ये तथ्य बताते हैं कि आर्थिक सुधारों के कारण मजबूती की ओर बढ़ रहे भारतीय बैंक

मूडीज द्वारा भारत और भारतीय बैंकों की रेटिंग उन्नयन का अर्थ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय बैंकों से जुड़े जोखिमों में कमी आ रही है। यह सच भी है, क्योंकि आर्थिक मोर्चे पर निरंतर सुधार आने की वजह से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जबर्दस्त उछाल आया है, राजस्व संग्रह में तेजी आने से राजकोषीय घाटा में कमी आ रही है साथ ही साथ पूँजीगत खर्च में वृद्धि होने से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है। इधर, बैड बैंक के गठन के बाद फँसे कर्ज या ग़ैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में भी कमी आने की संभावना बढ़ी है। 

वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 9 भारतीय निजी और सरकारी बैंकों की रेटिंग का उन्नयन करते हुए उसे आउटलुक निगेटिव से स्टेबल कर दिया गया है। मूडीज ने जिन बैंकों की रेटिंग का उन्नयन किया है, उनमें निजी क्षेत्र के एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और सरकारी क्षेत्र के बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, एक्जिम बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं। बैंकों की रेटिंग उन्नयन के ठीक एक दिन पहले मूडीज ने भारत की रेटिंग को सॉवरेन निगेटिव से स्टेबल कर दिया था। भारत की रेटिंग फिलवक्त बीएए3 है। 

मूडीज द्वारा भारत और भारतीय बैंकों की रेटिंग उन्नयन का अर्थ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय बैंकों से जुड़े जोखिमों में कमी आ रही है। यह सच भी है, क्योंकि आर्थिक मोर्चे पर निरंतर सुधार आने की वजह से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जबर्दस्त उछाल आया है, राजस्व संग्रह में तेजी आने से राजकोषीय घाटा में कमी आ रही है साथ ही साथ पूँजीगत खर्च में वृद्धि होने से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है। इधर, बैड बैंक के गठन के बाद फँसे कर्ज या ग़ैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में भी कमी आने की संभावना बढी है। 

मूडीज का भी मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार आने की वजह से ही भारत के राजकोषीय घाटे में धीरे-धीरे कमी आ रही है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में विगत कुछ महीनों में उल्लेखनीय तेजी आई है। बीते कुछ महीनों से जीएसटी संग्रह हर महीने एक लाख करोड़ से अधिक हो रहा है। सितंबर महीने में भी जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रूपये से अधिक रहा है। 

साभार : Patrika

फँसे कर्ज में भारी बढ़ोत्तरी होने से भारतीय रिजर्व बैंक ने बीते महीने कई सरकारी बैंकों को त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) की श्रेणी में डाल दिया था। इस श्रेणी में केंद्रीय बैंक, बैंकों को तभी डालता है, जब बैंक गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहे होते हैं। जिन बैंकों को इस श्रेणी में रखा जाता है, वे शाखा विस्तार नहीं कर सकते हैं और न ही अपने कारोबार को बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा भी दूसरे कई तरह के प्रतिबंध पीसीए श्रेणी के बैंकों पर लगाये जाते हैं।  

बैंकों के बड़े खातों की गुणवत्ता में भी सुधार आ रहा है। बैंकिंग क्षेत्र से जुडी कई समस्याओं का समाधान सरकार ने हाल में किया है। इन सुधारों के तहत सरकारी बैंकों का एकीकरण और निजीकरण किया जा रहा है। दिवाला और दिवालियापन संहिता कोड (आईबीसी) की संकल्पना को अमलीजामा पहनाने से फँसे कर्ज के समाधान में तेजी आई है 

बीते 4 सालों में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आईबीसी की प्रक्रिया के लिए चिन्हित किए गए 4.56 लाख करोड़ रुपये में से बैंकों को 28 प्रतिशत यानी 1.3 लाख करोड़ रुपये की वसूली करने में सफलता मिली है, जो आईबीसी की प्रासंगकिता को दर्शाता है मूडीज के मुताबिक अगर आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती है या फिर वह यथावत रहती है तो बैंकों के फँसे कर्ज के समाधान की संभावना और भी बढ़ेगी और उनकी वसूली में तेजी आयेगी साथ ही साथ उधारी के खातों की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।  

कोरोना महामारी के बावजूद भी देश में सरकारी बैंकों के प्रदर्शन में सुधार आया है, जो बैंकिंग क्षेत्र की मजबूती की ओर इशारा करता है। मार्च 2021 तक अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों का फंसा कर्ज 61180 करोड़ रुपये घटकर 8.34 लाख करोड़ रुपये पर आ गया था, जो कि मार्च 2020 में यह 8.96 लाख करोड़ रुपये था। मार्च 2021 में बैंकों का सकल फंसा हुआ कर्ज (जीएनपीए) कुल अग्रिम का 7.5 प्रतिशत था, जबकि शुद्ध फंसा कर्ज 2.4 प्रतिशत इससे यह पता चलता है कि बैंकों ने कोरोना महामारी के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया। 

भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2022 तक बैंकों का जीएनपीए 9.80 प्रतिशत रह सकता है। यदि हालात ज्यादा ख़राब होते हैं तो यह 11.22 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच सकता है। सूचीबद्ध बैंकों का जीएनपीए जून 2021 में 8.11 लाख करोड़ रुपये हो गया और इसमें पिछले साल के मुक़ाबले 2.5 प्रतिशत की कमी आई, जबकि जून, 2020 में यह 8.32 लाख करोड़ रुपये था।

इस मानक पर सरकारी बैंकों का प्रदर्शन निजी बैंकों से बेहतर रहा। उनका जीएनपीए 4.2 प्रतिशत कम हुआ, जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों का 3.3 प्रतिशत बढ़ा। इस अवधि में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के शुद्ध फंसे कर्ज में 4 प्रतिशत की कमी आई, जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों के शुद्ध फंसा कर्ज 22 प्रतिशत की दर से बढ़ा।  

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भी सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग सभी बैंकों का प्रदर्शन उम्दा रहा है। इस दौरान सूचीबद्ध बैंकों का सामूहिक शुद्ध लाभ सालाना आधार पर 61 प्रतिशत बढ़ा,  जबकि सालाना आधार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध लाभ 140 प्रतिशत बढ़ा और 5,847 करोड़ रुपये से वह 14,012 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा। वहीं, निजी क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध मुनाफा 28 प्रतिशत बढ़ा और वह 14,127 करोड़ रुपये से बढ़कर 18,083 करोड़ रुपये तक पहुंचा। 

परिचालन लाभ के क्षेत्र में भी सरकारी बैंकों का प्रदर्शन बेहतर रहा है. उनका परिचालन लाभ निजी बैंकों से करीब दोगुना होकर 16 प्रतिशत बढ़ा। जून तिमाही में सरकारी बैंकों की शुल्क आय में 35 प्रतिशत का इजाफा हुआ, जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों का 20.5 प्रतिशत। 

वर्तमान में बाजार में पर्याप्त तरलता की स्थिति बनी हुई है और बैंकों के पास भी ऋण बाँटने के लिए पर्याप्त पूँजी है, इसलिए, रिजर्व बैंक ने फिर से 8 अक्तूबर 2021 को की गई मौद्रिक समीक्षा में 9वीं दफा रेपो दर को 4 प्रतिशत और रिवर्स रेपो दर को 3.35 प्रतिशत के स्तर पर यथावत रखा है। इससे पहले मई 2020 में रेपो दर में कटौती की गई थी। 

वर्ष 2020 के मार्च महीने में भारत में कोरोना महामारी आने की वजह से देश भर में तालाबंदी की गई थी, जो अर्थव्यवस्था के लिए कठिन दौर था, लेकिन अब आहिस्ता-आहिस्ता इसमें सुधार आ रहा है।  आर्थिकी में सुधार को देखकर बैंक भी चालू वित्त वर्ष के अंत तक ऋण उठाव में दो अंकों की वृद्धि का अनुमान लगा रहे हैं। 

साल का अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीना त्योहारों से भरा होता है और इन महीनों में सभी के कारोबारों में इजाफा होता है। दुर्गा पूजा के दौरान खुदरा ऋण की मांग में लगातार इजाफा हो रहा है। क्रेडिट कार्ड के कारोबार में इस मौसम में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। दूसरे, खुदरा ऋणों में भी लगातार वृद्धि हो रही है। इधर, कोरोना महामारी के तीसरी लहर के आने की संभावना क्षीण पड़ रही है, जिससे भी अर्थव्यवस्था में तेजी आने उम्मीद बढ रही है। जीडीपी में सुधार आना भी इसी सच की पुष्टि करता है।  

बदले आर्थिक और बैंकिंग परिदृश्य में; आर्थिक और बैंकिंग मोर्चे पर लगातार सुधार आ रहा है। एक तरफ राजस्व संग्रह में तेजी आ रही है तो दूसरे तरफ बैड बैंक के अस्तित्व आने से बैंकिंग क्षेत्र में सुधार आने की संभावना बढी है। मौजूदा सुधारात्मक गतिविधियों को देखते हुए ही मूडीज ने 9 बैंकों और भारत की रेटिंग का उन्नयन किया है। अगर अर्थव्यवस्था और बैंकिंग क्षेत्र में सुधार की रफ़्तार यूँ ही बनी रहेगी तो जल्द ही मूडीज फिर से भारत और बैंकों की रेटिंग उन्नयन के बारे में सोचने के लिए मजबूर हो सकता है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)