पॉलिटिकल कमेंटरी

सिंधु जल समझौता : नेहरू की ऐतिहासिक भूल को सुधारने में जुटी मोदी सरकार

सत्‍ता के लिए तुष्टिकरण के तो कई उदाहरण मिल जाएंगे, लेकिन अपनी संप्रभुता को गिरवी रखने के उदाहरण भारत के अलावा पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेंगे। कोको द्वीप म्‍यांमार को उपहार में देना, संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद की स्‍थायी सदस्‍यता ठुकराना, पंचशील समझौता, अपनी जमीन को बंजर बताना, सिंधु जल समझौता ऐसे ही कुछेक उदाहरण हैं।

लिंगायत विभाजन की चाल से खुद कांग्रेस को ही होगा नुकसान !

कर्नाटक में पांच वर्ष तक शासन करने के बाद भी कांग्रेस उपलब्धियों के नाम पर खाली हाथ है। यह विरोधियों का आरोप नहीं, उसकी खुद की कवायद से उजागर हुआ। अब वह धर्म विभाजन के आधार पर अपनी सत्ता बचाने का अंतिम प्रयास कर रही। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित किया। कांग्रेस की त्रासदी समझी जा सकती है। देश के करीब सात

पाकिस्तान से अलग होने को बेचैन बलूचिस्तान !

पाकिस्तान के बलूचिस्तान सूबे में पंजाबियों के कत्लेआम से पाकिस्तान सरकार हिल गई है। बीते दिनों वहां पर चार पंजाबियों की नृशंस हत्या की गई। बलूचिस्तचान में नौकरी या बिजनेस करने वाले पंजाबियों को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी चुन-चुनकर मारने का कोई भी अवसर नहीं गंवाती। बलूचिस्तान को पाकिस्तान का क्षेत्रफल के लिहाज सबसे बड़ा सूबा माना जाता है। वहां पर गैस के अकूत भंडार हैं। पर, ये पाकिस्तान का

ममता बनर्जी के तीसरे मोर्चे की कवायदों से बढ़ेगी कांग्रेस की परेशानी !

पिछले कुछ समय से देश की सियासत में एक नया चलन देखने को मिल रहा है कि जब भी लोकसभा चुनाव आसन्न होते हैं, देश की सभी छोटी-बड़ी पार्टियां सामूहिक एकता दर्शाने के लिए सामूहिक भोज का आयोजन करने लगती हैं। देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी ने ऐसे ही एक भोज का आयोजन कर रस्मी तौर पर एक फोटोग्राफ जारी कर दिया। मानो गठबंधन की खानापूर्ति हो गई। क्या

बाबा साहेब के नाम में सुधार का विरोध करने वालों को केवल अपनी राजनीति की चिंता !

डॉ. आंबेडकर अपने नाम के साथ पिता के नाम को देखकर भावविह्वल होते होंगे। मगर, बिडंबना देखिये उनके नाम पर सियासत करने वालों को इस पर भी आपत्ति है। वह उनके नाम में उतने शब्द ही देखना चाहते हैं, जितने उनकी सियासत में फिट बैठते हैं। जिन्हें उनके नाम के कुछ शब्दों पर कठिनाई है, वह उनका पूरा सम्मान कभी नहीं कर सकते। इसका जवाब तलाशना होगा कि उनके पूरे नाम को किसकी इच्छा से

सामाजिक न्याय का अतिवंचित तक विस्तार करने की दिशा में प्रयासरत योगी सरकार !

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सामाजिक न्याय के विस्तार के लिए प्रयासरत दिख रहे हैं। उनकी मंशा आरक्षण के लाभ को अतिदलित और अतिपिछड़े वर्ग तक पहुंचाने की है। इसका ऐलान उन्होंने विधानसभा में किया। वैसे, आरक्षण का विषय संवेदनशील होता है। फिर भी समाज के वंचित वर्ग को इस माध्यम से बराबरी पर लाने की आवश्यकता है। लेकिन, इतने दशक बीतने के बाद भी आरक्षित वर्ग का

कर्नाटक से मेघालय तक हिन्दी का विरोध करते कांग्रेसी !

मेघालय के राज्यपाल गंगा प्रसाद ने बीते दिनों राज्य विधानसभा के बजट सत्र में अपना भाषण हिन्दी में देकर मानो कोई अपराध कर दिया है! वे जब अपना भाषण हिन्दी में पढ़ रहे थे, तब ही विरोध शुरू हो गया था। बिहार से संबंध रखने वाले गंगा प्रसाद के भाषण समाप्त करने के बाद कांग्रेस के ईस्ट शिलांग से विधायक एमाप्रीन लिंगदोहने विरोध में वाक आउट कर गए, जबकि एक अन्य सदस्य राज्यपाल के भाषण के दौरान

गिरने से अच्छा है कि ठोकर खाकर संभल जाइए, मायावती जी !

बसपा और सपा का घोषित सियासी सौदा फिलहाल तात्कालिक था। इसमें लोकसभा के दो और राज्यसभा की एक सीट को शामिल किया गया था। इस सौदे में सपा को शत-प्रतिशत मुनाफा हुआ। उसके लोकसभा व राज्यसभा के तीनों उम्मीदवार विजयी रहे। लेकिन, बसपा खाली हाँथ रही। एक दूसरे पर कितना विश्वास था, यह मायावती के बयान से ही जाहिर था। मायावती ने कहा था कि राज्यसभा में उनके एजेंट को वोट

अन्ना को सबसे पहले अपने राजनीतिक शिष्य केजरीवाल के खिलाफ जनांदोलन करना चाहिए !

इसे विडंबना ही कहेंगे कि एक ओर अन्‍ना हजारे भ्रष्‍टाचार विरोधी आंदोलन के दूसरे चरण का आगाज कर रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी राजनीतिक पैदाइश (अरविंद केजरीवाल) भ्रष्‍टाचार के नित नए कीर्तिमान बना रहे हैं। इतना ही नहीं, एक नई तरह की राजनीति करने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल आजकल माफीनामा लेकर घूम रहे हैं। गौरतलब है कि ईमानदारी और स्‍वच्‍छता के नए प्रयोग के दावे और वादे के

सुशासन और विकास की राजनीति से विपक्ष को जवाब !

इसमें संदेह नहीं कि दो उपचुनाव की जीत ने उत्तर प्रदेश में विपक्ष का मनोबल बढाया था। लेकिन, यह माहौल कुछ दिन ही कायम रहा। योगी सरकार ने एक वर्ष की उपलब्धि से एक बार फिर राजनीति की दिशा बदली है। क्योंकि, इन उपलब्धियों के माध्यम से योगी आदित्यनाथ ने सपा और बसपा सरकार की जातिवादी, परिवारवादी और भ्रष्ट व्यवस्था को भी उजागर किया है। एक वर्ष की उपलब्धियों के माध्यम से मुख्यमंत्री