अखिलेश यादव

ये कैसे ‘भारतीय नेता’ हैं जिन्हें अपने देश की सेना और सरकार पर ही भरोसा नहीं

आतंकी हमले और आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक पर नकारात्मक सियासत भारत में ही संभव है। यहां अनेक नेता लगातार पाकिस्तान और आतंकी संगठनों के प्रति हमदर्दी के बयान दे रहे हैं। ऊपर से तुर्रा यह कि सरकार इस मामले का चुनावी फायदा उठाना चाहती है। लेकिन इस विषय को चुनाव तक चलाने का कार्य तो विपक्ष के नेता ही कर रहे हैं। कुछ अंतराल पर इनके बयान आने का सिलसिला बन गया है। 

क्या 97 हजार करोड़ की बंदरबांट ही अखिलेश यादव का समाजवाद है?

उत्‍तर प्रदेश से एक बड़े घोटाले की आहट सुनाई दे रही है। बताया जाता है कि ये घोटाला 97 हजार करोड़ रुपए का है जो कि अपने आप में बहुत बड़ी राशि है। देश की सबसे बड़ी ऑडिट एजेंसी सीएजी (कैग) की रिपोर्ट में यह गड़बड़ी उजागर हुई है। अधिक चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस राशि के खर्च का कोई हिसाब अभी तक प्रस्‍तुत नहीं किया गया है। यानी 97 हजार

अखिलेश जिस तरह एक्सप्रेसवे का श्रेय लेते थे, उसी तरह इस हादसे की जिम्मेदारी क्यों नहीं ले रहे?

21 नवम्बर, 2016 की तारीख थी, जब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे का उद्घाटन किया था। इस एक्सप्रेसवे को उनका ड्रीम प्रोजेक्ट बताया गया था। इसपर लड़ाकू विमान उड़ाए गए थे। इसके बाद यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान यह एक्सप्रेसवे अखिलेश यादव के ‘काम बोलता है’ नारे की पृष्ठभूमि में चमचमाता रहा था।

वाह रे नेताजी, बंगला खाली करने का सारा गुस्सा बंगले पर ही उतार दिए !

उत्तर प्रदेश में बंगला विवाद अभी तक थमा नहीं है।सुप्रीम कोर्ट के फैसलें के पश्चात् यूपी के दो पूर्व मुख्यमंत्री एवं पार्टी अध्यक्षों ने बंगला खाली न हों इसके लिए जो पैतरें चले, उससे न केवल वह उपहास के पात्र बने, बल्कि उनकी मर्यादाहीनता को भी समूचे देश ने देखा। सरकारी बंगला हाथ से न फ़िसले, कोर्ट के फ़ैसले  को कैसे ठेंगा दिखाया जाए, इसके हर संभव प्रयास किये गये।

गिरने से अच्छा है कि ठोकर खाकर संभल जाइए, मायावती जी !

बसपा और सपा का घोषित सियासी सौदा फिलहाल तात्कालिक था। इसमें लोकसभा के दो और राज्यसभा की एक सीट को शामिल किया गया था। इस सौदे में सपा को शत-प्रतिशत मुनाफा हुआ। उसके लोकसभा व राज्यसभा के तीनों उम्मीदवार विजयी रहे। लेकिन, बसपा खाली हाँथ रही। एक दूसरे पर कितना विश्वास था, यह मायावती के बयान से ही जाहिर था। मायावती ने कहा था कि राज्यसभा में उनके एजेंट को वोट

यूपी लोकसभा उपचुनाव : सपा-कांग्रेस गठबंधन जैसा ही होगा सपा-बसपा गठजोड़ का भी हश्र !

राष्ट्रीय स्तर पर केसरिया उभार ने उत्तर प्रदेश में विपक्ष को गठजोड़ के लिए विवश कर दिया। लेकिन, इन्होने आज की बीमारी के लिए पच्चीस वर्ष पुरानी दवा लेने का निर्णय लिया है। इस लंबी अवधि में बहुत कुछ बदल गया। गोमती का न जाने कितना पानी बह चुका। अब बसपा संस्थापक कांशीराम हैं नहीं, सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव उस पार्टी के लिए बेगाने हो गए हैं, जिसकी स्थापना उन्होंने की थी। मतलब

समाजवादी पार्टी के लिए तो अब यही कहेंगे कि रस्सी जल गयी, मगर बल नहीं गया !

उत्तर प्रदेश विधानसभा में विगत सोमवार को समाजवादी पार्टी के विधायकों ने जिस तरह का आचरण किया, उससे लोकतंत्र कलंकित जरूर हुआ। वे जिस तरह से माननीय राज्यपाल राम नाईक पर कागज के गेंदें उछल रहे हैं, वो बेशक शर्मनाक है। उत्तर प्रदेश एक दौर में देश की प्राण और आत्मा माना जाता था। कहते थे, जो उत्तर प्रदेश आज सोचता है, उसे शेष देश दो दिनों के बाद सोचता है।

गायत्री प्रजापति को बचाना कौन-सी क़ानून व्यवस्था है, अखिलेश जी ?

यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और अमेठी विधानसभा क्षेत्र से सपा प्रत्याशी गायत्री प्रजापति जो पहले से ही खनन घोटाले सम्बन्धी आरोपों से घिरे थे, पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का आरोप सामने आना सपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है। दरअसल मामला कुछ यूँ है कि विगत दिनों एक महिला द्वारा गायत्री प्रजापति पर यह आरोप लगाया गया है कि २०१४ में उन्होंने उसे प्लाट दिलाने के बहाने अपने लखनऊ स्थित

राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद की बहस

तीन चरणों का चुनाव समाप्त होने के बाद अब यूपी के सियासी तापमान का पारा पश्चिम से पूरब की ओर बढ़ चला है। आगामी चरणों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं लिहाजा सभी दलों के नेता पूरब का रुख कर चुके हैं। यूपी चुनाव में वंशवाद और परिवारवाद की बहस भी खूब हो रही है। लगभग हर एक पत्रकार वार्ता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित भाजपा के आला नेताओं से यह सवाल पूछा जाता है।

यूपी चुनाव : राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुंचाने वाली राजनीति कर रहे सपा-कांग्रेस

आज सम्पूर्ण भारतवर्ष ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं संवैधानिक दृष्टि से एक है। हमारा संविधान ‘हम भारत के लोग…..’ से शुरू होकर हमारी एकता को रेखांकित करता है। संवैधानिक स्तर पर भारत का कोई भी नागरिक अपने मूल निवास स्थान के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी चुनाव लड़ने के लिए अधिकृत है। यह हमारी एकता का भी प्रमाण है। इसी आधार पर आज गुजराती मूल के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी