तरह नहीं, अपितु सदैव एक सेवक या सदस्‍य के तौर पर ही बताया है, उसी अनुसार आचरण भी किया है।

मोदी द्वारा लाल किले पर फिर झण्डा फहराने का वादा 140 करोड़ लोगों से मिले आत्मबल का ही प्रसाद है!

आप पूछेंगे कि मोदी देश को तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनाने का वादा कर रहे हैं, क्या ये प्राप्य है? भारत तीसरी अर्थव्यवस्था बनेगा, ये वादा नहीं विश्वास है।

विश्व पटल पर छा रही भारतीय संस्कृति

भारत की अध्यक्षता में आज जी-20 के माध्यम से ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का भारतीय दर्शन विश्व को ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की राह दिखा रहा है।

मोदी सरकार की गरीब कल्याण नीतियों से गरीबी उन्मूलन की ओर तेजी से बढ़ता भारत

बीते कुछ वर्षों में देश ने गरीबी के विरुद्ध अपनी लड़ाई में अभूतपूर्व तेजी लाई है, जिसके फलस्वरूप गरीबी में लगातार कमी आ रही है।

रक्षा क्षेत्र के समझौतों के लिहाज से बेहद फलदायी रही प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा

अमेरिका से जो रक्षा और उनकी तकनीक हस्तांतरण के समझौते हुए हैं वे भारत की भू-सामरिक ताकत तो बढ़ाएंगे ही, स्वदेशी लड़ाकू विमान और ड्रोन निर्माण का रास्ता भी खोल देंगे।

अमेरिका के साथ हुए समझौतों से देश के विकास की रफ्तार और रोजगार के अवसरों में होगी वृद्धि

अमेरिका की विभिन्न कम्पनियों द्वार भारत में किये जाने वाले भारी-भरकम राशियों के निवेश से भारत में विनिर्माण क्षेत्र में विकास दर को बल मिलना निश्चित है।

‘गीता प्रेस’ के सम्मान का विरोध करने के पीछे की मानसिकता को समझिए

विरोधियों द्वारा यह कहना कि महात्मा गांधी और गीता प्रेस के प्रबंधकों के बीच घोर असहमतियां थी- निराधार और मूर्खतापूर्ण कथन है।