सेना के कठोर रुख पर सवाल उठाने वाले सेना के साथ बदसलूकी पर खामोश क्यों हैं ?
पिछले दिनों श्रीनगर में चुनाव कराकर लौट रहे सीआरपीएफ के जवानों के साथ जिस तरह कश्मीर के बिगड़े और अराजक नौजवानों ने उन पर लात-घूसा बरसा बदसलूकी की और बड़गाम चाडूरा (बड़गाम) में हिजबुल मुजाहिदीन के खतरनाक आतंकी को बचाने के लिए सेना पर पत्थरबाजी की, उससे देश सन्न है। हथियारों से लैस होने के बावजूद भी सीआरपीएफ के जवानों ने तनिक भी प्रतिक्रिया
मनमोहन सिंह पर प्रधानमंत्री मोदी के तंज़ से इतना बौखलाई क्यों है कांग्रेस ?
शब्दों के अर्थ को अनर्थ के फ्रेम में फिटकर किस तरह वितंडा खड़ा किया जाता है, यह कोई कांग्रेस से सीखे। संभवतः कांग्रेस खुद को भाषा की शुचिता और संसदीय मर्यादा का एकमात्र व्याकरणाचार्य और पैमाना समझ ली है, अन्यथा वह संसदीय विमर्श के शब्दों पर खुद को उपहास का पात्र नहीं बनाती। आश्चर्य है कि जब उसके सदस्य, संसद और सड़क पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिटलर, मुसोलिनी और
अखिलेश राज की नाकामियों को ढँकने की कवायद है अंतर्कलह का समाजवादी नाटक
वर्चस्व की जंग के बीच भले ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के दरम्यान सीजफायर का एलान न हुआ हो और दोनों तरफ से तनातनी बनी हो पर सियासी इजारदारी पर हक जताने की इस आपाधापी में घंटे-आधे घंटे के लिए क्रांतिकारी बने अखिलेश यादव और पुराने जमींदारों की तरह बर्ताव करते देखे गए सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव दोनों के बीच समाजवादी किले पर
सनातन संस्कृति और राष्ट्रवादी चेतना की प्रतिमूर्ति थे पं मदन मोहन मालवीय
पंडित मदनमोहन मालवीय जी का संपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक जीवन स्वदेश के खोए गौरव को स्थापित करने के लिए प्रयासरत रहा। जीवन-युद्ध में उतरने से पहले ही उन्होंने तय कर लिया था कि देश को आजाद कराना और सनातन संस्कृति की पुर्नस्थापना उनकी प्राथमिकता होगी। 1893 में कानून की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे। बतौर वकील उनकी
मोदी सरकार को अर्थनीति सिखाने से पहले ज़रा अपनी गिरेबान में तो झाँक लीजिये, मनमोहन सिंह जी!
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी, संसद में आपकी इस तकरीर कि नोटबंदी संगठित और कानूनी लूट-खसोट है और इस फैसले से देश के किसानों और उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, ने कुल मिलाकर देश को हंसते-हंसते लोटपोट हो जाने का ही मौका दिया है। आपका यह प्रवचन ठीक उसी प्रकार है, जैसे कोई रोगी वैद्य किसी मरीज को बेहतर दवाओं का नुस्खा बताता है। आपको भान होना चाहिए कि स्वयं
नोटबंदी के निर्णय से खुश है जनता, बस विपक्षी दलों को हो रही पीड़ा
एक कहावत है कि प्रहार वहां करो जहां चोट पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा ही करके काले धन के कारोबारियों और काली कमाई से सियासत का मचान तान रखे सियासतदानों की कमर तोड़ दी है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि छलपूर्वक अर्जित की गयी काली कमाई को कैसे और कहाँ ठिकाने लगाएँ। अब उन्हें चारों तरफ का रास्ता बंद नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री ने दो टूक कह भी दिया है कि उनका अगला
भोपाल मुठभेड़ पर दिग्विजय सिंह के बड़बोले बयानों से सवालों के घेरे में कांग्रेस
एक कहावत है कि सत्य की अनदेखी वही करता है जिसे असत्य से लाभ हो। ऐसे ही एक सत्य की अनदेखी फिर देश के कतिपय सियासतदानों द्वारा की जा रही है जो जांच से पहले ही इस नतीजे पर पहुंच गए हैं कि भोपाल के केंद्रीय जेल से फरार प्रतिबंधित संगठन सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मुवमेंट ऑफ इंडिया) के आठ आतंकियों से पुलिस की हुई मुठभेड़ फर्जी है। हो सकता है कि मुठभेड़ के बाद का परिदृश्य
चीनी आक्रामकता का कूटनीतिक जवाब है पीएम मोदी की वियतनाम यात्रा!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वियतनाम यात्रा दोनों देशों की रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी को नया मुकाम देने की दिशा में एक बहुआयामी पहल है। इस यात्रा से जहां दोनों देशों के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में मदद मिलेगी, वहीं कूटनीतिक तौर पर चीन की बढ़ती आक्रामकता पर लगाम कसने में भी यह यात्रा सहायक सिद्ध होगी। बदलते वैश्विक परिदृश्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा जितना
संघ पर आरोप लगाने से हुई राहुल गाँधी की किरकिरी, सबक लें संघ विरोधी!
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को दोषी ठहराने वाले अपने एक बयान के मामले में जिस तरह अदालत में यू-टर्न लिया और पुनः ट्वीट के जरिए अपने पुराने बयान पर टिके रहने की बात दोहराते हुए डबल यू-टर्न लिया है, यह उनके कमजोर व्यक्तित्व, सुझबुझ की कमी और राजनीतिक नादानी को ही निरुपित करता है। उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने 2014 में एक चुनावी जनसभा में गांधी जी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिम्मेदार ठहराया था। इससे नाराज संघ के एक
स्वतंत्र भारत की पहली राजनीतिक चूक थी पटेल की बजाय नेहरू का प्रधानमंत्री बनना!
आज देश 70वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। लेकिन देश में यह पुरानी बहस चलती रहती है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के स्थान पर अगर सरदार बल्लभ भाई पटेल प्रधानमंत्री बने होते तो आज देश की तस्वीर क्या होती? बड़ी संख्या में लोगों की ऐसी धारणा है कि अगर ऐसा हुआ होता तो न तो आज कश्मीर समस्या रहती और न ही तब चीन द्वारा भारत पर आक्रमण की जुर्रत की जाती।