कम्युनिस्ट

ख़त्म हो रहा जनाधार, पतन की ओर बढ़ते वामपंथी दल

लेफ्ट पार्टियां देश की राजनीति में अप्रसांगिक होती जा रही हैं। इनकी नीतियों, कार्यक्रमों और विचारों को जनता स्वीकार नहीं कर रही है। इसलिए ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) लोक सभा से लेकर राज्य विधानसभा चुनावों में धराशायी होती जा रही हैं।

मैं विद्यार्थी परिषद् बोल रहा हूँ…..!

कम्युनिस्ट अपने मूल चरित्र में जितने हिंसक हैं, उतने ही फरेब में माहिर भी हैं। वो रोज नए झूठ गढ़ते हैं। जबतक उनके एक झूठ से पर्दा उठे तबतक दूसरा झूठ ओढ़कर पैदा हो जाते हैं. दरअसल झूठ की लहलहाती फसल के रक्तबीज हैं। आजकल इनके निशाने पर देश के विश्वविद्यालय हैं। कुछ भी रचनात्मक कर पाने में असफल यह गिरोह अब ध्वंसात्मक नीतियों के चरम की ओर बढ़ चला है।

लाल आतंक : कन्नूर में वामपंथी हिंसा ने ली आरएसएस स्वयंसेवक संतोष की जान

सी.पी.एम. शासित केरल के कन्नूर जिले में दिनांक 18 जनवरी 2017 की रात को हुए ताज़ा हिंसा में एक और स्वयंसेवक संतोष (५२) की जान चली गयी है। इसी हिंसा में एक और स्वयंसेवक रंजित की हालत काफी गंभीर बताई जा रही है। यह ताज़ा हिंसा केरल के निवर्तमान मुख्यमंत्री पी विजयन के चुनावी क्षेत्र धर्मादम में हुई है। सी.पी.एम. के आक्रमणकारी दस्ते ने आरएसएस स्वयंसेवक एवं बीजेपी कार्यकर्ता संतोष पर

लाल आतंक : केरल में वामपंथी हिंसा के शिकार बने भाजपा कार्यकर्ता सी. राधाकृष्णन

जी हाँ ! 291, अब तक केरल में सन 1969 से संघ और जनसंघ/भाजपा के कुल 291 कार्यकर्ता मारे गए हैं उनमें से 228 केवल वामपंथी हिंसा के शिकार बन चुके हैं । केरल के कन्जिकोड, पालाघाट के एक सामान्य से भाजपा कार्यकर्ता, चदयनकलायिल राधाकृष्णन का नाम वामपंथियों द्वारा किये जा रहे राजनैतिक हत्याओं की फेहरिश्त में 6 जनवरी 2017 को जुड़ गया । राधाकृष्णन केरल में राजनैतिक शहादत को

आरएसएस कार्यकर्ताओं के प्रति मार्क्सवादी हिंसा पर खामोश क्यों है असहिष्णुता गिरोह ?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या और उन पर जानलेवा हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है। यह घटनाएं किसी षड्यंत्र की ओर इशारा करती हैं। केरल, पंजाब, कर्नाटक और अब भाजपा शासित मध्यप्रदेश में भी संघ के कार्यकर्ता पर हमला करने की घटना सामने आई है। अभी इन घटनाओं के पीछे एक ही कारण समझ आ रहा है। संघ की राष्ट्रीय विचारधारा के विस्तार और उसके बढ़ते प्रभाव से अभारतीय

जेएनयू को बर्बादियों की तरफ ले जा रहा वामपंथी गिरोह

जेएनयू फिर से एक बार सुर्खियों में है। फिर से, ग़लत कारणों से। ये ग़लत वजहें किसी भी ‘जेनुआइट’ को परेशान कर सकती हैं। आपसी झगड़े के बाद से एक छात्र नजीब जेएनयू से गायब है। जहां तक मेरी स्मृति है, यह शायद जेएनयू में अपनी तरह की पहली घटना है। हां, इसके पहले फरवरी में भी कुख्यात ‘नारेबाज़ी’ कांड के बाद कुछ छात्र ‘भूमिगत’ हुए थे, लेकिन कोई लापता हो जाए, ऐसा पहली बार हुआ है। इस

जेएनयू चुनाव: वामगढ़ में हिली वामपंथियों की जमीन

यह आर-पार की लड़ाई है। महाभारत याद करिए। एक तरफ पांच पांडव, जिनके साथ केवल सत्य यानी नारायण, वह भी विरथ, हथियार न उठाने की प्रतिज्ञा के साथ, और दूसरी तरफ, तमाम महारथी, अतिरथी, रथी एक साथ, भीषणतम हथियारों के साथ। इस बार का जेएनयू चुनाव भी कुछ ऐसा ही है। एक तरफ राष्ट्रवाद की ध्वजा लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और दूसरी ओर लफ्फाज़ एवं झूठे वामपंथियों का एका। मज़े की बात तो यह है कि कल तक एक-दूसरे को पानी पी-पीकर कोसने वाले…