पॉलिटिकल कमेंटरी

चिंताजनक है यूपी निकाय चुनावों में एमआइएम का राजनीतिक उभार

उत्‍तर प्रदेश स्‍थानीय निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली जीत से यह साबित हो गया कि प्रदेश की जनता अब जातिवादी राजनीति से तौबा कर चुकी है; लेकिन इन चुनावी नतीजों ने भारतीय राष्‍ट्र-राज्‍य के लिए एक नए खतरे का भी आगाज किया है जिसका विश्‍लेषण जरूरी है। स्‍थानीय निकाय चुनाव के घोषित नतीजों में हैदराबाद की घोर सांप्रदायिक पार्टी मजलिस-ए-इत्‍तेहादुल मुस्‍लिमीन (एमआइएम) ने 29 सीटों पर

जीडीपी में वृद्धि से अर्थव्यवस्था पर सवाल उठा रहे विपक्ष के आरोपों की निकली हवा !

देश अर्थव्‍यवस्‍था के नए दौर से गुज़र रहा है। ऐसा समझें कि आर्थिक सुधारों के बाद देश में नई अर्थक्रांति का सूत्रपात हुआ है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े आर्थिक सुधारों के बाद पूरे विश्‍व में भारत की साख भी बढ़ी है, रैंकिंग भी और अब वैश्विक परिदृश्‍य में भारत को एक मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में देखा जा रहा है। पिछले दिनों मूडीज ने भारत की सॉवरेन रेटिंग भी बढ़ाई और ग्‍लोबल सॉल्‍युशन कंपनियों ने

यूपी निकाय चुनावों में जीएसटी, नोटबंदी और ईवीएम के विरोधियों को जनता ने दिखाया आईना!

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मेहनत सफल हुई। भाजपा की विजय का सिलसिला यूपी के निकाय चुनावों में भी जारी रहा। निकाय चुनाव में विपक्षी पार्टियां बहुत पीछे रह गईं। ऐसा नहीं कि योगी आदित्यनाथ ने केवल कुछ दिन प्रचार किया, वह तो मुख्यमंत्री बनने के साथ ही विकास के लिए जी-जान से जुट गए थे। किसानों की कर्ज माफी से शुरुआत हुई। फिर उनकी सरकार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। गेहूं-

आईसीजे में दलवीर भण्डारी की जीत का मतलब !

20 नवम्बर, 2017 को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आइसीजे) में भारत के जस्टिस दलवीर भंडारी को न्यायाधीश के रूप में चुना गया। यह दूसरी बार है, जब भंडारी जी आइसीजे के न्यायाधीश के रूप में चुने गए हैं। इससे पहले वे 2012 में आइसीजे के न्यायाधीश चुने गए थे, उनका कार्यकाल 18 फरवरी को पूरा हो रहा था। आइसीजे में दलवीर भंडारी जी की जीत भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

ये सिर्फ आईसीजे में जस्टिस भण्डारी की जीत नहीं, भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव का उद्घोष भी है !

गत बीस नवम्बर को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में भारत के दलवीर भण्डारी को न्यायाधीश के रूप में चुना गया। ये दूसरी बार है, जब जस्टिस भण्डारी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में चुने गए हैं। इससे पहले वे 2012 में आईसीजे के न्यायाधीश चुने गए थे, उनका कार्यकाल 18 फरवरी को पूरा हो रहा है। दरअसल आईसीजे में 15 न्यायाधीश होते हैं, जिनमें से 14 न्यायाधीशों का चयन हो चुका था। दलवीर

अध्यक्ष से कम कब थे राहुल गांधी कि अब अध्यक्ष बनकर कुछ ‘कमाल’ कर देंगे !

कांग्रेस कार्यसमिति ने अध्यक्ष पद के चुनाव की अनुमति दे दी है। सब कुछ योजना के अनुसार हुआ तो चुनाव की औपचारिकता पूरी कर राहुल संभवतः गुजरात चुनाव से पूर्व ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएंगे। वैसे, इस प्रकार की चर्चाएं पहली बार नहीं चली हैं। यह चर्चा वर्षों से चल रही है। कई बार तारीखें आगे बढ़ती रहीं। लेकिन, चाहे जितनी देर हो, अध्यक्ष की कुर्सी राहुल को हो मिलनी थी। अब पहले की तरह राहुल अज्ञातवास

‘आप’ के पांच साल : व्यवस्था परिवर्तन के वादे से मोदी के अंधविरोध की राजनीति तक

अन्‍ना आंदोलन की कोख से पैदा हुई आम आदमी पार्टी (आप) अपनी स्‍थापना की पांचवी सालगिरह मनाने में जोर-शोर से जुटी है। दिल्‍ली के रामलीला मैदान में होने वाले इस समारोह के लिए “क्रांति के पांच साल” नामक नारा दिया गया है। लेकिन जिस शुचिता और ईमानदारी के संकल्‍प के साथ पार्टी का गठन हुआ था, अब उसका कोई नामलेवा नहीं रह गया है।

विकास बनाम जातिवाद की लड़ाई का अखाड़ा बना गुजरात चुनाव

गुजरात में विधानसभा चुनाव इस बार साफ़ तौर पर विकास बनाम जातिवाद के मुद्दे पर केन्द्रित हो गया है। वैसे, आदर्श राजनीतिक व्यवस्था यही होगी कि चुनाव जातिवाद, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर लड़ें जाएँ। जातिवाद को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए हम अक्सर उत्तर प्रदेश और बिहार के नेताओं को बदनाम करते हैं, लेकिन गुजरात में कांग्रेस लगता है ये तय करके बैठी थी कि अबकी जातिवाद और आरक्षण के नाम पर ही

मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों को वैश्विक स्वीकार्यता

पिछला सप्ताह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के लिए काफी बेहतर रहा। एक तरफ़ सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को लेकर आया प्यू का सर्वेक्षण जहाँ मोदी और बीजेपी को आश्वस्त करता है, वहीं नोटबंदी और जीएसटी के बेज़ा विरोध में जुटे विपक्ष को अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने

मूडीज रेटिंग : अर्थव्यवस्था के विकास पर सवाल उठा रहे विपक्ष की बंद हुई बोलती !

यह सप्‍ताहांत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कई अर्थों में सकारात्‍मक और लाभदायी रहा। व्‍यक्तिगत रूप से और शासनगत रूप से दोनों मोर्चों पर वे प्रसिद्धि के नए सोपान चढ़े। अव्‍वल तो अमेरिकी सर्वेक्षण संस्‍था प्यू ने उन्‍हें लोकप्रियता के शिखर पर बताया, वहीं अंतरराष्‍ट्रीय रेटिंग संस्था मूडीज की रेटिंग ने मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों का समर्थन किया है।