विपक्ष के नकारने से ख़त्म नहीं हो जाते नोटबंदी के फायदे!

यह नोटबंदी का ही जलवा है कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के संग्रह में बीते महीनों में वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं, चालू वित्त वर्ष के पहले 7 महीनों में व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 20.2 प्रतिशत और कॉर्पोरेट कर में 19.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस बढ़ोतरी का श्रेय नोटबंदी को दिया है। इतना ही नहीं प्रत्यक्ष कर संग्रह वित्त वर्ष 2018-19 के लिए बजट अनुमानों से आगे निकल गया है।

नोटबंदी के दो साल पूरे होने पर विपक्षी दलों ने फिर से इसकी सार्थकता पर सवाल उठाया। साथ ही साथ इससे हुई परेशानी का ठीकरा सरकार के माथे पर फोड़ा। यह ठीक है कि नोटबंदी के कारण आमजन को कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा था, लेकिन केवल इस वजह से नोटबंदी के फ़ायदों को सिरे से नकारा नहीं जा सकता है। यह एक साहसिक फैसला था, जिसने कालेधन, भ्रष्टाचार, नकली करेंसी, कालाबाजारी आदि को रोकने में मदद की। साथ ही, भ्रष्ट लोगों के मन में यह डर पैदा करने में सफल रहा कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है और किसी के भी खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।

यह नोटबंदी का ही जलवा है कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के संग्रह में बीते महीनों में वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं, चालू वित्त वर्ष के पहले 7 महीनों में व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 20.2 प्रतिशत और कॉर्पोरेट कर में 19.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस बढ़ोतरी का श्रेय नोटबंदी को दिया है। इतना ही नहीं प्रत्यक्ष कर संग्रह वित्त वर्ष 2018-19 के लिए बजट अनुमानों से आगे निकल गया है।

सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में पहले 7 महीनों के लिए व्यक्तिगत आयकर में 19.88 प्रतिशत और कॉर्पोरेट कर में 10.15 प्रतिशत की वृद्धि का लक्ष्य रखा था। इस तरह कॉर्पोरेट कर संग्रह में वृद्धि अनुमान से काफी अधिक तेज रही है, जबकि व्यक्तिगत आयकर के मामले में भी यह बजट अनुमान से कुछ अधिक है। उल्लेखनीय है कि नोटबंदी लागू होने के दो साल पहले प्रत्यक्ष कर संग्रह में क्रमश: 6.6 प्रतिशत और 9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। लेकिन नोटबंदी के बाद के दो वित्त वर्षों में यह वृद्धि दर क्रमश: 14.6 प्रतिशत और 18 प्रतिशत रही है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली के अनुसार नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के जरिये अर्थव्यवस्था को औपचारिक स्वरूप देने का असर अप्रत्यक्ष कर संग्रह में बढ़ोतरी के तौर पर देखने को मिला है। उन्होंने कहा कि जीएसटी से अब कर प्रणाली के दायरे में आने से बच पाना मुश्किल होता जा रहा है। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों करों की दरों में कटौती की गई है, जिससे  कर संग्रह में वृद्धि हुई है।

वित्त वर्ष 2018 में 6.86 करोड़ कर रिटर्न जमा किये गये, जो वित्त वर्ष 2016-17 की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक है। चालू वित्त वर्ष के पहले 7 महीनों में 5.99 करोड़ रिटर्न जमा किये  जा चुके हैं, जो गत वित्त वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 54.33 प्रतिशत अधिक है। यहाँ बताना जरूरी है कि रिटर्न भरने वालों में 86.3 लाख लोग नये हैं। यह आंकड़े इस बात के परिचायक हैं कि बदले माहौल में करदाता कर जमा करने के प्रति जागरूक हुए हैं।

मौजूदा स्थिति के आधार पर उम्मीद की जा सकती है कि सरकार के 5 सालों का कार्यकाल पूरा होने तक कराधार दोगुना हो जायेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि छोटे करदाताओं को 970 अरब रुपये की आयकर राहत और जीएसटी देनदारों को 800 अरब रुपये की छूट देने के बावजूद कर संग्रह में वृद्धि हुई है।

देखा जाये तो सरकार के इस कदम से कर जमा करने वालों के मन में कर जमा करने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बना है।इधर, वित्त वर्ष 2014-15 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में अप्रत्यक्ष कर 4.4 प्रतिशत था, जो अब जीएसटी लागू करने के बाद एक प्रतिशत बढ़कर 5.4 प्रतिशत हो गया है।

इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि नोटबंदी ने प्लास्टिक मनी की महत्ता को बढ़ा दिया। नोटबंदी के बाद एक तरफ जहां भारत के ग्रामीण इलाकों में अनपढ़, कम पढ़े-लिखे मजदूर, किसान आदि पेटीएम, मोबाइल बैंकिंग, डेबिट कार्ड आदि का खुलकर उपयोग करके अपने दैनिक जरूरतों को पूरा कर रहे हैं, तो वहीं कस्बाई इलाकों में रेहड़ी, खोमचे, चाय एवं सब्जी वाले प्लास्टिक मनी की मदद से अपनी दूकानदारी चला रहे हैं।

ग्रामीण इलाकों में लोग आज रुपे कार्ड, जो क्रेडिट और डेबिट कार्ड के रूप में उपलब्ध है, की मदद से ग्रामीण एटीएम मशीनों से नकदी की निकासी, पॉइंट ऑफ सेल एवं इंटरनेट से ऑनलाइन ख़रीदारी कर रहे हैं, जिससे डिजिटल लेन-देन में बीते महीनों में जबर्दस्त उछाल आया है।

साफ है नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को औपचारिक स्वरूप मिला और कर-आधार में बढ़ोतरी हुई। साथ ही, इसकी वजह से ही सरकार गरीबों के कल्याण एवं ढांचागत विकास के लिए अधिक संसाधनों का आवंटन कर पाई। कर संग्रह एवं जीडीपी में भी वृद्धि दर्ज की गई है।

इस तरह नोटबंदी से होने वाले फायदों को कम करके नहीं आँका जा सकता है। बड़े फैसले लेने पर कुछ कमियों का रहना लाजिमी है। सच कहा जाये तो इसकी वजह से ही कालेधन, नकली करेंसी, कालाबाजारी, भ्रष्टाचार आदि में कमी दृष्टिगोचर हुई। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि नोटबंदी के बाद भी देश की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है, जिसकी पुष्टि वैश्विक एजेंसियों ने भी की है। अतः विपक्ष भले नकारता रहे, लेकिन उसके नकारने से नोटबंदी के फायदे ख़त्म नहीं हो जाते।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)